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Sunday, October 10, 2021

कटी पतंग

 



ज़िंदगी की धूप छाँव में

सिहरती सिमटती चलती ही जा रही हूँ

सुख दुःख की उँगलियाँ थामे !

साँझ के साथ साथ मन में भी

अन्धेरा घिर आया है

चहुँ ओर पसरा मौन सहमा जाता है मुझे

प्रतीक्षा है सवेरा होने की,

पंछियों के कलरव की मधुर आवाज़ की

मंज़िल दूर है और राह लम्बी

थके हुए हौसले को झकझोर कर

कभी स्वप्न आगे खींचते हैं

तो कभी हताशा पीछे से डोर खींचती है 

और मैं उड़ती ही जाती हूँ

डोर से कटी पतंग की तरह

कभी यहाँ तो कभी वहाँ !

साधना वैद


11 comments :

  1. आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 12 अक्टूबर 2021 को साझा की गयी है....
    पाँच लिंकों का आनन्द पर
    आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. जी ! आपका बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार प्रिय यशोदा जी ! सप्रेम वन्दे !

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  2. भावनाओं से ओतप्रोत बहुत ही मार्मिक व हृदय स्पर्शी रचना

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    1. हार्दिक धन्यवाद मनीषा जी ! बहुत बहुत आभार आपका !

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  3. सुंदर, सार्थक रचना !........
    Mere Blog Par Aapka Swagat Hai.

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    1. हार्दिक धन्यवाद संजू जी ! बहुत बहुत आभार आपका !

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  4. आपका ह्रदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार रवीन्द्र जी ! सादर वन्दे !

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  5. सुन्दर अभिव्यक्ति |सार्थक रचना |

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    1. हार्दिक धन्यवाद जीजी ! बहुत बहुत आभार आपका !

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  6. सुन्दर प्रस्तुति

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    1. हार्दिक धन्यवाद केडिया जी ! बहुत बहुत आभार !

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