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Thursday, January 31, 2013

दो जिद्दी पत्ते







पतझड़ की बेरहम   
मार के बाद भी
ना जाने कहाँ से
आशा और अभिलाषा के
दो जिद्दी पीले पत्ते  
सबसे ऊँचे दरख़्त की   
सबसे सूखी शाख पर
पता नहीं क्यों
अटके रह गए हैं !
मैं पेड़ के नीचे
अपना आँचल फैलाये
धूप में सिर्फ इसीलिये खड़ी हूँ
कि ज़मीन पर गिरने
की बजाय उन्हें
मैं अपने
आँचल में समेट लूँ !
चाहती हूँ कि उन्हें   
मेरे आँचल का
आश्रय मिल जाये
वरना वक्त की
निर्मम धूप में जले
ये सूखे सुकुमार पत्ते
अगर टूट कर
ज़मीन पर गिर गये
तो पैरों के नीचे
रौंदे जाकर
चूर-चूर हो जायेंगे
और उनका यह हश्र
मैं बर्दाश्त नहीं
कर पाऊँगी
और मैं
जानती हूँ कि
किसी भी पल
उनका टूट कर
झड़ जाना तय है !

साधना वैद

Monday, January 28, 2013

अरेंज्ड मैरिज या लव मैरिज






जीवन की ऊबड़ खाबड़ राहों पर विवाह की गाड़ी को यदि फर्राटे से चलाना चाहते हैं तो गाड़ी का सही हालत में होना बहुत ज़रूरी है ! चारों पहियों का भी उचित रखरखाव होना चाहिये ! प्यार के ट्यूब पर विश्वास का, समर्पण के ट्यूब पर परस्पर सम्मान का, समझदारी के ट्यूब पर परिपक्वता का और त्याग के ट्यूब पर धैर्य का मज़बूत टायर चढ़ा होना चाहिये साथ ही पीछे डिकी में क्षमा के ट्यूब पर समझौते का टायर चढ़ी स्टेपनी की व्यवस्था करना भी ना भूलें ! अहम् वादी सोच के एक्सेलरेटर पर संयम का ब्रेक पूरी तरह से लगता हो और गाड़ी की टंकी हर हाल में निभाने की दृढ़ इच्छाशक्ति के प्रीमियम पेट्रोल से भरी हो ! ड्राइविंग सीट पर बैठ कर स्टीयरिंग सम्हालने वाला व्यवहार कुशलता के सभी ट्रैफिक नियमों का दक्षता से अनुपालन करता हो तो फिर शादी चाहे अरेंज्ड हो या प्रेमजनित हो उसे सफल होने से कोई नहीं रोक सकता ! दरअसल विवाह की सफलता इस पर निर्भर नहीं होती कि शादी माता-पिता की पसंद से हुई है या युवक युवती की अपनी पसंद से ! जिन व्यक्तियों की सोच में परिपक्वता है वे विपरीत एवं विषम परिस्थतियों का सामना भी समझदारी से कर ले जाते हैं और अपने वैवाहिक जीवन पर कोई आँच नहीं आने देते !
मेरे विचार में प्रेम विवाह आज के समय की अनिवार्यता बन चुका है ! गुज़रे वक्तों में सामाजिक व्यवस्था कुछ ऐसी थी कि विवाह के पश्चात स्त्री और पुरुष दोनों के कार्य क्षेत्र अलग-अलग बँटे हुए थे ! पुरुष घर से बाहर जाकर कमा कर लाता था और स्त्री गृह कार्यों का संचालन और परिवार के सभी छोटे बड़े सदस्यों और बाल बच्चों की देखभाल करती थी ! पुरुष घर में आकर सभी जिम्मेदारियों से मुक्त हो अपनी थकान उतारता था और स्त्री उसकी हर ज़रुरत का ख्याल रखने में ही अपने पत्नी धर्म की सफलता को आँकती थी ! लिहाजा कहीं टकराव का प्रश्न ही नहीं उठता था ! सामाजिक व्यवस्था कुछ ऐसी भी थी कि युवक युवतियाँ एक दूसरे के संपर्क में कम ही आते थे तो प्रेम विवाह के दृष्टांत भी कम ही दिखाई देते थे ! अपवाद हर युग में होते हैं ! आज के युग में लड़कियाँ सुशिक्षित और कामकाजी हैं और अपने कैरियर को गंभीरता से लेती हैं ! ऐसी स्थिति में उन्हें ऐसे जीवनसाथी की ज़रुरत होती है जो उनकी आवश्यकताओं और बाध्यताओं को समझे और उनका घर के कामों में हर तरह से सहयोग करे क्योंकि उन्हें भी अपनी नौकरी के लिए घर से बाहर जाना होता है ! ऐसा तभी सम्भव हो सकता है जब दोनों एक दूसरे को भली प्रकार समझते हों और एक दूसरे की भावनाओँ और परेशानियोँ को हल करने के लिये मानसिक रूप से तत्पर हों !
अरैंज्ड मैरिज में इस अवस्था तक पहुँचने में समय लग जाता है क्योंकि नवविवाहित जोड़ा एक दूसरे की रुचि अभिरुचियों तथा प्राथमिकताओं से नितांत अनभिज्ञ होता है ! फिर यह भी एक सत्य है कि हमारे समाज में लोगों का अधिकाँश प्रतिशत अभी भी पुरुषवादी मानसिकता से ग्रस्त है ! गृहकार्यों में पत्नी का हाथ बँटाना आज भी कई युवकों को नागवार गुज़रता है और समय की माँग को समझ कर जो लोग पत्नी की सहायता करने की कोशिश करते हैं उनका खूब मज़ाक भी उड़ाया जाता है ! इन्हीं बातों को लेकर तकरार बढ़ जाती है ! घर परिवार के सदस्य यदि समझदार नहीं होते हैं तो वे आग में घी डालने का कार्य करते हैं और यहाँ स्त्री पुरुष दोनों के अहम् टकराने लगते हैं ! अरेंज्ड मैरिज में दोनों ही शादी करवाने के लिए ज़िम्मेदार माता-पिता को दोष देते हैं और शादी टूटने के कगार पर पहुँच जाती है !
प्रेम विवाह में अक्सर तो ऐसी स्थितियाँ उत्पन्न ही कम होती हैं क्योंकि दोनों ही एक दूसरे को पहले से ही जानते भी हैं, समझते भी हैं और एक दूसरे को चाहते भी हैं इसलिए वे एक दूसरे की भावनाओं का सम्मान भी करते हैं और सहयोग भी ! फिर शादी का निर्णय क्योंकि स्वयं उनका अपना होता है इसलिये अन्य किसीको दोष देने की गुंजाइश ही नहीं बचती इसलिये यदि ऐसी स्थितियाँ उत्पन्न होती भी हैं तो वे परस्पर सहयोग से उन्हें सम्हालने की कोशिश में जुट जाते हैं !
पुराने वक्तों में जब विवाह कम उम्र में कर दिये जाते थे लड़कियों की परवरिश एक तरह से ससुराल में ही होती थी ! उनके व्यक्तित्व का निर्माण ही ससुराल के वातावरण और प्रथा परम्पराओं के अनुरूप होता था ! ससुराल के हर सदस्य की आदतों और पसंद नापसंद से वे भली भाँति परिचित होती थीं और उन्हें तदनुरूप अपने आपको ढालने में कभी कोई परेशानी नहीं होती थी बल्कि वे उसे ही सबसे सही और आदर्श व्यवस्था मान लेती थीं ! लेकिन आज के युग में जबकि विवाह की उम्र बढ़ गयी है और शादी के समय तक लड़कियों के व्यक्तित्व का पूरी तरह से ना केवल विकास हो जाता है बल्कि वे अपने विचारों में एक प्रकार से दृढ़ भी हो जाती हैं ऐसे में उनके स्वभाव का लचीलापन समाप्त हो जाता है और उन्हें ससुराल के वातावरण के साथ सामंजस्य बैठाने में कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है ! लेकिन ना तो उनकी आदतें बदल पाती हैं ना ही सोच ! ऐसे में अरेंज्ड मैरिज में अधिक बाधाएं आती हैं ! क्योंकि ससुराल के तौर तरीकों के अनुसार अपनी जीवनचर्या को बदल पाना उनके लिए संभव नहीं हो पाता ! इससे अनेक प्रकार की गलतफहमियाँ पैदा हो जाती हैं और संबंधों में कड़वाहट आ जाती है ! परिणामस्वरुप वैवाहिक सम्बन्ध विघटन के द्वार पर पहुँच जाता है ! और क्योंकि नव विवाहित जोड़े में परस्पर भी कोई रागात्मक सम्बन्ध विकसित नहीं हो पाता इसलिये वे एक दूसरे को भावनात्मक संबल देने के बजाय आपस में लड़ने झगड़ने में, एक दूसरे पर दोषारोपण करने में और माता-पिता को दोष देने में लग जाते हैं !
प्रेम विवाह में आसानी होती है क्योंकि यहाँ पति पत्नी एक दूसरे की आदतों और चारित्रिक विशेषताओं से ना केवल परिचित होते हैं वरन कदाचित उनसे प्रभावित भी होते हैं और उन्हें पसंद भी करते हैं इसलिए यहाँ अहम् के टकराव का कोई प्रश्न नहीं उठता बल्कि घर वालों की नाराज़गी को दूर करने के लिए भी पति पत्नी एक दूसरे की कमियों को ढँकने की भरपूर कोशिश करते हैं और एक दूसरे का दृष्टिकोण घर वालों के सामने प्रस्तुत कर सुलह कराने का प्रयत्न भी करते हैं !
प्रेम विवाह का एक और सबसे बड़ा फ़ायदा जो मुझे दिखाई देता है वह यह है कि यहाँ दहेज़ लोभियों को अपने बेटे की बोली लगाने के मौके नहीं मिल पाते ! ना ही बेटी के अभिभावकों को हर समय जन्मत्रियाँ, बेटी की हर पोज़ में तरह-तरह की  तस्वीरें और शिक्षा दीक्षा तथा खानदान का सारा बायोडाटा लेकर यात्रा के लिए अपना सूटकेस पैक रखने की ही ज़रुरत होती है ! प्रेम विवाह प्राय: बिना लालच और लोभ के कम खर्च वाले होते हैं ! और जिन्हें सामाजिक स्वीकृति मिलने का भय होता है ऐसे जोड़े तो प्राय: चंद दोस्तों की उपस्थिति में बिना किसी विशेष खर्च के मंदिर में ही विवाह सूत्र में बँध जाते हैं और अपने माता पिता के सर से खर्च का एक बहुत बड़ा बोझ उतार देते हैं ! इसका महत्त्व माता-पिता उस वक्त समझें या ना समझें लेकिन कालान्तर में अवश्य समझ जाते हैं और तब मन से बच्चों को आशीर्वाद दे वे उनके विवाह को मान्यता भी देते हैं और स्वीकृति भी !
प्रेम विवाह में लड़के लड़कियाँ बेवजह के देखने दिखाने की यंत्रणा से भी बच जाते हैं ! विशेष रूप से जो लड़कियाँ देखने में कम सुन्दर होती हैं उन्हें बार-बार रिजेक्ट किये जाने का अपमान सहना पड़ता है जिसकी वजह से उनके मन में हीन भावना गहरी जड़ें जमा लेती है ! अरेंज्ड मैरिज में इस प्रक्रिया से बचने का कोई उपाय नहीं है ! बार-बार अतिथियों के दल के दल घर में आते हैं ! उनकी आवभगत के लिए कई उपक्रम और खर्च किये जाते हैं ! शादी के खर्च, बारातियों की खातिर और दहेज़ की लम्बी फेहरिस्त पर चर्चाएँ होती हैं और अंत में लड़की को देख कर वे जब अस्वीकृति ज़ाहिर कर चल देते हैं तो घर के वातावरण पर बड़ा नकारात्मक असर पड़ता है ! एक और असफलता का मंजर देख माता-पिता निराश हो जाते हैं और लड़की अपराधबोध से ग्रस्त हो और दुखी हो जाती है ! ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति कभी-कभी जानलेवा भी हो जाती है ! प्रेम विवाह में ऐसी भयावह स्थितियाँ पैदा नहीं होतीं क्योंकि प्रेम करने वाले व्यक्ति सूरत की सुन्दरता के नहीं सीरत की सुन्दरता के कायल होते हैं ! वो कहते हैं ना ‘द ब्यूटी लाइज इन बिहोल्डर्स आइज़’, इसलिए अपने प्रेमी या प्रियतमा की सुन्दरता पर उन्हें किसी और की पसंद और स्वीकृति की मोहर की कोई ज़रुरत नहीं होती !
इसलिए मेरा वोट तो प्रेम विवाह को ही जाता है ! वर्तमान समय में जबकि दो बालिग परिपक्व सोच वाले, सुशिक्षित, महत्वाकांक्षी और प्रबुद्ध व्यक्ति विवाह बंधन में बँधने के लिए जा रहे हों तो अभिभावकों को अपना कर्तव्य उन्हें आशीर्वाद देने तक और सुख दुःख में उन्हें भरपूर सहयोग और प्यार देने तक ही सीमित कर लेना चाहिये ! समय-समय पर जब उन्हें आवश्यकता हो तो उनका मार्गदर्शन भी करना चाहिये ! अपनी पसंद का पात्र चुन कर और जन्मपत्री लेकर पंडितों के यहाँ गृह नक्षत्र और गुण मिलवाने की कवायद अभिभावकों को बिल्कुल छोड़ देनी चाहिये ! कितने भी गुण मिलवा लें यदि लड़के लड़की की अभिरुचियाँ नहीं मिलेंगी, वे एक दूसरे को सम्मान देने के योग्य नहीं समझेंगे तो वे आपकी पसंद को भी मन से नहीं अपनी सकेंगे ! ऐसे में उनके विवाहित जीवन की गाड़ी भविष्य की पथरीली राहों पर सरपट दौड़ पायेगी इसकी भी कोई गारंटी नहीं होगी !

साधना वैद
  

Thursday, January 24, 2013

कितना चलूँ ...




अब तो राह की धूल भी
पैरों के लगातार चलने से
पुँछ सी गयी है ,
और कच्ची पगडंडी पर
ज़मीन में सख्ती से
दबे नुकीले पत्थर
तलवों को घायल कर
लहू से लाल हो चले हैं !
एक निष्प्राण होती जा रही
प्राणवान देह का
इस तरह बिना रुके
चलते ही जाने का मंज़र
हवायें भी दम साधे
देख रही हैं !
मैं चल रही हूँ
चलती ही जा रही हूँ
क्योंकि संसार की झंझा में
रुकने के लिए कहीं कोई
ठौर नहीं है !
अपनी प्रतिभा,
अपनी योग्यता सिद्ध
करने के लिए
और कितने इम्तहान
देने होंगे मुझे !
छोटी सी ज़िंदगी के
थोड़े से दिन
सुख से जी लेने की
चाहना के लिए 
और कितनी बार
इस तरह मरना होगा मुझे !
हाँ ! लेकिन मुझे तो
तिल-तिल कर
हर रोज़ इसी तरह  
मरना ही होगा   
मुझे मिसाल जो बनना है
आने वाली पीढ़ियों के लिए !
इसलिये खुद के जीवन में
चाहे अमावस का अँधियारा
चहुँ ओर पसरा हो 
दीपक की तरह
स्वयं को जला कर मुझे
तुम्हारे लिए तो
राह रौशन करनी ही होगी !
ताकि तुम्हारे लिए
यह सफ़र आसान हो जाये !
और जब तुम
पीछे मुड़ कर देखो
तुम्हें अपने सिर पर
मेरे हाथों का मृदुल
स्पर्श मिल सके
और तुम्हारे
आशंकाओं से व्यग्र
भयभीत ह्रदय को
अपना भार हल्का
करने के लिये
मेरी ममता भरी
बाहों का संबल
मिल सके !
तुम निश्चिन्त हो
अपनी राह चलती जाना
मैं हूँ तुम्हारे पीछे
तुम्हें सम्हालने के लिए,
तुम्हारे साथ
तुम्हारा हाथ थामे
हर कदम पर
तुम्हें आश्वस्त करने के लिए,
तुम्हारे आगे
तुम्हें रास्ता दिखाने के लिए
ये जो राह पर
रक्त रंजित
पैरों के निशान  
तुम देख रही हो  
वो मेरे ही पैरों के तो हैं
मुझे मिली हो या न मिली हो
तुम्हें अपनी मंजिल
ज़रूर मिलेगी !
क्योंकि मैं आदि काल से
ऐसे ही चलती जा रही हूँ और
अनंत काल तक यूँ ही
चलती रहूँगी !
जब तक तुम न रुकोगी
मेरे पैर चाहे कितने भी
लहूलुहान हो जायें
वे भी ऐसे ही चलते रहेंगे
आखिर मुझे तुम्हारी
हिफाज़त जो करनी है !

साधना वैद