Saturday, July 25, 2020

तिजोरी




कितने ही सपने जो सच न हुए कभी,
कितने ही गीत जो गाये नहीं गये कभी,
ढेर सारे किस्से जिनका अधूरा रहना ही तय था,
तमाम सारी हसरतों की, ख्वाहिशों की
पुरानी धुरानी जर्जर तस्वीरें
जिन्हें सालों से बरसते हुए आँसुओं ने
भिगो भिगो कर बदरंग कर दिया है !
मेरे दिल की तिजोरी में बस
इसी तरह का फालतू सामान बाकी बचा है
कई दिनों से इस तिजोरी की चाबी
हथियाने की जुगत में थे ना तुम ?
लो यह चाबी और ले जाओ
जो ले जाना चाहते हो
चाहो तो सब कुछ ले जाओ
और मुक्त कर दो मुझे इस बोझ से
कि अब दिल की दीवारें भी थक चली हैं
और यह बोझ अब मुझसे
ढोया नहीं जाता !



साधना वैद

चित्र - गूगल से साभार

9 comments:

  1. कई दिनों से इस तिजोरी की चाबी
    हथियाने की जुगत में थे ना तुम ?
    लो यह चाबी और ले जाओ
    जो ले जाना चाहते हो
    चाहो तो सब कुछ ले जाओ
    और मुक्त कर दो मुझे इस बोझ से

    मर्मस्पर्शी सृजन

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    1. हार्दिक धन्यवाद अनिल जी ! बहुत बहुत आभार आपका !

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  2. बहुत सुन्दर।
    आप अन्य ब्लॉगों पर भी टिप्पणी किया करो।
    तभी तो आपके ब्लॉग पर भी लोग कमेंट करने आयेंगे।

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    1. हृदय से आपका बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार शास्त्री जी ! सहमत हूँ आपके तर्क से ! क्या करूँ समय इतना सीमित होता है कि चाह कर भी हर ब्लॉग पर नहीं जा पाती ! इसका खामियाजा भी भुगतती हूँ लेकिन एक गृहणी की ड्यूटी की कोई समय सीमा नहीं होती और ना ही दायित्वों का अंत होता है ! फिर भी प्रयास करूँगी और अन्य ब्लॉग्स पर भी कमेन्ट देने की कोशिश करूँगी ! हार्दिक आभार आपका !

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  3. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 26 जुलाई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  4. आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार यशोदा जी ! सप्रेम वन्दे !

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  5. बेहद खूबसूरत रचना।

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  6. बहुत सुन्दर

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    1. हार्दिक धन्यवाद केडिया जी ! बहुत बहुत आभार आपका !

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