Monday, February 7, 2011

मुझे मत पुकारो

मैंने तो अंतस को
उजागर
करने के लिये
तेरी यादों की प्रखर ज्वाला को
मन के हर कोने में
प्रज्वलित किया था ,
ये गीली लकड़ियों की कसैली,
सीली-सीली सी आग
कैसे मेरे मन में घुट गयी है
जिसने मेरी आँखें कड़वे
धुँए से भर दी हैं !

मैंने तो मंज़िल तक जाने के लिये
हर फूल, हर पत्ती,
हर शाख, हर पंछी ,
यहाँ तक कि उस दिशा से
आने वाले हवा के हर झोंके से
तेरी रहगुज़र का पता पूछा था ,
लेकिन ना जाने क्यों तब
सबके होंठ सिले हुए थे !

अब जब मुझे इस कड़वे,
कसैले धुँए को झेलने की ,
अनजाने, अनचीन्हे लंबे रास्तों
पर नितांत एकाकी चलने की
और खुद से ही अपने दुःख दर्द
बाँटने की आदत हो गयी है
तो अब तुम पीछे से
मुझे मत पुकारो !



साधना वैद

13 comments:

  1. आदरणीय साधना वैद जी
    नमस्कार !
    कोमल भावों से सजी ..
    ..........दिल को छू लेने वाली प्रस्तुती

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  2. वसन्त की आप को हार्दिक शुभकामनायें !
    फुर्सत मिले तो 'आदत.. मुस्कुराने की' पर आकर नयी पोस्ट ज़रूर पढ़े .........धन्यवाद |

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  3. अब जब मुझे इस कड़वे,
    कसैले धुँए को झेलने की ,
    अनजाने, अनचीन्हे लंबे रास्तों
    पर नितांत एकाकी चलने की
    और खुद से ही अपने दुःख दर्द
    बाँटने की आदत हो गयी है
    तो अब तुम पीछे से
    मुझे मत पुकारो !
    ... bahut hi bhawnatmak rachna

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  4. बहुत भावमय रचना है लेकिन पीछे से पुकारने वाले ही तो जीने नही देते। शुभकामनायें।

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  5. आने वाले हवा के हर झोंके से
    तेरी रहगुज़र का पता पूछा था ,
    लेकिन ना जाने क्यों तब
    सबके होंठ सिले हुए थे !

    ऐसा ही होता है...जब दर- दर ढूंढता है मन किसी चीज़ को तो वो नहीं मिलती...और जब थक हार कर हालात से समझौते कर लेता है..तब अनायास ही वो चीज़...पहुँच के अंदर प्रतीत होती है..पर तब तक इसकी ख़ुशी महसूस करने की इच्छा ही ख़त्म हो गयी होती है.

    सार्थक अभिव्यक्ति

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  6. तो अब तुम पीछे से
    मुझे मत पुकारो !

    बहुत ही सुन्दर भाव.
    सलाम.

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  7. और खुद से ही अपने दुःख दर्द
    बाँटने की आदत हो गयी है
    तो अब तुम पीछे से
    मुझे मत पुकारो !
    वाह जी जबाब नही, बहुत सुंदर, धन्यवाद

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  8. bahut sundar bhavabhivyakti ke liye hardik shubhkamnaye .

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  9. अब जब मुझे इस कड़वे,
    कसैले धुँए को झेलने की ,
    अनजाने, अनचीन्हे लंबे रास्तों
    पर नितांत एकाकी चलने की
    और खुद से ही अपने दुःख दर्द
    बाँटने की आदत हो गयी है
    तो अब तुम पीछे से
    मुझे मत पुकारो !



    ----------------------

    लेकिन इस
    "तो अब तुम पीछे से
    मुझे मत पुकारो !"
    पंक्ति में भी मुझे पुकारने की एक उम्मीद और चाह नजर आती है..
    .

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  10. और खुद से ही अपने दुःख दर्द
    बाँटने की आदत हो गयी है
    तो अब तुम पीछे से
    मुझे मत पुकारो !
    kya boloon...ekdam nihshabd ho gayee hoon.

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  11. कविता के भाव दिल को छू गए |
    बधाई |
    आशा

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  12. गीली लकड़ियों की कसैली सीली सीली सी आग ...
    तो अब पीछे से मत पुकारो ...
    इस दर्द में साथ डूबती उतरती हूँ ...
    गहन एहसासों की रचना !

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  13. अब जब मुझे इस कड़वे,
    कसैले धुँए को झेलने की ,
    अनजाने, अनचीन्हे लंबे रास्तों
    पर नितांत एकाकी चलने की
    और खुद से ही अपने दुःख दर्द
    बाँटने की आदत हो गयी है
    तो अब तुम पीछे से
    मुझे मत पुकारो !


    मन की गहन वेदना को चित्रित करती पंक्तियाँ ....बहुत संवेदनशील रचना

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