Wednesday, May 22, 2024

भूल हमसे हो गयी

 




उम्र के इस मोड़ पर पहचान जैसे खो गई 

हैं पशेमाँ सोच कर क्या भूल हमसे हो गई !

 

यूँ ज़माने ने बहुत आगाह था हमको किया

चाह बैठे हम तुम्हें यह भूल हमसे हो गई !

 

खोलते जो आँख दिख जातीं कई दुश्वारियाँ

बंद आँखों देखने की भूल हमसे हो गई !

 

रौंद डाला हर कली को नोंच कर जिस शख्स ने

बागबाँ उसको ही समझे भूल हमसे हो गयी !

 

खो गईं कितनी पुकारें इन खलाओं में कहीं  

समझ लोगे मौन भी यह भूल हमसे हो गयी !

 

सब्ज़ तो होते नहीं सब बाग़ सहरा में मगर

बारिशों की आस रखना भूल हमसे हो गयी !

 

भूल से भी भूल कर अब कुछ न चाहेंगे कभी

भूलना फितरत हमारी भूल हमसे हो गयी !


साधना वैद 

7 comments:

  1. भूलना फितरत हमारी
    भूल हमसे हो गयी
    शानदार ग़ज़ल
    आभार

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    1. हार्दिक धन्यवाद यशोदा जी ! बहुत बहुत आभार आपका !

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  2. बहुत बहुत सुन्दर सराहनीय

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    1. हार्दिक धन्यवाद आलोक जी ! बहुत बहुत आभार आपका !

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  3. समझ लोगे मौन भी यह भूल हमसे हो गयी !
    बहुत खूबसूरत ग़ज़ल।

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    1. हार्दिक धन्यवाद जिज्ञासा जी ! बहुत बहुत आभार आपका !

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  4. बहुत सुन्दर रचना

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