खिंच गयी थी मेरे दिल पर भी एक गहरी लकीर
जब बँटवारे के प्रस्ताव को अंजाम देने की खातिर
अधिकारियों की टीम नाप जोख करने
हमारे घर में आई थी
और कुदाल की हर चोट के साथ हो गए थे
मेरे दिल के भी कई टुकड़े
जब घर के आँगन के बीचों बीच
दीवाल उठाने को मिस्त्री ने
बुनियाद की पहली ईंट लगाई थी !
वही आँगन जहाँ सालों हमने मिल कर
जाने कितने मनों बड़ी, मंगौड़ी,
कचरी, पापड़, चिप्स, सेव बनाए
वही आँगन जहाँ धूप में बैठ हँसते गाते
जाने कितने स्वेटर, मफलर, शॉल बुने
जाने कितने मर्तबान भर आम, मिर्च,
नीबू, कटहल के अचार बनाए !
जहाँ न जाने कितने जगराते हुए
जाने कितनी ढोलकें बजीं
जाने कितने गीत संगीत हुए
जाने कितनी पायलें बजीं !
जहाँ नन्हे शिशुओं ने चलना सीखा
छोटे बच्चों ने साइकिल चलाई,
जहाँ खेल खेल में हुए कई घमासान
और बड़ों ने बीच बचाव कर सुलह कराई !
कई साल पहले जिस जगह पर
नई बहू के स्वागत के लिए
सासू जी ने मेरी आरती उतारी थी
आज ठीक उसी जगह से
विभाजन की यह रेखा गुज़री है,
तब शायद मेरे पैर ही रेखा के इधर उधर थे
आज मेरे समूचे अस्तित्व को दो भागों में
विभक्त करती हुई यह रेखा गुज़री है !
नहीं जानती सब किस नज़रिए से देखते हैं
और झेल जाते हैं इन सब विघटनकारी बातों को,
हम तो बने रह गए ‘इमोशनल फूल’
सबकी नज़रों में, नहीं सह पाए
आलगाव की इन घातों प्रतिघातों को !
चित्र - गूगल से साभार
साधना वैद
बहुत दमदार ,बेहद प्रभावित करने वाली रचना ,हमेशा की तरह
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद अजय जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteएक भूली हुई दास्तां याद आ गई दीदी, आपकी कलम से कोई भी विषय अछूता नहीं रहा।
ReplyDeleteहृदय से बहुत बहुत धन्यवाद आपका मीना जी ! यह शायद हर घर की कहानी है ! आभार आपका !
Deleteआज के जीवन में जो घट रहा वही लिखा है लेकिन कल सबका एक ही था संयुक्त और सम्मिलित लोगों का परिवार । बहुत अच्छा लिखा ।
ReplyDeleteजी ! बहुत बहुत आभार आपका रेखा जी ! हर्षित हूँ और आशान्वित भी कि ब्लॉग के पुराने और सुहाने दिन लौटने को हैं ! हृदय से धन्यवाद आपका !
Deleteनमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में रविवार 12 अप्रैल 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
सार्थक ।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद शास्त्री जी ! आभार आपका !
Deleteबहुत शानदार अभिव्यक्ति |
ReplyDelete|
हार्दिक धन्यवाद जीजी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद केडिया जी ! आभार आपका !
Deleteकितना दर्द है आपकी रचना में, मगर यह हकीकत है इससे मुंह भी नहीं मोड़ा जा सकता। बहुत अच्छी रचना।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद शानू जी ! बहुत बहुत स्वागत है आपका मेरे ब्लॉग पर ! आपका आगमन सुखद अनुभूति दे गया ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteआदरणीय साधना जी, बंटवारा वो भी घर का जीवन की सबसे मर्मांतक घटना या कहूँ दुर्घटना है । संयुक्त परिवार के संवेदनशील व्यक्ति के लिए ये हमेशा हरा रहने वाला घाव है , तो स्वार्थी लोगों के लिए सबसे बड़ा जख्म। सार्थक रचना को मार्मिकता से भरपूर है। 👌👌👌 हार्दिक शुभकामनायें। सादर ---
ReplyDeleteआपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार रेणु जी ! सत्य कहा आपने बँटवारे का जख्म नासूर बन जाता है जो कभी नहीं भर पाता !
Deleteस्वार्थी लोगों के लिए सबसे बड़ा जश्न पढ़ें | गलती के लिए खेद है |
ReplyDeleteजी ! अवश्य !
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