पंछियों के स्वर मधुर खोने लगे
चाँद तारे क्लांत हो सोने लगे
क्षीण होती प्रिय मिलन की आस है
मलिन मुख से जा रहा मधुमास है !
वन्दना के स्वर शिथिल हो मौन हैं
करें किसका गान अतिथि कौन है
भ्रमित नैनों में व्यथा का भास है
भाव विह्वल जा रहा मधुमास है !
राह कितनी दूर तक सुनसान है
पंथ की कठिनाइयों का भान है
किन्तु मन में ढीठ सा विश्वास है
‘आओगे तुम’ जा रहा मधुमास है !
प्रेम की प्रतिमा सजाने के लिए
अर्चना के गीत गाने के लिये
तृषित उर में भावना का वास है
चकित विस्मित ठगा सा मधुमास है !
आओगे कब फूल मुरझाने लगे
खुशनुमां अहसास भरमाने लगे
जतन से थामे हूँ जो भी पास है
आ भी जाओ जा रहा मधुमास है !
साधना वैद
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