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Tuesday, October 26, 2021

मन की बातें - सायली छंद


 


पुकारूँ

नित्य तुम्हें

कहाँ छिपे हो

मेरे प्यारे

गिरिधारी !

 

जब

मैं बुलाऊँगी

तुम आओगे ना

वादा करो

मुझसे !

 

लगता

कितना प्यारा

तुम्हारा सुन्दर मुखड़ा

बलिहारी जाऊँ

मैं !

 

खिले

रंग बिरंगे

फूल उपवन में

हवा लहराई

मदभरी !

 

विसंगति

कैसी अघोर

कविता कोमल तुम्हारी

किन्तु हृदय

कठोर !

 

जीतना

होगा इसे 

किसी भी तरह  

हारेगा नहीं

मन !  


चित्र - गूगल से साभार  

साधना वैद   

7 comments :

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन  में" आज मंगलवार 26 अक्टूबर 2021 शाम 3.00 बजे साझा की गई है....  "सांध्य दैनिक मुखरित मौन  में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. हार्दिक धन्यवाद यशोदा जी ! बहुत बहुत आभार आपका ! सप्रेम वन्दे !

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  2. Replies
    1. हृदय से धन्यवाद मनीषा जी !

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  3. आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (27-10-2021) को चर्चा मंच         "कलम ! न तू, उनकी जय बोल"     (चर्चा अंक4229)       पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार करचर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'   

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    1. आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार शास्त्री जी ! सादर वन्दे !

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  4. उम्दा सृजन के लिए बधाई |

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