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Saturday, December 9, 2017

बातों वाली गली – मेरी नज़र से



ये लीजिये ! इस ‘बातों वाली गली’ में एक बार जो घुस जाए उसका निकलना क्या आसान होता है ! इसकी उसकी न जाने किस-किस की, यहाँ की वहाँ की न जाने कहाँ-कहाँ की, इधर की उधर की न जाने किधर-किधर की बस बातें ही बातें ! और इतनी सारी बातों में हमारा तो मन ऐसा रमा कि किसी और बात की फिर सुध बुध ही नहीं रही ! आप समझ तो गए ना मैं किस ‘बातों वाली गली’ की बात कर रही हूँ ! जी यह है हमारी हरदिल अजीज़ बहुत प्यारी ब्लगर वन्दना अवस्थी दुबे जी की किताब ‘बातों वाली गली’ जिसमें उनकी चुनिन्दा एक से बढ़ कर एक २० कहानियाँ संगृहीत हैं ! सारी कहानियाँ एकदम चुस्त दुरुस्त ! मन पर गहरा प्रभाव छोड़तीं और चेतना को झकझोर कर बहुत कुछ सोचने पर मजबूर करतीं !

इन कहानियों को पढ़ कर इस बात का बड़ी शिद्दत से एहसास होता है कि नारी मन की गहराइयों को नाप लेने की वन्दना जी में अद्भुत क्षमता है ! यूँ तो सारी ही कहानियाँ बहुत बढ़िया हैं लेकिन कुछ कहानियों में नारी मन की अंतर्वेदना का वन्दना जी ने जिस सूक्ष्मता के साथ चित्रण किया है वह देखते ही बनता है ! इन कहानियों को पढ़ते-पढ़ते कई बार अचंभित हुई कि अरे मेरी तो कभी वन्दना जी से बात ही नहीं हुई फिर इस घटना के बारे में इन्हें कैसे पता चल गया  और इतने सटीक तरीके से इन्होंने इसे कैसे लिख दिया ! क्या यह भी संयोग है कि स्वयं पर बीती हुई अनुभूत बातें ठीक उसी प्रकार औरों के साथ भी बीती हों ? चित्रण इतना सजीव और सशक्त कि जैसे चलचित्र से चल रहे उस घटनाक्रम के हम स्वयं एक प्रत्यक्षदर्शी हों ! लेखिका की यह एक बहुत बड़ी सफलता है कि पाठक कहानियों के चरित्रों के साथ गहन तादात्म्य अनुभव करने लगते हैं ! भाषा और शैली इतनी सहज और प्रांजल जैसे किसी मैदानी नदी का एकदम शांत, निर्द्वन्द्व, निर्बाध प्रवाह !

नारी को कमतर आँकने की रूढ़िवादी पुरुष मानसिकता पर करारा प्रहार करती कहानियाँ ‘सब जानती है शैव्या’ और ‘प्रिया की डायरी’ बहुत सुन्दर बन पडी हैं ! कुछ कहानियाँ जो मन के बहुत करीब लगीं उनके नाम अवश्य लूँगी ! ‘अहसास’, ‘विरुद्ध’ और ‘बड़ी हो गयी हैं ममता जी’ मुझे विशेष रूप से बहुत अच्छी लगीं ! ‘दस्तक के बाद’, ‘नीरा जाग गयी है’, ‘बड़ी बाई साहेब’ और ‘डेरा उखड़ने से पहले’ कहानियों में हम भी स्त्री की हृदय की विषम वीथियों में जैसे वन्दना जी के हमराह बन जाते हैं ! ‘हवा उद्दंड है’, ‘बातों वाली गली’ और ‘आस पास बिखरे लोग’ वास्तव में इतनी यथार्थवादी कहानियाँ हैं कि ज़रा इधर उधर गर्दन घुमा कर देख लेने भर से ही इन कहानियों के पात्र सशरीर हमारे सामने आ खड़े होते हैं !

‘बातों वाली गली’ कहानी संग्रह की हर कहानी हमें एक नए अनुभव से तो परिचित कराती ही है हमारी ज्ञानेन्द्रियों को नए स्वाद का रसास्वादन भी कराती है !

पुस्तक नि:संदेह रूप से संग्रहणीय है ! इतने सुन्दर संकलन के लिए वन्दना जी को बहुत-बहुत बधाई ! वे इसी तरह स्तरीय लेखन में निरत रहें और हमें इसी प्रकार अनमोल अद्वितीय कहानियाँ पढ़ने को मिलती रहें यही हमारी शुभकामना है ! आपकी अगली पुस्तक की प्रतीक्षा रहेगी वन्दना जी ! हार्दिक अभिनन्दन !




साधना वैद 

Friday, February 19, 2016

"सम्वेदना की नम धरा पर" - आदरणीया बीना शर्मा जी की नज़र से





साधना जी उस व्यक्तित्व का नाम है जो जीवन भर अपनी साधना और साफगोई के लिए जाना जाता है | बात लगभग सात वर्ष पूर्व की है जब लेखिका और उनके ब्लॉग ‘सुधीनामा से मेरा नया-नया परिचय हुआ था | उनके लेखन में एक विचित्र सा आकर्षण  मैंने हमेशा अनुभव किया | अतिशयोक्ति नहीं होगी यदि मैं कहूँ कि उन दिनों मुझे उनकी हर एक रचना एक नए लोक में ले जाती थी |
 और आज जब उनकी रचनाओं के संग्रह की पांडुलिपि मेरे हाथों में है तो मुझे बहुत रोमांच हो रहा है | क्या गजब का लिखती हैं आप | दुनिया का कोई कोना उनकी लेखनी से अछूता नहीं रहा | पहले उनके गद्य विधा में लिखे विचार लोगों के दिलों में जागरूकता लाते थे और उनकी कवितायें तो मानो पाठक को हरी मखमली घास पर ले जाती हैं | जैसा जुझारू उनका व्यक्तित्व है वैसा ही उनका लेखन हजारों  साल के जमे कुहासे को चीर देता है | संयत भाषा में उनका मन अपने को उड़ेलता ही नहीं पाठक को विगलित भी कर देता है |
    पूरी की पूरी जिंदगी १५१ कविताओं में सिमट आई है | आप विषय सूची पर एक निगाह तो डालिए जीवन के सभी रंग उपस्थित हैं |बिटिया’,शुभकामना’,टूटे घरौंदे’, ‘अब और नहीं’,मेरा परिचय’,वेदना की राह पर’,मैं तुम्हारी माँ हूँ’, ‘ममता की छाँव’, ‘मैं वचन देती हूँ माँ’,  ‘पुराने जमाने की माँ’ और ‘गृहणी’ के रूप में पूरी की पूरी कायनात आपके आगे आ जाती है | संघर्ष का परचम लहराती कविताएँ जीवन के लिए वह पाथेय दे जाती हैं जिनसे जीवन मार्ग सुगम हो जाता है | उनकी कवितायेँ आपको केवल स्वप्न लोक में ही नहीं ले जातीं बल्कि जीवन के कठोर सत्य का उद्घाटन कराती हैं | समाज की हर घटना उनकी कविता का वर्ण्य विषय बन जाती है | यह संग्रह तो बहुत पहले प्रकाश में आ जाना चाहिये था पर जब जागो तभी सवेरा |
   कविताओं का यह संकलन वर्तमान पीढ़ी के लिए नया सन्देश है ! दुखों से घबरा कर भागना सहज है पर संघर्ष कर उन्हें अपनी उपलब्धि बना लेना हर किसी के बस का नहीं होता |
 साधना जी का काव्य संकलन बहुत जल्दी पाठकों के हाथ में हो ऐसी मेरी कामना है | अशेष शुभकामनाओं के साथ |  
    बीना शर्मा 
  (प्रोफ़ेसर बीना शर्मा)
केन्द्रीय हिन्दी संस्थान, आगरा 
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Saturday, February 6, 2016

'सम्वेदना की नम धरा पर' - श्रीमती आशा लता सक्सेना जी की नज़र से



सम्वेदना की नम धरा पर” फैली काव्य धारा विविधता लिए है | साधना की ‘साधना’ लेखन में स्पष्ट झलकती है | बचपन से ही साहित्य में रूचि और कुछ नया करने की ललक उसमें रही जो रचनाओं के माध्यम से समय-समय पर प्रस्फुटित हुई | रचनाधर्मिता का वृहद् रूप उसकी कविताओं में समाया है |
कम उम्र से ही साधना ने पारिवारिक दायित्वों का कुशलतापूर्वक वहन किया और समय-समय पर अपने विचार लिपिबद्ध किये | साधना स्वभाव से बहुत भावुक और संवेदनशील है | सामाजिक सरोकारों के विविध विषयों और समसामयिक समस्याओं पर तथा नारी उत्पीड़न, महिला जागृति एवं कन्या भ्रूण ह्त्या जैसे संवेदनशील मुद्दों पर लिखी रचनाओं में साधना के मनोभावों की प्रस्तुति उसकी उन्नत सोच की परिचायक है | ‘मौन’, ‘पुराने ज़माने की माँ’, ‘सुमित्रा का संताप’, ‘मैं तुम्हारी माँ हूँ’, ‘तुम क्या जानो,’ ‘गृहणी’, ‘चुनौती’ जैसी रचनाएं जहाँ नारी के सतत संघर्ष की गाथा सुनाती हैं वहीं ‘आक्रोश’ और ‘मैं वचन देती हूँ माँ’ कन्या भ्रूण ह्त्या जैसी सामाजिक कुरीति की ओर पाठकों का ध्यान आकृष्ट करती हैं | वह प्रकृति के सान्निध्य से भी दूर नहीं | ‘सूर्यास्त’, ‘दो ज़िद्दी पत्ते’ तथा ‘वसंतागमन’ जैसी रचनाएं उसके प्रकृति प्रेम की परिचायक हैं ! उसके भावों में गहराई है और लेखन में परिपक्वता है |
कलम का जादू और पैनी दृष्टि सहजता से रचनाओं की माला में सुरभित पुष्पों की भाँति गूँथी गयी है | ये भावपूर्ण रचनाएं साहित्यिक दृष्टि से प्रशंसनीय हैं | खूबसूरत बिम्ब यत्र-तत्र कविताओं के सौन्दर्य को बढ़ाते हैं | बहु आयामी लेखन की धनी साधना का गद्य और पद्य दोनों पर ही समान अघिकार है | साहित्यिक भाषा लेखन की विशेषता है | वह अंतरजाल पर सन् २००८ से सक्रिय है | सतत लेखन नवीन लेखकों के लिए प्रेरणा का स्त्रोत है |
मुझे हार्दिक प्रसन्नता है कि साधना की मेहनत रंग लाई है और उत्कृष्ट रचनाओं का यह काव्य संकलन सम्वेदना की नम धरा पर” प्रबुद्ध पाठकों के समक्ष है | मेरी ओर से हार्दिक शुभकामनाएं इस महत्वपूर्ण प्रयास के लिए और यही कामना है कि साधना की कलम से इसी प्रकार कविता की अविरल धारा बहती रहे तथा जो गुण उसने हमारी माँ श्रीमती ज्ञानवती सक्सेना किरण” से अर्जित किये उनका पूर्ण उपयोग कर वह इस क्षेत्र में ऐसा योगदान दे कि पाठक उसकी रचनाओं को बारम्बार पढ़ें और फिर भी पढ़ने की ललक बनी रहे |
इस उत्कृष्ट काव्य संकलन की अपार सफलता के लिये एक बार पुनः साधना को मेरा बारम्बार शुभाशीष और हार्दिक शुभकामनायें |

आशा 
सेवा निवृत व्याख्याता

Sunday, January 31, 2016

कुछ अंतर्मन की और कुछ बाह्य जगत की

                                   'सम्वेदना की नम धरा पर '
                               डॉ. मोनिका शर्मा जी की नज़र से
कुछ अंतर्मन की और कुछ बाह्यजगत की । कवितायेँ ऐसी जो सब समेटकर सामने रख दें । साधना जी का कविता संग्रह 'संवेदना की नम धरा पर' ऐसी ही 151 रचनाएँ लिए है। जिन्हें पढ़ते हुए संवेदनशीलता लिए भाव मन में उतरते हैं । इस संकलन में 'आशा' और 'अनुनय' जैसी कवितायें मर्मस्पर्शी हैं । तो 'भारत माँ का आर्तनाद' और आत्म साक्षात्कार चेतना को उद्वेलित करने वाले भाव लिए हैं । किस भी स्त्री के लिए घर परिवार की जिम्मेदारियां निभाते हुए कर्म से जुड़े रहना कितना कठिन है यह भाव अन्य कई रचनाओं में भी है और साधना जी की लिखी मेरी कलम से टिपप्णी में भी । जो कि हमारे परिवेश का एक कटु सच है । ' तुम्हारी याद में माँ' एक बहुत ही हृदयस्पर्शी कविता है ।
यह सावन भी बीत गया माँ
ना आम ना अमलतास,
ना गुलमोहर ना नीम,
ना बरगद ना पीपल,
किसी पेड़ की डालियों पे
झूले नहीं पड़े !
इस रचना में माँ के जाने के बाद बेटियां जिस अधूरेपन को जीती हैं...... उम्र भर जीती हैं, उसका मर्मस्पर्शी चित्रण है । ममता के साए के बिना सारे तीज-त्योहार कितने सतही और नकली हो जाते हैं । यह हर स्त्री का मन समझ सकता है । संग्रह की पहली कविता 'तुम क्या जानो' स्त्री के अदम्य साहस और सृजनशीलता को दर्शाती है । स्त्री जो अनगिनत बंधनों और रुढ़ियों के बावजूद अपनी जिजीविषा को बनाये रखती है और कुछ नया रचती है । संग्रह में कितनी ही कवितायेँ हैं जो स्त्रीमन के भावों को यूँ ही मुखरता से सामने रखती हैं ।
तुम क्या जानो
रसोई से बैठक तक ,
घर से स्कूल तक ,
रामायण से अखबार तक
मैंने कितनी आलोचनाओं का ज़हर पिया है
तुम क्या जानो !
करछुल से कलम तक ,
बुहारी से ब्रश तक ,
दहलीज से दफ्तर तक
मैंने कितने तपते रेगिस्तानों को पार किया है
तुम क्या जानो !

'मौन की दीवारें' भी एक बेहतरीन रचना है । 'हौसला' मन जीवन को नई ऊर्जा देने वाली कविता है । ऐसी रचनाएँ वाकई संवेदनाओं को रेखांकित करती हैं । मानवीय मन की तह लेती हैं । 'संशय' 'मोक्ष' और 'रहस्य' भी संग्रह की उम्दा रचनाएँ लगीं । जिन्हें पढ़ते हुए मन को नई सोच का आधार मिलता है ।
मौन की दीवारों से
टकरा कर लौटती
अपनी ही आवाज़ों की
बेचैन प्रतिध्वनियों को
मैं खुद ही सुनती हूँ
और अपनी राहों में बिछे
अनगिनत काँटों को
अपनी पलकों से चुनती हूँ ........

'संवेदना की नम धरा पर' काव्य संग्रह के लिए साधना Sadhana Vaid जी को हार्दिक बधाई और सतत सृजनशील रहने की शुभकामनायें ।
हार्दिक आभार आपका मोनिका जी !
साधना वैद