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Thursday, November 21, 2019

मेरी बिटिया


प्यारी बिटिया मुझको तेरा ‘मम्मा-मम्मा’ भाता है,

तेरी मीठी बातों से मेरा हर पल हर्षाता है !


दिन भर तेरी धमाचौकड़ी, दीदी से झगड़ा करना,
बात-बात पर रोना धोना, बिना बात रूठे रहना,
मेरा माथा बहुत घुमाते, गुस्सा मुझको आता है,
लेकिन तेरा रोना सुन कर मन मेरा अकुलाता है !

फिर आकर तू गले लिपट सारा गुस्सा हर लेती है,
अपने दोनों हाथों में मेरा चेहरा भर लेती है,
गालों पर पप्पी देकर तू मुझे मनाने आती है,
‘सॉरी-सॉरी’ कह कर मुझको बातों से बहलाती है !

उलटे-पुलटे बोलों में हर गाना जब तू गाती है ,
सबके मुख पर सहज हँसी की छटा बिखर सी जाती है,
तेरी चंचलता, भोलापन और निराला नटखटपन,
मेरे सुख की अतुल निधी हैं, देते हैं मुझको जीवन !

मेरी प्यारी, राजदुलारी, भोली सी गुड़िया रानी,
सारी दुनिया भर में तुझ सा नहीं दूसरा है सानी,
मेरे घर आँगन की शोभा, मेरी बगिया का तू फूल,
तेरे पथ में पुष्प बिछा कर मैं समेट लूँ सारे शूल !

मेरी नन्ही बेटी तू मेरी आँखों का नूर है,
मेरे जीवन की ज्योती, तू इस जन्नत की हूर है,
तुझ पर मेरी सारी खुशियाँ, हर दौलत कुर्बान है,
मेरी रानी बिटिया तू अपनी ‘मम्मा’ की जान है !

साधना वैद 

14 comments :

  1. Replies
    1. हार्दिक धन्यवाद अशोक जी ! स्वागत है !

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  2. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शुक्रवार (22-11-2019 ) को ""सौम्य सरोवर" (चर्चा अंक- 3527)" पर भी होगी।
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिये जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    *****
    -अनीता लागुरी'अनु'

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    1. आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार रवीन्द्र जी ! सादर वन्दे !

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  3. Replies
    1. हार्दिक आभार ऋषभ जी ! सादर वन्दे !

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  4. आपका बहुत बहुत धन्यवाद अनुराधा जी !सप्रेम वन्दे !

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  5. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
    २५ नवंबर २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।,

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    1. हार्दिक धन्यवाद एवं आभार श्वेता जी ! सप्रेम वन्दे !

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  6. बहुत खूबसूरत रचना।

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    1. हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद अनुराधा जी ! आभार आपका !

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  7. भगवान करे कि कोई भी 'अम्मा की जान' बाद में चलकर धरती का बोझ न मानी जाए.

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    1. यही तो विडम्बना है गोपेश जी ! हर 'मम्मा की जान' को अपने जीवन का सफ़र अकेले ही अंगारों पर चल कर तय करना होता है ! कोई हिम्मत बाँध कर पार हो जाता है कोई हिम्मत हार कर भस्म हो जाता है ! दिल से आभार आपका !

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  8. मेरी नन्हें बेटी तू मेरी आँखों की नूर है। वाह सराहनीय और सार्थक सोंच से परिपूर्ण मनमोहक रचना।

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