Friday, February 25, 2022

अम्माँ की बोली

 



अम्माँ की बोली 

सद्गुण संस्कार से

भर दे झोली 


अम्माँ की बोली 

मन और प्राणों में 

मधु सा घोली 


अम्माँ की बोली 

गुणकारक जैसे 

नीम निबोली 


अम्माँ की बोली 

उनींदी पलकों पे 

मीठी सी लोरी 


अम्माँ की बोली 

फूल ने हवाओं में 

खुशबू घोली 


अम्माँ की बोली 

मीठी इतनी जैसे 

कोयल बोली 


अम्माँ की बोली 

दुलराती शब्दों से 

बेटी को भोली 


अम्माँ की बोली 

धमकाती बच्चों को 

मस्तों की टोली 


अम्माँ की बोली 

पावन इतनी ज्यों 

देवों की बोली | 



साधना वैद 




Monday, February 21, 2022

दोष किसका है

 


चुनाव का मौसम चल रहा है ! बड़े दुख की बात है कि मतदान के लिए लोगों को ‘जगाने’ के सारे भागीरथ प्रयत्न विफल हो गये । लेकिन उससे भी बडे दुख की बात यह है कि जो ‘जाग’ गये थे उनको हमारे अकर्मण्य तंत्र की खोखली कार्यप्रणाली ने दोबारा ‘सोने’ के लिये मजबूर कर दिया ।

आपको अभी इसी दस फरवरी का अपना कटु संस्मरण सुनाना चाहती हूँ ! पता नहीं क्यों और कैसे मेरा नाम मतदाता सूची में से अकारण ही विलुप्त हो गया है ! इसका पहली बार पता हमें तब चला जब २०१९ में लोकसभा के चुनाव हुए ! हमारे घर पर हमारे परिवार के सभी सदस्यों के नाम की पर्ची आई लेकिन मेरे नाम और नंबर की पर्ची नहीं आई ! हम इसे मानवीय भूल समझ कर निश्चित दिन अपने मताधिकार का प्रयोग करने के लिए मतदान केंद्र पर पहुँच गए ! लेकिन हमें पर्ची के बिना वोट नहीं डालने दिया गया ! हम जनता की मदद के लिए बैठे हुए उन अधिकारियों के पास गए जिनके पास कई प्रकार की मतदाता सूचियाँ उपलब्ध थीं ! मई माह की कड़ी धूप में झुलसते हुए हम उन सूचियों में अपना नाम और अपनी सूरत तलाशते रहे लेकिन हमें सफलता नहीं मिली ! हमारी हताशा बढ़ती जा रही थी और उस पर आगरा की दोपहरी का प्रखर सूरज हमें और जलाए जा रहा था ! हमारे पतिदेव हमें समझाते हुए बोले, “कब तक यहाँ इतनी विकट धूप और गर्मी में खड़ी रहोगी चलो घर चलते हैं अगली बार अपना वोट देना !” लेकिन उस समय हमें कोई तर्क कोई सुझाव समझ में नहीं आ रहा था ! आगे क्या करना है हम सोच चुके थे ! बड़ी तसल्ली से हमने पतिदेव से कहा, “आप अपना वोट डाल चुके हैं आप चाहें तो घर चले जाइए ! हम अपना वोट डाल कर ही आयेंगे ! पिक्चर तो अभी शुरू हुई है !” श्रीमान जी हमारे तेवर देख कर चुप हो गए लेकिन वे भी हमारे साथ ही मोर्चे पर डटे रहे घर नहीं गए ! हमने अपने नम्बर वाले कक्ष में जाकर फिर से ऐलान किया कि हमारे नाम की पर्ची नहीं है लेकिन आप हमें हमारे मतदान करने के बुनियादी अधिकार से वंचित नहीं कर सकते हम अपना वोट देकर ही जायेंगे ! पोलिंग ऑफीसर ने बड़ा विरोध किया बोला यह हमारे अधिकार में नहीं है ! बिना पर्ची के हम आपको वोट नहीं डालने दे सकते ! लेकिन हम भी अड़ गए, “आपके अधिकार में नहीं है तो आपसे ऊपर कौन है जिसके अधिकार में है उसका नाम बताइये उसका टेलीफोन नंबर बताइये हम उससे बात करेंगे लेकिन अपना वोट बिना दिए नहीं जायेंगे ! आप यह भी नहीं करेंगे तो हम पार्टी कमान को फोन करेंगे या पी एम ओ ऑफिस में फोन करेंगे ! मीडिया को बुलायेंगे कि इस बूथ पर धाँधली हो रही है !” हमारे तेवर देख कर अधिकारी कुछ ठन्डे पड़े और आखिर में बड़ी हीलो हुज्जत के बाद उन्होंने हमें वोट डालने की इजाज़त दे दी और हम अपना वोट डाल कर आ गए ! लेकिन मन बड़ा कसैला हो गया ! किसे दोषी माना जाए इन सभी अनियमितताओं के लिए ! और जो कम शिक्षित हैं या हमारी तरह जुझारू नहीं हैं उन्हें किसकी गलती का दंड भुगतना पड़ रहा है कि वे तो अपने मताधिकार का प्रयोग कर ही नहीं पा रहे लेकिन बाद में उनके ही नाम से कितने फर्जी वोट पड़ रहे होंगे इसका हिसाब किसके पास होगा !
इस साल फिर चुनाव आने वाले थे ! जिस दिन से चुनाव की घोषणा हुई थी मतदाता सूचियों के सुधारे जाने और उनका नवीनीकरण किये जाने का एक ‘वृहद कार्यक्रम’ चलाया गया । मतदाता सूची में संशोधन के लिए कई बार कैम्प लगे कि जो नए मतदाता वोट देने के अधिकारी हो गए हैं उनका नाम वोटर्स लिस्ट में जोड़ दिया जाए और जिनका भूल वश मिट गया है या छूट गया है उनका भी जुड़ जाए ! नवम्बर माह में हमने ऐसे ही एक कैम्प में जाकर फिर से अपना फॉर्म भरा ! घर के दोबारा चक्कर लगा कर फोटो लेकर आये ! सारी औपचारिकताए पूरी कीं ! अधिकारियों ने हमें आश्वस्त किया कि आपका नाम मतदाता सूची में निश्चित रूप से जुड़ जाएगा और आपके पास सरकार की तरफ से इसकी सूचना भी जल्दी ही आ जायेगी !
प्रदेश के चुनाव का समय आ गया ! मतदान का दिन भी आ गया लेकिन न तो हमारे पास सरकार की तरफ से कोई सूचना ही आई न ही पर्ची आई ! हमें अंदेशा हो गया था कि इस बार भी फिर वही कहानी दोहराई जायेगी ! इसलिए हम पूरी तरह से चाक चौबस्त होकर मतदान केंद्र पर गए ! पासपोर्ट, पैन कार्ड, वोटर्स कार्ड, आधार कार्ड तो ले ही गए थे साथ ही ऐसी सूरत में किस धारा के तहत चैलेन्ज वोट या टेंडर वोट का अधिकार माँगा जा सकता है हम इसका भी प्रिंट आउट निकाल कर अपने साथ ले गए थे क्योंकि सरकारी तंत्र पर हमें ज़रा सा भी भरोसा नहीं था कि हमारा नाम जुड़ गया होगा ! और वही हुआ ! इस बार भी लोक सभा चुनाव के समय मंचित हुआ पूरा नाटक उन्हीं दृश्यों और संवादों के साथ दोहराया गया ! इस बार हमें अपना स्वर कुछ और बुलंद करना पडा क्योंकि अधिकारी कुछ अधिक अकडू थे ! लेकिन अंतत: हम अपने मताधिकार का प्रयोग करके ही आये !
इतनी कवायद के बाद यह तो तय है कि हमारे सरकारी ऑफिसों की कार्यकुशलता की जो बानगी है उसके कारण हालात में रत्ती भर भी कोई सुधार आयेगा इसका हमें अब भरोसा नहीं रह गया है ! इसलिए ऐसी समस्याएँ पैदा न हों उसके लिए कुछ प्रभावी कदम उठाने चाहिये ! मतदान केन्द्रों पर एक ऐसे निष्पक्ष अधिकारी को नियुक्त करना चाहिये जो स्वविवेक से यह निर्णय ले सके कि इस निकम्मी व्यवस्था के शिकार ऐसे लोग किस तरह से अपने मताधिकार का प्रयोग करें और उन्हें अपने बुनियादी अधिकार से वंचित रहने का दंश ना झेलना पड़े । भारत जैसे विशाल देश में जहाँ एक बड़ी संख्या में अशिक्षित मतदाता हैं शासन तंत्र को उनका छोटे बच्चों की तरह ध्यान रखने की ज़रूरत है । छिद्रान्वेषण कर उनको वोट देने से रोकने से काम नहीं चलेगा ज़रूरत इस बात की है कि तत्काल वहीं के वहीं उन कमियों को दूर करने के विकल्प तलाशे जायें और उन्हें भी नई सरकार के निर्माण में अपना अनमोल योगदान देने के गौरव को अनुभव करने का अवसर मिल पाए ! चुनाव का अभी भी अंतिम चरण बाकी है । शायद चुनाव आयोग इस ओर ध्यान देगा ।



साधना वैद
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Tuesday, February 15, 2022

प्यारी गुड़िया




 

कितनी मोहक

कितनी आकर्षक है

तुम्हारे अधरों पर

ठिठकी यह मुस्कान !

कितना लुभा रहे हैं  

तुम्हारे खुले बिखरे ये बाल !

लगता है दो तीन दिन से

कंघी ने स्पर्श नहीं किया है इन्हें,

लेकिन फिर भी कितना

खिल रहा है तुम्हारा चेहरा

इस बिखरी केशराशि से घिरा !

आँखों में कितना निश्छल सा आग्रह है

कितना निष्पाप सा आमंत्रण है

अपना अधखाया हुआ

जूठा सैंडविच साझा करने का !

कैसे न बलिहारी जाऊँ

तुम्हारी मासूमियत पर

मेरी प्यारी सी गुड़िया रानी !

माँ हूँ न तुम्हारी !

सौ सौ जान कुर्बान जाती हूँ 

तुम्हारी इस दरियादिली पर

तुम्हारी लाड़ भरी मनुहार पर !

किसीकी नज़र ना लगे

मेरी राजकुमारी को

बस यही दुआ है

नसीबों वाली इस माँ की !

 

साधना वैद

Sunday, February 6, 2022

श्रद्धांजली - लता मंगेशकर

 



तुम क्या गईं
बिखर गए स्वर
रोया संगीत

एक भूकंप
ढह गया भवन
सात सुरों का

मौन हो गई
मधुरतम वाणी
रोया भारत ।

तुम जो गयीं
थम गया सफ़र
सो गए स्वर

क्या कहें तुम्हें
अचानक चल दीं
दिल तोड़ के

ये भी न सोचा
कैसे सहेंगे दुःख
संगीत प्रेमी

कैसे भरेंगे
ऐसे जाने से बने
खालीपन को

निर्मोही बन
चल दीं छोड़ कर
सबको रोते

स्वर सम्राज्ञी
सुरों की मलिका या
स्वर कोकिला

यूँ चली गयीं
देश ही नहीं बल्कि
विश्व है हिला

जाओ पुण्यात्मा
भर दो बृह्मांड को
दिव्य स्वरों से

देव गणों को
कर दो मदहोश
निज गीतों से

सुरों का जादू
फैला देना स्वर्ग में
तुम्हें कसम

सुरों की देवी
लता मंगेशकर
तुम्हें नमन !


साधना वैद