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Friday, March 12, 2010

श्रीमती ज्ञानवती सक्सैना ‘किरण’ : जीवन परिचय

सुधी पाठकों,
अपनी माँ, श्रीमती ज्ञानवती सक्सैना ‘किरण’, की रचनाओं को आप तक पहुँचाने में हम दोनों बहनों को जिस अपार आनन्द की अनुभूति हो रही है वह वर्णनातीत है ! उनकी संघर्षमय सृजनशीलता, अद्भुत लगन तथा अदम्य इच्छाशक्ति को हमारी यह सविनय श्रद्धांजलि है ! जिन विषम परिस्थितियों और परिवेश में इन कविताओं का सृजन हुआ होगा इसके लिये यह अनुमान लगाना कठिन नहीं कि यह कार्य किसी आसाधारण व्यक्तित्व के हाथों ही सम्पन्न हुआ होगा ! माँ की इस लेखन यात्रा में हम लोग बचपन से ही उनके सहयात्री रहे हैं ! आइये संक्षेप में उनकी जीवन यात्रा के कुछ पड़ावों पर ठहर कर उन संदर्भों पर दृष्टिपात कर लें जिन्होंने निश्चित रूप से उनकी रचनाशीलता को प्रभावित किया होगा !
माँ का जन्म 14 अगस्त 1917 को उदयपुर के सम्मानित कायस्थ परिवार में हुआ ! नानाजी, श्री ज्वालाप्रसादजी सक्सैना, उदयपुर दरबार में राजस्व विभाग में महत्वपूर्ण पद पर आसीन थे एवम तत्कालीन महाराज के अत्यंत घनिष्ठ और विश्वस्त सहायकों में उनका नाम भी प्रमुख रूप से आदर के साथ लिया जाता है ! लेकिन सुख-सुविधा सम्पन्न यह बचपन बहुत अल्पकाल के लिये ही माँ को सुख दे पाया ! मात्र 6 वर्ष की अल्पायु में ही क्रूर नियति ने माँ के सिर से नानाजी का ममता भरा संरक्षण छीन लिया और यहीं से संघर्षों का जो सिलसिला आरम्भ हुआ वह आजीवन अनवरत रूप से चलता ही रहा !
माँ का जन्म जिस युग और परिवेश में हुआ उस युग में महिलाओं को सख्त नियंत्रण और पर्दे में रहना पड़ता था ! घर की चारदीवारी के बाहर की दुनिया उनके लिये नितांत अनजानी हुआ करती थी ! लड़कियों को लड़कों की तुलना में हीन जीवन जीने के लिये विवश होना पड़ता था ! उनके लिये शिक्षा के बहुत सीमित अवसर हुआ करते थे और प्राय: घरेलू काम-काज जैसे पाक कला, कढ़ाई बुनाई, चित्रकारी, सीना पिरोना, दरी कालीन आसन बनाना आदि में दक्षता प्राप्त करना ही उनके लिये आवश्यक समझा जाता था ! माँ अत्यंत कुशाग्र बुद्धि की एक अति सम्वेदनशील महिला थीं ! उन्होंने अपने घर परिवार की किसी भी मर्यादा का कभी उल्लंघन नहीं किया लेकिन अपने बौद्धिक विकास को भी कभी अवरुद्ध नहीं होने दिया ! कन्या पाठशाला में प्राथमिक शिक्षा ग्रहण करने के बाद उन्हें स्कूल जाने के अवसर नहीं मिले जबकि हमारे सभी मामा उच्च शिक्षा ग्रहण कर रहे थे ! हमारे सबसे बड़े मामाजी, श्री सूरज प्रसाद जी सक्सैना, कोटा के एक ख्याति प्राप्त चिकित्सक और सर्जन थे ! माँ ने प्राइवेट विशारद पास किया और इसके उपरांत सन् 1936 में उनका विवाह पिताजी, श्री बृजभूषण लाल जी सक्सैना, के साथ हो गया ! माँ ने जहाँ घरेलू काम-काज में दक्षता प्राप्त की थी वहीं निजी स्तर पर स्वाध्याय कर उन्होंने अपनी रचनाशीलता को भी निखारने का प्रयत्न किया था ! वे बहुत अच्छी कवितायें, कहानियाँ और लेख इत्यादि लिखा करती थीं ! लेकिन उनकी यह प्रतिभा विवाह से पूर्व केवल उन्हीं तक सीमित रही !
विवाहोपरांत माँ ने बुन्देलखण्ड के वैभवशाली ज़मींदार खानदान में कदम रखा ! हमारे बाबा, श्री देवलाल जी सक्सैना, बड़ी आन बान शान वाले रौबीले व्यक्तित्व के स्वामी थे ! ससुराल में मायके से भी अधिक रूढिवादी वातावरण था ! ऐसे रूढ़िवादी वातावरण में, जहाँ लड़कियों पर ही बहुत रोक टोक और वर्जनायें लादी जाती थीं, वहाँ बहुओं पर तो उनसे भी अधिक प्रतिबन्ध लगाये जाते थे ! पर्दा इतना सख्त कि हाथ पैरों की उंगलियाँ भी दिखाई नहीं देनी चाहिये ! बुन्देलखण्ड की भीषण गर्मी और उसमें भी सिर से पाँव तक कपडों की कई कई पर्तों में लिपटे होने के बावजूद ऊपर से चादर भी ओढ़ना अनिवार्य होता था ! घर से बाहर ड्योढ़ी तक अगर जाना हो तो दोनों ओर पर्दे की कनातें तान दी जाती थीं जिनके बीच से होकर दादीजी, माँ व घर की अन्य महिलायें दरवाज़े पर रखी पालकी में जा बैठतीं और कहार उसे उठा कर गंतव्य तक पहुँचा देते !
पिताजी, श्री बृजभूषण लाल जी सक्सैना, सरकारी अफसर थे और अपनी नौकरी के कारण उन्हें नये-नये स्थानों पर स्थानांतरित होकर जाना पड़ता था ! ईश्वर का धन्यवाद कि उन्होंने माँ के अन्दर छिपी प्रतिभा को पहचाना ! ससुराल के रूढ़िवादी वातावरण से पिताजी ने उन्हें बाहर निकाला और अपनी प्रतिभा को निखारने के लिये उन्हें समुचित अवसर प्रदान किये ! माँ ने गृहणी के दायित्वों को कुशलता से निभाते हुए अपनी शिक्षा के प्रति भी जागरूकता का परिचय दिया ! उन्होंने विदुषी, साहित्यलंकार, साहित्यरत्न तथा फिर बी. ए., एम. ए. तथा एल. एल. बी. की उपाधियाँ प्राप्त कीं ! पढ़ने का शौक इतना कि होमियोपैथिक चिकित्सा में भी डॉक्टर की उपाधि प्राप्त कर ली ! शादी से पूर्व मात्र विशारद पास एक अति सामान्य शिक्षित महिला विवाहोपरांत कुछ ही वर्षों में ‘ डॉक्टर ज्ञानवती सक्सैना ‘किरण’ साहित्यलंकार, साहित्यरत्न, एम. ए., एल. एल. बी.’ कहलाई जाने लगी ! इस सबके साथ ही उनका कवितायें, कहानियाँ इत्यादि लिखने का क्रम भी लगातार चलता रहा ! लेखन का शौक उन्हें बचपन से ही था ! इलाहाबाद में अल्पावधि के लिये प्रयाग महिला विद्यापीठ में अध्ययन के दौरान श्रीमती महादेवी वर्मा तथा श्री हरिवंश राय बच्चन व अन्य मूर्धन्य साहित्यकारों के सान्निध्य में प्रोत्साहन पा साहित्य सृजन का यह अंकुर और पुष्पित पल्लवित हो गया ! इन्दौर भोपाल रेडियो स्टेशन से अक्सर उनकी कवितायें व कहानियां प्रसारित और पुरस्कृत होती रहती थीं ! उन दिनों मंच पर कवि सम्मेलनों के आयोजनों का बहुत प्रचलन था ! और माँ अक्सर निमंत्रण पाकर इन कवि सम्मेलनों में भाग लिया करती थीं ! प्राय: हम बच्चे भी ऐसे अवसरों पर उनके साथ जाया करते थे और नामचीन साहित्यकारों के साथ मंच पर माँ को बैठा देख कर बड़े गर्व का अनुभव करते थे ! मालवा क्षेत्र के साहित्यकारों में माँ का नाम काफी प्रसिद्ध था ! ‘किरण’ माँ का उपनाम था ! उनकी रचनायें प्राय: सभी स्तरीय साहित्यिक पत्रिकाओं में छपा करती थीं !
पिताजी अतिरिक्त जिला एवम सत्र न्यायाधीश के गम्भीर पद पर आसीन थे ! वे अपने कार्य में अति व्यस्त रहते थे! माँ को समाज सेवा का भी बड़ा शौक था ! पिताजी के कार्यकाल में वे अक्सर महिला मण्डलों की अध्यक्ष हुआ करती थीं और समाज सेवा के अनेक कार्यक्रमों का संचालन वे अपनी संस्था के माध्यम से किया करती थीं ! विशिष्ट अवसरों पर वे सांस्कृतिक संध्याओं का आयोजन भी किया करती थीं जिनमें प्राय: साहित्यिक नाटकों का मंचन, कवि गोष्ठियाँ तथा गीत संगीत के अनेकों रोचक कार्यक्रम हुआ करते थे ! खरगोन में उन्होंने जयशंकर प्रसाद के नाटक ‘ध्रुव स्वामिनी’ का इतना सफल निर्देशन और मंचन किया था कि वर्षों तक लोगों के मन में इस अभूतपूर्व नाटक की स्मृतियाँ संचित रही थीं !
समाज सेवा के प्रति उनकी प्रतिबद्धता और सक्रियता को देखते हुए 1978 में उन्हें तीन वर्ष के लिये मध्यप्रदेश की समाज कल्याण परिषद का अध्यक्ष निर्वाचित किया गया ! इस अवधि में उनके तत्वावधान में परिषद ने कई कल्याणकारी व लोकोपयोगी योजनाओं को राज्य में लागू किया ! वे भारतीय जनता पार्टी की भी सक्रिय सदस्य थीं और 1975 में आपातकाल के दौरान कुछ समय के लिये जेल में भी रहीं ! समाज कल्याण बोर्ड के अध्यक्ष पद से निवृत होने के बाद उनकी नियुक्ति उनके गृह नगर उज्जैन में शपथ आयुक्त के पद पर हो गयी और अपने जीवन के शेष दिनों तक वे इसी पद पर कार्यरत रहीं !
विवाह के उपरांत हम तीनों भाई बहनों की नन्हीं-नन्हीं उँगलियाँ थाम गृहस्थी के सभी दायित्वों को सुचारु रूप से सम्हालते हुए और व्यावहारिक जीवन की संघर्षमय आपाधापी के बीच साहित्य सृजन की जिस डगर पर माँ ने कदम बढाये थे उस पर वह अथक निरंतर चलती ही रहीं ! लेकिन धीरे धीरे स्वास्थ्य उनका साथ छोड़ रहा था ! 4 नवम्बर 1986 को उन्होंने राह बदल चिर विश्राम के लिये स्वर्ग के मार्ग पर अपने कदम मोड़ लिये ! इस संसार में दैहिक यात्रा के साथ-साथ उनकी लेखन यात्रा को भी पूर्णविराम लग गया ! अपने जीवन काल में अपनी रचनाओं को पुस्तक रूप में छपवाने की उत्कृष्ट इच्छा को वे कई कठिनाइयों और बाधाओं के कारण पूरा नहीं कर सकीं थीं ! उनकी इस इच्छा को पूरा करने का प्रयास हम बहनों ने किया है ! हम लोगों की शिक्षा-दीक्षा व जीवन में सफल प्रतिस्थापना के लिये उन्होंने कितने मूल्य चुकाये होंगे इसका अनुमान आज हम लोगों को कदम-कदम पर होता है ! यह अवश्य है कि अपने जीवनकाल में उन्हें अपनी कई अभिलाषाओं की बलि चढ़ानी पड़ी होगी लेकिन जो संस्कार शिक्षा और मूल्य उन्होंने हमें दिये वे अनमोल हैं और आज अपने जीवन में हम स्वयम को जिस स्थान पर पाते हैं उसमें प्रत्यक्ष व परोक्ष दोनों ही रूप से उनका बहुत बड़ा योगदान रहा है और हम इसके लिये सदैव उनके ऋणी रहेंगे !
इन कविताओं के संकलन में कुछ कठिनाइयों का सामना भी हमें करना पड़ा है ! धुंधली लिखावट के कारण अपठनीय तथा कहीं-कहीं अधूरी छूटी पंक्तियों को पूरा करने के लिये हमने अपनी कल्पना का सहारा लेने का दुस्साहस भी किया है लेकिन इस बात का पूरा ध्यान रखने की चेष्टा की है कि कविता के मर्म को चोट ना पहुँचे और उसका केन्द्रीय भाव आहत ना हो ! गुणीजनों को यदि इसमें हमारी कोई त्रुटि दिखाई दे तो हम इसके लिये हृदय से क्षमा याचना करते हैं ! इन रचनाओं को आपकी सराहना और प्यार मिलेगा इसी विश्वास के साथ इन्हें प्रकाशित करने का बीड़ा हमने उठाया है ! यही माँ की सृजनशीलता के प्रति हमारी विनम्र श्रद्धांजलि है !
आप सभी के अनुग्रह की अपेक्षा के साथ 'उन्मना' की लिंक दे रही हूँ !

http://sadhanavaid.blogspot.com


विनीत
आशा
साधना

उन्मना
दीप की सुज्वाल में
शलभ राख जा बना
उडुगनों की ज्योति से
न हट सका कुहुर घना
सृष्टिक्रम उलझ सुलझ
खो रहा है ज़िन्दगी
नियति खोजती सुपथ
बढ़ रही है उन्मना !

किरण

9 comments :

  1. सत्य को उजागर करती क्षणिका अच्छी लगी |
    आशा

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  2. बीनाशार्माMarch 12, 2010 at 7:20 AM

    आपका कार्य प्रशसंनीय है |आप सभी रचानाओ ंको पुस्तकार रूप में ला सकें तो बहुत अच्छा होगा|मेरा साधुवाद स्वीकारें|आप सुयोग्य संतान है |

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  3. धन्यवाद बीनाजी ! 'उन्मना' पुस्तक रूप में तो मैं पहले ही प्रकाशित कर चुकी हूँ ! यह उन पाठकों के लिये हैं जिन तक पुस्तक की पहुँच नहीं है !

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  4. ापकी माता जी का जीवन परिचय सब के लिये एक प्रेरणा हैअगर इन्सान चाहे तो विपरीत परिस्थितियों मे भी बहुत कुछ कर सकता है। और आपकी ये कोशिश उनके लिये सच्ची आस्था और स्नेह का प्रतीक है। धन्यवाद और शुभकामनायें।

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  5. उन्मना को मैं भी ज़रूर पढ़ूँगा ....पर बिल्ली वाली कहानी मज़ेदार थी....
    प्रणव सक्सैना
    amitraghat.blogspot.com

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  6. उन्मना ब्लॉग प्रारंभ करने के लिए बहुत बधाई. इसी बहाने हमें माता जी की रचनाओं से अवगत होने का मौका मिलेगा. उनकी पुण्य आत्मा को नमन!!

    आभार इस परिचय का.

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  7. Kitni gazab mahila ki santaan hain aap sab...padhte,padhte pata nahi kyon aankhen bhar aayeen...shayad hamare samajme aajbhi na jane kitni mahilayen hongi jo apni pratibha apne takhi seemit rakh duniyase bida leti hongi..

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  8. आप सभी का हृदय से आभार एवम धन्यवाद !

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