tag:blogger.com,1999:blog-8618924645821194545.post2780585540358921784..comments2024-03-19T13:11:40.208+05:30Comments on Sudhinama: तुम्हारी याद में माँSadhana Vaidhttp://www.blogger.com/profile/09242428126153386601noreply@blogger.comBlogger20125tag:blogger.com,1999:blog-8618924645821194545.post-65014616488920705972012-02-25T10:28:24.585+05:302012-02-25T10:28:24.585+05:30वाह मन मोह लिया कविता ने,बहुत ह्रदयस्पर्शीवाह मन मोह लिया कविता ने,बहुत ह्रदयस्पर्शीAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8618924645821194545.post-62387671425979761402011-08-22T16:00:08.393+05:302011-08-22T16:00:08.393+05:30ओह!! मन भिगा गयी ये रचना...बेहद मार्मिक कविता लिख ...ओह!! मन भिगा गयी ये रचना...बेहद मार्मिक कविता लिख डाली है...हृदयस्पर्शी..rashmi ravijahttps://www.blogger.com/profile/04858127136023935113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8618924645821194545.post-3250989777102112932011-08-22T00:07:41.084+05:302011-08-22T00:07:41.084+05:30भावपूर्ण अभिव्यक्ति...माँ को नमन!! भावुक कर दिया.भावपूर्ण अभिव्यक्ति...माँ को नमन!! भावुक कर दिया.Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8618924645821194545.post-35745449678896516022011-08-19T22:48:22.447+05:302011-08-19T22:48:22.447+05:30सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ शानदार रचना! बेहतर...सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ शानदार रचना! बेहतरीन प्रस्तुती!<br />मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-<br />http://seawave-babli.blogspot.com/<br />http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/Urmihttps://www.blogger.com/profile/11444733179920713322noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8618924645821194545.post-19414634498705352772011-08-19T20:50:55.095+05:302011-08-19T20:50:55.095+05:30सब कुछ कितना बदल गया है ना माँ
कितना नकली, कितना ...सब कुछ कितना बदल गया है ना माँ <br />कितना नकली, कितना सतही ,<br />कितना बनावटी, कितना दिखावटी <br />bhawookta se bhari bahut hi komal ahsaas........bemisaal.mridula pradhanhttps://www.blogger.com/profile/10665142276774311821noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8618924645821194545.post-67889984370619493142011-08-17T20:37:17.406+05:302011-08-17T20:37:17.406+05:30सत्य कहा है.. आजकल ज़्यादातर त्यौहार सिर्फ नाम के ल...सत्य कहा है.. आजकल ज़्यादातर त्यौहार सिर्फ नाम के लिए ही मनाए जा रहे हैं..<br />बहुत ही भावुक पोस्ट..Pratik Maheshwarihttps://www.blogger.com/profile/04115463364309124608noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8618924645821194545.post-79194322000326484792011-08-16T13:52:19.806+05:302011-08-16T13:52:19.806+05:30बहुत ही भावमय करती शब्द रचना ।बहुत ही भावमय करती शब्द रचना ।सदाhttps://www.blogger.com/profile/10937633163616873911noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8618924645821194545.post-76388140760309874902011-08-15T10:29:52.789+05:302011-08-15T10:29:52.789+05:30स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक बधाई और शुभकामनायें.स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक बधाई और शुभकामनायें.Kunwar Kusumeshhttps://www.blogger.com/profile/15923076883936293963noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8618924645821194545.post-79900647167350295832011-08-15T07:48:17.487+05:302011-08-15T07:48:17.487+05:30बहुत मर्मस्पर्शी कविता है |सच मैं सोच नहीं पाते वे...बहुत मर्मस्पर्शी कविता है |सच मैं सोच नहीं पाते वे बीते दिन कहाँ गम हो गए |<br />अब तो बरसों बीत गए लहरिया माँ के हाथ का रंगा हुआ पहने |<br />आशाAsha Lata Saxenahttps://www.blogger.com/profile/16407569651427462917noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8618924645821194545.post-38128180506243761002011-08-14T18:05:14.202+05:302011-08-14T18:05:14.202+05:30अब तो बस जैसे
त्यौहार मनाने की रीत को ही
जैसे तैस...अब तो बस जैसे <br />त्यौहार मनाने की रीत को ही<br />जैसे तैसे निभाया जाता है !<br /><br /> शत प्रतिशत यथार्थअजय कुमारhttps://www.blogger.com/profile/15547441026727356931noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8618924645821194545.post-29875796580405793402011-08-14T17:56:24.902+05:302011-08-14T17:56:24.902+05:30खूबसूरत और भावनात्मक प्रस्तुति.खूबसूरत और भावनात्मक प्रस्तुति.Kunwar Kusumeshhttps://www.blogger.com/profile/15923076883936293963noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8618924645821194545.post-76258231229710615652011-08-14T15:03:29.086+05:302011-08-14T15:03:29.086+05:30साधना जी ,
आपने तो बरबस ही स्मृतियों के दायरे मे...साधना जी , <br /><br />आपने तो बरबस ही स्मृतियों के दायरे में ला खड़ा किया ..आज के सन्दर्भ में किसी भी त्यौहार को मनाने का वो आनन्द ही न जाने कहाँ चला गया है ..आप कितना ही कुछ आज अपने बच्चों के लिए कर लें पर जैसे त्यौहार हमने अपने बचपन में मनाये थे वो रस सूख गया है ..अब वक्त कहाँ है किसी के पास ... पहले झूला झूलने के लिए पास पड़ोस में निमंत्रित भी किया जाता था ..काम खत्म कर सारी स्त्रियां एक जगह जुटती थीं साथ में बच्चे भी ..और गाया जाता था ..<br />नन्ही नन्ही बुंदियाँ रे सावन का मेरा झूलना या फिर शिवशंकर चले कैलाश बुंदियाँ पड़ने लगीं .. <br /><br />कितनी मीठी यादें हैं .. अब फ़्लैट में रहते कहाँ किसी डाल पर झूले के ख्वाब देखना ..<br /><br />पूरी रचना उन्हीं यादों को ताज़ा करती हुई ... माँ के बाद मायका भी कहाँ रहता है ..बस यादें हैं जो मन भिगो जाती हैं ..<br /><br />बहुत अच्छी प्रस्तुतिसंगीता स्वरुप ( गीत )https://www.blogger.com/profile/18232011429396479154noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8618924645821194545.post-89093777941551153902011-08-14T13:40:33.808+05:302011-08-14T13:40:33.808+05:30सच में यादें इसी तरह से हमें जीवन में हर मौके पर घ...सच में यादें इसी तरह से हमें जीवन में हर मौके पर घेर लेती हैं और यह भी सच है की आज पर्व मनाना एक रीत निभाना भर रह गया .पहले वाला उत्साह अब नहीं .<a href="http://bhartiynari.blogspot.com" rel="nofollow">devi chaudhrani</a>Shikha Kaushikhttps://www.blogger.com/profile/12226022322607540851noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8618924645821194545.post-12979814517531799352011-08-14T13:39:00.440+05:302011-08-14T13:39:00.440+05:30yadon ke galiyaron se nikalti ye samvedansheel rac...yadon ke galiyaron se nikalti ye samvedansheel rachna bahut kuchh sawan me hara sa kar jati hai....to kyu na aap...ham bhi aisi hi maayen ban jaye jo ye sab apne baccho ke liye karain.<br /><br />sunder abhivyakti.अनामिका की सदायें ......https://www.blogger.com/profile/08628292381461467192noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8618924645821194545.post-60759398254365445472011-08-14T13:01:04.407+05:302011-08-14T13:01:04.407+05:30सब कुछ कितना बदल गया है ना माँ
कितना नकली, कितना स...सब कुछ कितना बदल गया है ना माँ<br />कितना नकली, कितना सतही ,<br />कितना बनावटी, कितना दिखावटी ,<br />जैसे सब कुछ यंत्रवत खुद ब खुद होता चला जाता है ,<br />पर जहाँ मन इस सबसे बहुत दूर असम्पृक्त, अलग,<br />छिटका हुआ पड़ा हो वहाँ भला किसका मन रम पाता है !<br /><br />भावो को बखूबी उकेरा है।vandana guptahttps://www.blogger.com/profile/00019337362157598975noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8618924645821194545.post-26545554947698096302011-08-14T12:17:24.447+05:302011-08-14T12:17:24.447+05:30sabkee peedaa ko aapane kavitaa men sahej diyaa ha...sabkee peedaa ko aapane kavitaa men sahej diyaa hai kyaa kahoo aur kaise kahoon aaj to shabd bhee thode pad gaye hain bahut achchaa meree maan bhee yaad aagaeeaur aaj mai khub royee maa teree yaad menbeena sharmanoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8618924645821194545.post-41471245857686963992011-08-14T11:26:30.429+05:302011-08-14T11:26:30.429+05:30पर जहाँ मन इस सबसे बहुत दूर
असम्पृक्त, अलग, छिटका...पर जहाँ मन इस सबसे बहुत दूर<br /><br />असम्पृक्त, अलग, छिटका हुआ पड़ा हो<br /><br />वहाँ भला किसका मन रम पाता है !<br />अनरसे ...पुए..सच में माँ के जाने के बाद भूल गयी हूँ मैं भी बहुत चीज़ों का स्वाद......सावन बीतने पर उन रंगीन ...बीते हुए सावन की याद बहुत आ रही है ....!!बहुत ही सुंदर भाव से लिखी रचना ....मर्म तक पहुँच रही है ....!!<br />बधाई एवं शुभकामनायें .Anupama Tripathihttps://www.blogger.com/profile/06478292826729436760noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8618924645821194545.post-58499710437874958402011-08-14T10:56:08.749+05:302011-08-14T10:56:08.749+05:30आदरणीया दीदी साधना वैद जी
सादर प्रणाम !
इतनी मर...<b><i>आदरणीया दीदी साधना वैद जी</i></b> <br />सादर प्रणाम !<br /><br />इतनी मर्मस्पर्शी कविता !!<br /><b>यह सावन भी बीत गया मां ,<br />…किसी पेड़ की डालियों पे झूले नहीं पड़े ! <br />न चौमासा और बिरहा की तान सुनाई दी <br />न कजरी, मल्हार के सुरीले बोलों ने कानों में रस घोला ! </b> <br /> भावातिरेक से परिपूर्ण !<br /> <br /><b>जबसे तुम गयी हो मां<br /> न किसी ने जीवन के विविध रंगों से मेरी लहरिये वाली चुनरी रंगी , <br />न उसमें हर्ष और उल्लास का सुनहरी, रुपहली गोटा लगाया ! <br /><br />न मेरी हथेलियों पर मेंहदी से संस्कार और सीख के सुन्दर बूटे काढ़े , <br />न किसी ने मेंहदी रची मेरी लाल लाल हथेलियों को अपने होंठों से लगा बार-बार प्यार से चूमा ! <br /><br />न किसी मनिहारिन ने कोमलता से मेरी हथेलियों को दबा मेरी कलाइयों पर रंगबिरंगी चूड़ियां चढ़ाईं …<br /><br /> न किसी ने ढेरों दुआएं देकर आशीष की चमकीली लाल हरी चार चार चूड़ियां यूं ही बिन मोल मेरे हाथों में पहनाईं … </b> <br />आपने <b> मां</b> की स्मृति के बहाने बचपन और कैशौर्य और संपूर्ण विगत का स्मरण किया है … <br />जब आप कहती हैं कि-<br /><b>सब कुछ कितना बदल गया है ना मां ,<br /> कितना नकली, कितना सतही , कितना बनावटी, कितना दिखावटी , <br />जैसे सब कुछ यंत्रवत खुद ब खुद होता चला जाता है , <br />पर जहां मन इस सबसे बहुत दूर असम्पृक्त, अलग, छिटका हुआ पड़ा हो वहां भला किसका मन रम पाता है ! <br /> </b> <br />स्पष्ट है , एक विवशता … जिसे स्मृतियों के सहारे स्वीकार कर लिया है ।<br /> आपकी इस कविता के लिए आपको और आपकी लेखनी को आभार सहित नमन !<br />हार्दिक बधाई और मंगलकामनाएं ! <br /><b><a href="http://shabdswarrang.blogspot.com/" rel="nofollow"><br />रक्षाबंधन एवं स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाओ के साथ <br /> </a></b> <br />-राजेन्द्र स्वर्णकारRajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकारhttps://www.blogger.com/profile/18171190884124808971noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8618924645821194545.post-8830275061185274562011-08-14T10:49:35.743+05:302011-08-14T10:49:35.743+05:30यादों के जाल में पुरानी रीतियाँ और भूलते बिसराते स...यादों के जाल में पुरानी रीतियाँ और भूलते बिसराते सम्बन्ध किसी दूसरी ही जगत में ले जाते हैं. बेहद खूबसूरत और भावनात्मक प्रस्तुति.रचना दीक्षितhttps://www.blogger.com/profile/10298077073448653913noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8618924645821194545.post-78095370299662671612011-08-14T09:27:53.295+05:302011-08-14T09:27:53.295+05:30सब कुछ कितना बदल गया है ना माँ
कितना नकली, कितना ...सब कुछ कितना बदल गया है ना माँ <br />कितना नकली, कितना सतही ,<br /> कितना बनावटी, कितना दिखावटी ,<br /> जैसे सब कुछ यंत्रवत खुद ब खुद होता चला जाता है ,<br /> पर जहाँ मन इस सबसे बहुत दूर असम्पृक्त, अलग,<br /> छिटका हुआ पड़ा हो वहाँ भला किसका मन रम पाता है !<br /><br /><br /><br /> अंतस को झकझोरती हुई बेहतरीन रचना.....Dr Varsha Singhhttps://www.blogger.com/profile/02967891150285828074noreply@blogger.com