यूँ तो मुझे
सरप्राइज़ ज़रा भी अच्छे नहीं लगते
हर काम अच्छी तरह से
सोच समझ कर
सुनियोजित सुविचारित
रूप से
करना ही मुझे पसंद
है
लेकिन मेरी प्यारी
सखी
तुझसे मेरी यही
इल्तिजा है कि
तू जब भी मेरे घर
आये
मुझे कोई भी पूर्व
सूचना दिए बिना
आचानक से ही आ जाना
!
मैं यह अच्छी तरह से
जानती हूँ कि
एक न एक दिन तू मेरे
घर आयेगी ज़रूर !
मैं लाख मना करूँ,
तुझे कितना भी रोकूँ,
तेरे मुँह पर दरवाज़ा
बंद कर दूँ
तू कोई न कोई जुगत
लगा कर
मेरे पास आ ही
जायेगी !
आना ! ज़रूर आना !
मेरी प्यारी सखी,
बस मेरी इतनी सी बात
मान लेना
कि तू जब भी आना
चाहे मेरे पास
अचानक से ही आ धमकना
!
मुझे पहले बता कर
अपनी प्रतीक्षा
करवाने के लिए
मुझे मजबूर मत करना
!
मुझे किसीका भी इंतज़ार
करना
अच्छा नहीं लगता !
और तेरा तो बिलकुल
भी नहीं
रोज़ दम साधे सुबह, दोपहर,
शाम, रात
आँखों में काटना,
रोज़ व्याकुल होकर
बार बार रास्ते पर
निगाहें बिछा कर
बैठे रहना,
भगवान् से मिन्नतें
प्रार्थनाएं करना
और तेरे आगमन की
प्रतीक्षा में
असह्य अनिर्वचनीय
कष्ट और
मानसिक संताप को
झेलना
मुझे ज़रा भी अच्छा
नहीं लगेगा !
इस बार तो मैंने
तुझे चकमा देकर
लौटा दिया था अपने
दर से !
जानती हूँ हर बार यह
संभव न होगा !
एक दिन तो मुझे हर
हाल में
तेरा स्वागत करना ही
होगा !
बस उस दिन तू मुझे
अपनी बाहों में भर
कर
खामोशी से चुरा कर
ले जाना
दूर बहुत दूर !
मैं तुझसे कोई सवाल
नहीं करूँगी
हम दोनों हाथों में
हाथ डाले खुशी खुशी
चलेंगे साथ साथ
अनचीन्हे रास्तों पर
जहाँ पथ पर रोशनी ही
रोशनी हो,
जहाँ वातावरण में
दिव्य संगीत गूँजता हो
और जहाँ अपार शान्ति
हो, सुकून हो
और हो तेरा साथ !
तो किसी दिन आना
ज़रूर सखी !
उस दिन बिलकुल चुपके
से
मुझे सरप्राइज देने
के लिए
अनायास ही तुम आ
धमकना
इस सरप्राइज़ का मैं
ज़रूर
तहे दिल से स्वागत
करूँगी
ये वादा रहा !
साधना वैद