क्षितिज तक पसरी
विशाल धरा का
एक लघु सा कण
अथाह असीम रत्नाकर
की
एक छोटी सी बूँद
अपार सृष्टि के अनंत
विस्तार का
एक नन्हा सा अणु
बृह्माण्ड में
अवस्थित कोटिश: सितारों में
एक नन्हा सा सितारा
हाँ ! है वजूद मेरा
कदाचित सबसे छोटा
सबसे नगण्य
शायद ना के बराबर
लेकिन हुंकार है
मेरी
उतनी ही घनघोर
हौसला है मेरा
उतना ही बुलंद
पहचान है मेरी
उतनी ही पुख्ता
चमक है मेरी
उतनी ही प्रखर
क्योंकि
हर विराट का बीज
मुझमें ही निहित है
मुझसे ही जन्म लेता
है
और अंत में
मुझमें ही समाहित
हो जाता है
मैं हूँ
हर महान
हर विराट का
हर अनंत
हर अथाह का
हर असीम
हर अपार का
एक नन्हा सा बीज
और मुझमें ही
विकसित होता है
वह सभी कुछ जो
इस समस्त जगत को
अनादि काल से
विस्मित, हर्षित
पुलकित, चमत्कृत
और कभी-कभी
भयभीत भी
करता आ रहा है !
अनादि काल से
विस्मित, हर्षित
पुलकित, चमत्कृत
और कभी-कभी
भयभीत भी
करता आ रहा है !
साधना वैद
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