हाल ही में रश्मि रविजा जी का उपन्यास ‘काँच के शामियाने’ पढ़ कर समाप्त
किया है ! कुछ उनके प्रखर लेखन के ताप से और कुछ काँच के शामियानों के नीचे खड़ी
मौसमों की बेरहम मार झेलती उपन्यास की नायिका जया की व्यथा कथा की आँच से मैं स्वयं
को भी झुलसा हुआ ही पा रही हूँ ! इस उपन्यास के बारे में क्या कहूँ ! जया के जीवन
का हर प्रसंग लेखिका ने जैसे अकथनीय दर्द की सियाही में अपनी कलम को गहराई तक डुबो
कर लिखा है !
‘काँच के शामियाने’ एक नारी प्रधान उपन्यास है ! कहानी की नायिका जया एक अत्यंत
प्रतिभासंपन्न, कोमल, समझदार, संवेदनशील, कवि हृदया युवती है जिसका विवाह एक बहुत
ही गर्म मिजाज़ के युवक राजीव से कर दिया जाता है जो विवाह से पहले जया से कई बार
भांति-भांति से अपना प्रेम निवेदन करता है और हर बार जया के द्वारा इनकार कर दिए
जाने के बाद अपनी माँ के हाथों शादी का प्रस्ताव भेजता है ! एक पितृहीन कन्या के
लिये किसी प्रशासनिक अधिकारी का रिश्ता स्वयं चल कर आये भारतीय समाज में इससे अधिक
सुख की बात लड़की के घरवालों के लिये और क्या हो सकती है ! लिहाज़ा बिना अधिक खोज
खबर लिये वर पक्ष की टेढी मेढ़ी माँगों और व्यंग तानों को सुनते सहते झेलते हुए भी जया
की शादी राजीव से कर दी जाती है ! राजीव और उसके परिवार वालों का असली रूप शादी के
बाद सामने आता है ! जिसे देख कर जया एकदम से स्तब्ध और आतंकित हो जाती है ! यह
उपन्यास अनिच्छित, असफल एवं बेमेल विवाह के बंधन में बँधी एक स्त्री के अपने नये
घर में स्वयं को स्थापित करने की और एक मरणासन्न रिश्ते को जिलाए रखने के लिये
किये जाने वाले सतत संघर्ष की दुःख भरी गाथा है !
इसमें दो ही प्रमुख पात्र हैं एक नायिका जया और दूसरा, चाहे उसे नायक कह
लें या खलनायक, उसका पति राजीव ! बाकी सारे पात्र इन्हीं दोनों किरदारों के परिवार
के सदस्य हैं जिनकी भूमिकाएं विशेष महत्वपूर्ण नहीं हैं ! ससुराल पक्ष के लोग जया
को व्यंग तानों उलाहनों से छलनी करते रहने का कोई मौक़ा नहीं छोड़ते और मायके वाले उसे
समाज का भय और अपनी असमर्थता का नकारात्मक पहलू दिखा पति के जुल्मो सितम को खामोशी
से सहने और बेहतर भविष्य के लिये आशान्वित रहने की सतत सलाहें देने से कभी नहीं
चूकते !
ससुराल में रह कर जया परिवार वालों की हर गलत सही बात का पालन कर स्वयं को
उत्सर्जित करती जाती है ! अपने मन की अभिलाषाओं, इच्छाओं और सपनों को धो पोंछ कर जीवन
की स्लेट से वह बिलकुल मिटा डालती है ! इस पर भी किसीके मुख से जब प्यार, प्रशंसा,
सराहना के दो बोल उसे सुनने को नहीं मिलते तो वह कितनी क्षुब्ध और निराश हो जाती
है इसका बहुत ही मार्मिक चित्रण लेखिका ने इस उपन्यास में किया है ! सम्मान, प्यार,
प्रशंसा चाहे ना मिले इस स्थिति को भी निर्विकार हो स्वीकार किया जा सकता है लेकिन
गृह प्रवेश के साथ ही जया जिस तरह से अपमान, तिरस्कार और हिंसा का सामना करती है
वह दिल को दहला जाता है ! क्या नारी का प्राप्य यही है इस समाज में ?
यह सोच कर मन बहुत अवसादग्रस्त हो जाता है कि आज भी हमारी शिक्षा कितनी
बौनी, निष्प्रभावी, और व्यर्थ ही है कि राजीव जैसे लोग व्यवस्था के शिखर पर पहुँच
कर डिप्टी कलेक्टर तो बन जाते हैं लेकिन उनकी मानसिकता और व्यवहार किसी अभद्र,
गँवार, बगैर पढ़े लिखे जाहिल आदमी की तरह ही बना रहता है ! विवाह के बाद जया का इस
क्रूर, लालची, हृदयहीन इंसान की अमानुषिकता और अन्याय को चुपचाप झेलते रहना पाठकों
के मन को भारी कर जाता है ! स्वार्थी और लालची ससुराल वालों की उपेक्षा, तिरस्कार
और अपमान और समाज के नीति नियमों की श्रंखलाओं से बँधे मायके वालों की पारंपरिक
सोच के बीच में पिसती नारी की मनोदशा को लेखिका ने बखूबी बयान किया है ! लेकिन एक
बेटी, बहू, पत्नी चाहे कितनी भी असहाय, दब्बू और निरीह हो, एक माँ अपने बच्चों के
लिये कितनी सबल, दृढ़ और साहसी हो सकती है जया के व्यक्तित्व में आया यह
प्रत्यावर्तन कहीं दूर तक मन को सहला जाता है ! माँ अपने बच्चों की रक्षा के लिये
घायल शेरनी भी बन सकती है जया ने इसे सिद्ध करके दिखा दिया !
इतने कठिन संघर्ष के बाद जया का राजीव से अलग हो जाने का फैसला सुखद बयार
की भाँति लगता है ! समाज की दकियानूसी सोच से निर्मित मायके और ससुराल के काँच के
शामियानों के अंदर रह कर अपनी निजता और स्वाभिमान को खोने के बाद जया अपनी संकल्प
शक्ति से खुद के लिये एक नया शामियाना तैयार करती है जिसके नीचे वह अपना और अपने प्यारे
बच्चों का भविष्य सँवार सके उन्हें बेहतर ज़िंदगी दे सके ! अपने इस नये नीड़ में
सुकून भरी सुबह शामों में कविता लिखने की उसकी भूली बिसरी प्रतिभा उसमें महत्वाकांक्षाओं
को अंकुरित करती है और वह जैसे अपनी कीमत पहचान कर आत्मविश्वास से भर उठती है !
कठिन जीवन यात्रा में उसकी रचनात्मकता जैसे किसी लंबी सी खोह के अंदर ओझल हो छिप
गयी थी ! वही पूरी भव्यता और इन्द्रधनुषी सौंदर्य के साथ जब पुन: उद्भूत होती है
तो उसे सर्वश्रेष्ठ कवियित्री के पुरस्कार से अलंकृत कर जाती है और उसे समाज में
प्रतिष्ठा, प्रशंसा और प्रसिद्धि सभी प्राप्त हो जाते हैं जिसकी वह आरंभ से ही
अधिकारी थी ! जया की यह श्रेष्ठ उपलब्धि हर नारी के मन में आशा, हर्ष और आत्मसम्मान
की भावना का संचार कर जाती है !
उपन्यास की भाषा सबसे अधिक रोचक है ! परस्पर वार्तालाप में संवादों की
बानगी देखते ही बनती है ! हर विवरण इतना रोचक और सजीव है कि पाठक स्वयं को उस
दृश्य विशेष में सम्मिलित ही पाता है ! यह उपन्यास बिहार के आम मध्यम वर्ग की
मानसिकता का बखूबी प्रतिनिधित्व करता है ! रश्मि जी ने इस उपन्यास के साथ हिंदी
साहित्य जगत में अपनी धमाकेदार उपस्थिति दर्ज कराई है ! उनका हार्दिक अभिनन्दन तथा
‘काँच के शामियाने’ की अपार सफलता के लिये उन्हें अनंत शुभकामनायें !
साधना वैद