Friday, April 16, 2010

किसीको माया किसीका मरण

कल १४ अप्रेल के दैनिक जागरण के मुख पृष्ठ के कॉलम न.१ में एक रोचक समाचार पढने को मिला कि “मायावती की प्रतिमा टॉप टेन कुरूप प्रतिमाओं में शुमार” ! अमेरिका की प्रतिष्ठित पत्रिका ‘फॉरेन पॉलिसी’ ने दुनिया की सबसे कुरूप ११ प्रतिमाओं की सूची जारी की है जिसमें उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री सुश्री मायावती की प्रतिमा भी छठवें स्थान पर शामिल है ! प्रतिमा की फोटो के ऊपर शीर्षक में लिखा है “जब बुरी कला और स्तरहीन राजनीति का मिलन होता है” ! पत्रिका ने यह भी लिखा है कि मायावती की ‘दलितों की मसीहा’ के तौर पर जानी जाने वाली छवि को गत वर्ष उस समय धक्का लगा जब सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें लोक निधि से ४२ करोड ५० लाख अमेरिकी डॉलर ( करीब १८ अरब रुपये ) खर्च कर खुद की और दूसरे लोकप्रिय दलित नेताओं की मूर्ति निर्माण के लिये फटकार लगाई ! आज के समाचार पत्र में मायावती जी का यह कथन भी उद्धृत है कि “इन स्थलों व स्मारकों का किसी भी स्तर पर कितना ही विरोध क्यों न हो हमारी पार्टी और सरकार तिल भर भी नहीं झुकने वाली !” कल अम्बेडकर शोभा यात्रा के दौरान जुलूस में एक ऐसी झाँकी भी थी जिसमें श्रीमती सोनिया गाँधी व श्री लाल कृष्ण आडवानी को नोटों के हार पहने हुए तथा श्री अटल बिहारी बाजपेयी को चाँदी का मुकुट पहने हुए तस्वीरों में दिखाया गया था साथ ही मायावती ५ करोड मूल्य के नोटों का हार पहने कह रही हैं, “ जब ये सब पहन सकते हैं तो मैं क्यों नहीं ?”
उपरोक्त उद्धृत बातों से यह तो साफ़ हो गया है कि हमारे देश में किस तरह के नेता हैं और राजनीति के फलक पर किस स्तर की राजनीति हो रही है ! अरबों रुपयों की मूर्तियां और पार्क बनाने वाले और करोड़ों रुपयों के हार से अपना अभिनन्दन करवाने वाले नेताओं को क्या इस बात का आभास है कि बाज़ार में आम इंसान गेहूँ का आटा २२/-रुपये किलो खरीद रहा है, और चीनी की कीमत ४०/- रुपये किलो हो गयी है, दालें १००/- रुपये किलो मिल रही हैं और सब्जियों के दाम आसमान को छू रहे हैं ? उन्हें तो कई तरह के पकवान टेबिल पर सजे हुए मिलते हैं ! रसोई की तरफ रुख करने की उन्हें ज़रूरत ही कहाँ होती है ! आम इंसानों की तरह कभी बाज़ार जाकर उन्हें सामान खरीदने की आवश्यकता ही नहीं होती ! उन्हें कभी इस दुविधा से नहीं गुजरना पडता कि इस महीने बिना दालों के ही राशन का सामान खरीद लिया जाए या दूध और चीनी की बढती हुई कीमतों को देखते हुए इस माह से बच्चों को दो बार की जगह एक बार ही दूध दिया जाए या फिर उन्हें दूध की जगह चाय पिलाना शुरू किया जाए ! और यह सब इसलिए नहीं हो रहा है कि नेताओं के भाग्य में छप्पन भोग और आम आदमी के भाग्य में किल्लतें ऊपर वाले ने लिख दी हैं, यह सिर्फ और सिर्फ इसलिए हो रहा है कि हमारे नेता जनता की दिक्कतों, उसकी परेशानियों और उसकी ज़रूरतों से बेखबर अपने महिमा मन्डन, अभिनन्दन और अपने अहम की तुष्टि के लिये हमारे द्वारा टैक्स के रूप में दी गयी राशि का मनमाने तौर पर दुरुपयोग करने में लगे हुए हैं और नित नए नए टैक्स लगा कर आम जनता को निचोड़ रहे हैं !
मँहगाई का यह आलम है कि सुरसा की तरह उसका मुँह खुला हुआ है और उस पर कोई लगाम नहीं है ! सरकारी गोदामों में टनों गेहूँ सड़ रहा है लेकिन गरीब आदमी आधा पेट खाकर सो रहा है ! सस्ते दामों पर चीनी का संग्रहण निर्यात के लिये सरकार द्वारा किया जा रहा है लेकिन घरेलू बाज़ार में आम जनता को मंहगे दामों पर चीनी खरीदनी पड रही है ! पिछले दो वर्ष में खाने पीने के सामान की कीमतों में दोगुनी वृद्धि हुई है लेकिन आमदनी वहीं की वहीं है ! इसके लिये कौन उत्तरदायी है ? क्या जनता को यह जानने का अधिकार नहीं है कि जब अपने अस्तित्व के लिये आम आदमी को इतनी जद्दोजहद करनी पड रही है ऐसे में सरकार उसीसे उगाहे रुपयों का इस तरह दुरुपयोग किस नैतिक आधार पर कर रही है ? आम जनता जब बच्चों के मुँह के निवाले गिन रही है हमारे देश के नेता एक दूसरे की मालाओं में पिरोये गए करोड़ों के नोट गिनने में व्यस्त हैं ! क्या इसी स्वराज का सपना गांधीजी ने देखा था ! एक नेता वो थे जिन्होंने अपना सर्वस्व देश पर न्यौछावर कर दिया एक आज के नेता हैं जो जितना अधिक से अधिक बटोर सकते हैं देश वासियों को और देश के संसाधनों को निचोड़ कर अपना घर और बैंक एकाउंट्स भर रहे हैं ! जैसी अराजकता और भ्रष्टाचार हमारे देश में व्याप्त है क्या अन्य किसी और देश में ऐसा है ? सरकार की पारदर्शिता कहाँ है ? सरकार की इन असामाजिक नीतियों पर किसका अंकुश होना चाहिए ? और अंकुश लगाने वाली वह व्यवस्था कहाँ सोई पड़ी है ? जनता के इन सवालों का जवाब कौन देगा ?
है पत्थरों की नगरी पत्थर के बुत जहाँ हैं !
उनको लगाने वाले वो संगदिल कहाँ हैं ?
ये कैसा न्याय दाता जाएँ कहाँ शरण में
मिलती किसीको माया जीता कोई मरण में !


साधना वैद

7 comments:

  1. sahi kaha Sadhna ji...achcha lekh
    http://dilkikalam-dileep.blogspot.com/

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  2. aap to raajneeti par bhee gajab kaa likhtee hai| aaj kee rajneeti janataa kee sevaa ke liye nahee apnaa pet bharane ke liye huaa karatee hai.savaal hai joaadarsho valaa vyakti hai vah to isame jaanaa nahi chaahegaa fir viklp hi kya bachataa hai ham chahe athvaana chaahe sach t yah haiapni bagdor hamane inhe saup rakhi hai|

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  3. यह लेख पढ कर एक संस्मरण याद आ गया|
    जब हम पांडिचेरी गए ,अधिक गर्मी के कारण
    समुद्र के तट पर बनी गांधी जी की प्रतिमा वाले
    शेड में पहुचे |वहां बेहद तो गंदगी थी और एक कुत्ता उस प्रतिमा पर मूत्र त्याग कर रहा था |
    यदि ठीक से रख रखाव ना हो तो जगह जगह
    मूर्तियां लगाने से क्या फायदा |हाँ यदि इनसे किसी राजनैतिक उद्देश्य की पूर्ती हो तो एक अलग बात है
    कटाक्ष सराहनीय है |
    आशा

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  4. जनता के इन सवालों का जवाब कौन देगा ?

    sahi kaha hai aapne swalo ke jwaab kisi ke paas nahi hai

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  5. प्रतिमा की कुरूपता पर न जायें कलाकार के बस मे जितना होता है वह उतना ही करता है ।

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  6. इन स्तर हीन इंसानों को नेता बनाता कौन है? हम ही न ..हम ही अपने लिए ऐसे लोग चुन लेते हैं जिन्हें चुन कर खुद अपने आप पर शर्म आने लगती है...
    नीरज

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