आज रक्षा बंधन
का त्योहार है ! असलम के पैर धीरे-धीरे अपने प्रिय दोस्त विशाल के घर की तरफ बढ़
रहे थे ! सालों से उसकी बहन प्रतिभा विशाल के साथ-साथ उसे भी बड़े प्यार से राखी
बाँधती आ रही है ! विशाल की माँ ने भी हमेशा असलम को अपने बेटे की तरह ही माना है
! हर ईद पर वे असलम और उसकी छोटी बहन सबा के लिए मिठाई और उपहार देना कभी नहीं
भूलीं लेकिन इस बार पहलगाम के आतंकी हमले के बाद विशाल के घर में असलम का पहले सी
गर्मजोशी के साथ स्वागत होना बंद हो गया था ! प्रकट रूप से किसीने कुछ कहा नहीं
लेकिन व्यवहार में आया ठंडापन बिन कहे भी बहुत कुछ कह जाता था !
दरवाज़े पर पहुँच कर असलम ने कॉल बेल का बटन दबा दिया ! विशाल ने ही दरवाज़ा खोला !
माथे पर तिलक और कलाई पर सुन्दर सी राखी जगमगा रही थी !
“अरे, राखी बँध भी गई ? मुझे आने में देर हो गई
क्या ?” असलम ने अपनी मायूसी को छिपाते हुए परिहास करते हुए कहा !
“कहाँ है प्रतिभा ? जल्दी से बुला लो उसे ! मुझे भी बाँध दे राखी ! आज अम्मी को
नर्सिंग होम ले जाना है दिखाने के लिए !”
“अरे तो वही काम पहले करो न !” विशाल की माँ बोली ! “राखी का क्या है ! बाद में भी
बँध सकती है ! अभी तो प्रतिभा को भी जाना है अपनी सहेली के यहाँ ! तुम पहले अपनी
अम्मी को दिखा आओ !”
असलम संबंधों में आई दरार को शिद्दत से महसूस कर रहा था ! विशाल की माँ के लिए
अम्मी की बीमारी की बात ढाल का काम कर रही थी ! वे चोर निगाहों से अन्दर कमरे की ओर
देख रही थीं कहीं प्रतिभा बाहर न आ जाए !
तभी राखी की सजी हुई थाली हाथ में लिए प्रतिभा ने कमरे में प्रवेश किया !
“ओफ्फोह, कितनी देर लगा दी असलम भैया ! आप जानते तो हैं मैं जब तक आपको राखी नहीं
बाँध लेती पानी भी नहीं पीती !” मिठाई का टुकड़ा असलम को खिलाते हुए प्रतिभा की
आवाज़ रुँध गयी थी ! असलम की आँखें में भी नमी आ गई थी ! आकाश में धुंध को चीर कर
धूप निकल आई थी !
साधना वैद
आप जानते तो हैं मैं जब तक आपको राखी नहीं बाँध लेती पानी भी नहीं पीती
ReplyDeleteसुंदर कथा
सादर
बहुत सुंदर कहानी, यह विश्वास बना रहे
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteबेहतरीन
ReplyDeleteऐसी कथाएं सच हों और रिश्तों को बाँध कर रखें ! प्यारी लघुकथा..नज़र न लगे..
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