Sudhinama
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Monday, May 5, 2014
उन्मुक्त पंछी
उन्मुक्त है तू अब
खुला हुआ है
विस्तृत आसमान
तेरे सामने
भर ले अपने पंखों में जोश
छू ले हर ऊँचाई को
और कर दे
अपने हस्ताक्षर
हर सितारे के भाल पर !
साधना वैद
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