आँसुओं
से भरी आँखें
एक
शाश्वत सवाल लिए
मुझे
अंधेरी रात के
सन्नाटों
में भी
आसमान
से झाँकती
दिखाई
देती हैं
जैसे
पूछ रही हों
माँ,
बाबा
जिन
हाथों से आप दोनों
अस्सी
घन्टों तक
अपनी
छाती और माथा
कूटते
रहे
उन
हाथों से
चंद
मिनिट में
एक
पत्थर के टुकड़े से
उस
गड्ढे को
क्यों
नहीं ढक सके
जिसमें
मैं गिर गयी थी ?
बाबा !
बाबा !
हम
गरीब बच्चों की
सुरक्षा
के लिए आप
अकर्मण्य
सरकार के
ऐसे
नुमाइंदों पर
निर्भर
क्यों हो गये
जो
कभी पैदल
चलते
ही नहीं
कि उन्हें ये गड्ढे
दिखाई
दें !
जिनके
घर के
हर
एक बच्चे के लिए
आलीशान
बंगलों में
कई-कई
सुरक्षाकर्मी
तैनात
रहते हैं
वे
सड़कों पर खेलने को
मजबूर
हम जैसे
गरीब
बच्चों की
हिफाज़त
का भला
क्या
ख़याल रख पायेंगे ?
बाबा !
बाबा !
जो
हाथ दिन रात
मेहनत
कर
औरों
के लिए
कई
मंजिला भवन
बना
सकते हैं
वो
हाथ अपने बच्चों की
सुरक्षा
के मामले में
इस तरह से
पंगु कैसे हो गये
कि एक गड्ढा
ढकने के लिए
वो किसी और की
मदद के लिए
मजबूर हो गये ?
पंगु कैसे हो गये
कि एक गड्ढा
ढकने के लिए
वो किसी और की
मदद के लिए
मजबूर हो गये ?
बाबा
!
इन्हें
कहाँ फुर्सत है
तरह-तरह
के घोटाले
करने
से
और
फिर उनकी
लीपा
पोती से ,
हम
बच्चों को तो
सिर्फ
आपकी चौकसी ही
बचा
सकती है !
जो
यहाँ चूके बाबा
तो
बाद में तो फिर
हाथ
ही मलते
रहना
होगा !
और मुझ
जैसी
कई माहियों
को
इस भूल का
खामियाजा
भरना होगा !
साधना
वैद