भरा हुआ हो कलुष मनुज के हृदयों में
संस्कार की बात वहाँ बेगानी है
घर घर में बसते हों रावण कंस जहाँ
मानवता की बात वहाँ बेमानी है !
मूल्यहीन हो जिनके जीवन की शैली
आत्मतोष हो ध्येय चरम बस जीवन का
नहीं ज़रा भी चिंता औरों के दुःख की
आत्मनिरीक्षण की आशा बेमानी है !
परदुख कातरता, पर पीड़ा, करुणा का
भाव नहीं हो जिनके अंतर में तिल भर
पोंछ न पाए दीन दुखी के जो आँसू
वैष्णव गुण का ज्ञान वहाँ बेमानी है !
कोई तो समझाए इन नादानों को
जीवनमूल्य सिखाये इन अनजानों को
जानेंगे जब त्याग, प्रेम की महिमा को
मानेंगे निज हित चिंता बेमानी है !
चित्र - गूगल से साभार
साधना वैद
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