Friday, July 22, 2022

आगरा - संदली मस्जिद और कांधारी बेगम का मकबरा

 


कांधारी बेगम का म्माक्बरा उर्फ़ संदली सहेली बुर्ज 

आइये आज आपको ले चलते हैं शहंशाह शाहजहाँ के हरम में और मिलवाते हैं आपको उनकी उन बेग़मात से जिनके बारे में शायद कम ही लोगों से सुना होगा ! दुनिया ने तो केवल मुमताज महल उर्फ़ अर्जुमंदबानो बेगम की बारे में ही अधिकतर सुना है कि वे दुनिया की सबसे हसीन खातून थीं और शाहजहाँ उनसे बेहद प्यार करते थे और उनकी मौत के बाद उनकी याद में उन्होंने दुनिया की सबसे खूबसूरत इमारत ताजमहल को बनवाया और अपनी ज़िंदगी के आख़िरी दिन मुसम्मन बुर्ज में औरंगजेब की कैद में बिताते हुए और मुमताजमहल को याद करते हुए बस इसी ताजमहल को निहारते हुए गुज़ार दिए ! दुनिया में कोई दूसरी ऐसी शानदार इमारत वजूद में न आ पाए इसलिए कहते हैं उन्होंने उन सभी हुनरमंद कलाकारों के हाथ कटवा दिए थे जिनकी २२ साल की अनवरत मेहनत, कारीगरी और कुशलता का यह नायाब नमूना आज लगभग चार सौ साल के बाद भी शान से सर उठाये हुए खड़ा है और दुनिया भर की खूबसूरत आलीशान इमारतों को चुनौती दे रहा है !
मुमताजमहल के अलावा भी शाहजहाँ की तीन और प्रमुख बेगमात थीं कांधारी बेगम, फतेहपुरी बेगम और सरहिंद बेगम ! इनके लिए भी छोटे छोटे मकबरे बनवाये गए जो सहेली बुर्ज के नाम से जाने जाते हैं ! सुनते हैं मुमताजमहल का इन बेगमों के साथ बहुत ही प्यार भरा सम्बन्ध था और वे इन्हें अपनी सहेली की तरह ही प्रेम किया करती थीं ! कदाचित इसीलिये इन बेगमों के मकबरों का नाम सहेली बुर्ज पड़ा !
शाहजहाँ की पहली बेगम का नाम था कांधारी बेगम ! कांधारी बेग़म सफवीद राजकुमार सुल्तान मुजफ्फर हुसैन मिर्जा सफवी की सबसे छोटी बेटी थी ! वे उस परिवार से थी जिसे फारस के सफविद राजवंश, मस्जिद के संस्थापक के रूप में जाना जाता है ! कांधारी ने 1609 में 15 साल की उम्र में शाहजहाँ से शादी की थी ! शाहजहाँ की पहली पत्नी कंधारी बेगम की मृत्यु 1666 में हुई और उन्हें संदली मस्जिद परिसर में दफनाया गया ! आज भी उनकी मजार यहाँ मौजूद है ! उनकी अन्य पत्नियों, फतेहपुरी बेगम और सरहिंदी बेगम को ताजमहल के अंदर (मुख्य मकबरे में नहीं, बल्कि स्मारक के द्वार के पास) दफनाया गया था ! कंधारी बेगम को स्मारक के बाहर दफनाया गया इसका एक कारण यह भी हो सकता है कि तब तक ताजमहल का निर्माण कार्य पूर्ण हो चुका था और उस परिसर में कांधारी बेगम के मकबरे के लिए कोई मुनासिब जगह ना बची हो ! इनका मकबरा ताजमहल के पूर्वी गेट के पास स्थित है और ‘बियॉन्ड ताज वाक’ में दिखाए जाने वाली चंद ऐतिहासिक महत्त्व की इमारतों की सूची में सबसे पहले इसी का नाम आता है ! कुछ इतिहासकारों का मानना यह भी है कि आगरा शहर में वर्तमान में खंदारी के नाम से जाने जाने वाले स्थान में कांधारी बेगम का महल था ! कदाचित इसी वजह से इसका जगह का नाम खंदारी पड़ा ! सन १७०७ में औरंगजेब की मृत्यु के बाद अंग्रेज़ हुकमरानों ने यह स्थान भरतपुर के राजा को बेच दिया जिन्होंने वहाँ स्थित भवन को गिरा कर अपनी इच्छा के अनुरूप निर्माण कार्य करा लिया और अब यह परिसर भरतपुर हाउस के नाम से जाना जाता है ! महल के अहाते से लगी कुछ छतरियाँ अभी भी बची हैं जो उस काल की याद दिला देती हैं !
कांधारी बेगम के मकबरे के सामने एक छोटी सी मस्जिद है जिसे संदली मस्जिद के नाम से लोग जानते हैं ! यह मस्जिद बड़ी रूहानी और ख़ास मानी जाती है क्योंकि यहाँ के लोगों का विश्वास है कि इस मस्जिद पर जिन्नों का साया है ! वे इस मस्जिद में वास करते हैं इसलिए इस मस्जिद को लोग ‘जिन्नात की मस्जिद’, ‘काली मस्जिद’ और ‘बिल्लियों वाली मस्जिद’ के नाम से भी जानते हैं ! कहते हैं यहाँ पर बला की खूबसूरत पर्शियन बिल्लियाँ रहती हैं जो हकीकत में परलोकवासी लोगों की अतृप्त रूहें हैं ! यहाँ के स्थानीय निवासी और मस्जिद की देखरेख करने वाले लोग बताते हैं कि लोग दूर-दूर से बिल्लियों को खाना खिलाने के लिए आते हैं ! ऐसी मान्यता है कि आप का दिया हुआ खाना अगर बिल्लियाँ खा लेती हैं तो आपकी मुराद पूरी हो जाती है ! .इसके साथ ही कई सारे लोग ऐसे भी हैं जो इस मस्जिद में मन्नत के धागे की जगह पॉलिथीन बाँधते हैं, बकायदा ख़त छोड़ते हैं और अक्सर कुछ समय बाद उनकी मुराद पूरी हो जाती है ! संदली मस्जिद धर्म निरपेक्षता का जीता जगता प्रमाण है ! अपनी मुराद पूरी करने के लिए यहाँ हर धर्म के लोग मन्नत का धागा बाँधने और बिल्लियों को खाना खिलाने के लिये आते हैं !
कई लोगों ने अपने अनुभव साझा किये तो बताया कि यहाँ पर आते ही एक अजब सी रूहानियत की अनुभूति होती है जैसे कोई अलौकिक शक्ति इस स्थान में वास करती है ! इसी मस्जिद के सामने शाहजहाँ की पहली पत्नी कंधारी बेगम का मकबरा है ! अष्टकोणीय इस छोटे से चबूतरे पर कंधारी बेगम की कब्र है जो जालीदार दीवारों से घिरी हुई है ! चबूतरे का वरांडा पतले पतले स्तंभों से सुसज्जित है और इसके ऊपर संगमरमर की छतरी बनी हुई है ! इसे ‘कांधारी बेगम सहेली बुर्ज’ भी कहा जाता है ! स्थानीय लोग यहाँ बड़ी श्रद्धा के साथ मन्नत माँगने आते हैं ! यहाँ चबूतरे पर बैठ कर पहरों इबादत करते हैं और जालीदार दीवारों की जालियों में चमकीली पन्नियों के टुकड़ों को लपेट कर मन्नत के धागे बाँध जाते हैं ! सुना है ये सब चीज़ें वे प्रेतबाधा को शांत करने के लिए करते हैं ! कई लोगों की मन्नत अगर पूरी हो जाती है तो वे इन पन्नियों को खोलने भी आते हैं !
कभी सोचती हूँ कहीं कांधारी बेगम की आत्मा ही तो अतृप्त आत्मा नहीं थीं ! मुमताजमहल को मिली मोहोब्बत, शोहरत और रुतबा कहीं उनके असंतोष का कारण तो नहीं था ! कांधारी बेगम भोग विलास से दूर एक फ़कीर सी ज़िंदगी जीना पसंद करती थीं इसीलिये वे शाहजहाँ को बहुत कम पसंद थीं ! यह भी कहते हैं कि कांधारी बेगम को बिल्लियाँ बहुत पसंद थीं ! शाहजहाँ की अन्य दो पत्नियाँ फतेहपुरी बेगम और सरहिंद बेगम ताजमहल परिसर में ही पूर्वी गेट एवं पश्चिमी गेट के पास दफनाई गयीं फिर कांधारी बेगम को ही यहाँ स्थान क्यों नहीं मिला ? ना रे बाबा ! कहानी बड़ी फ़िल्मी सी लगने लगी है ! लेकिन इतिहास और कल्पना में बहुत अंतर होता है ! क्या शाहजहाँ ने सच में अपनी पहली पत्नी के साथ अन्याय किया था ? कई स्थानों पर बड़ी विरोधाभासी जानकारी भी मिलती है ! शाहजहाँ और कंधारी बेगम के मृत्यु का साल कई इतिहासकारों ने सन १६६६ बताया है ! तब तक शाहजहाँ अपना राजपाट, रुतबा, अधिकार सब गँवा कर अपने ही बेटे की कैद में रह कर बहुत ही कष्टप्रद जीवन बिता रहे थे ! कौन जाने किसकी मृत्यु पहले हुई कंधारी बेगम की या शाहजहाँ की ! शाहजहाँ की मृत्यु की तारीख तो २२ जनवरी बताई जाती है ! तो फिर कंधारी बेगम को ताज परिसर से बाहर दफनाने का फैसला क्या औरंगजेब का था ? आपका क्या ख़याल है इस बारे में बताइयेगा ज़रूर !

नोट - इस स्मारक के बारे में अथवा आगरा के अन्य स्मारकों के बारे में तथ्यपरक जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें –
साधना वैद


संदली मस्जिद




5 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल शनिवार (23-07-2022) को चर्चा मंच    "तृषित धरणी रो रही"  (चर्चा अंक 4499)     पर भी होगी!
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    सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'   

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    1. आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार शास्त्री जी ! मैं आगरा से बाहर गयी हुई थी इस कारण आपकी प्रतिक्रिया देखने में विलम्ब हुआ ! क्षमाप्रार्थी हूँ ! सादर वन्दे !

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  2. जानकारी युक्त सुन्दर एवं रोचक आलेख ।

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  3. यह विवरण मेरे लिए एक दम नया है |कितनी बार तो आगरा हो कर आई हूँ कभी देखा नहीं |

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    1. जी ! हमने भी पहली बार ही देखा ! आगरा में एक से एक सुन्दर लेकिन गुमनाम स्थान हैं ! आपका बहुत बहुत आभार !

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