मैंने तो अंतस को
उजागर करने के लिये
तेरी यादों की प्रखर ज्वाला को
मन के हर कोने में
प्रज्वलित किया था ,
ये गीली लकड़ियों की कसैली,
सीली-सीली सी आग
कैसे मेरे मन में घुट गयी है
जिसने मेरी आँखें कड़वे
धुँए से भर दी हैं !
मैंने तो मंज़िल तक जाने के लिये
हर फूल, हर पत्ती,
हर शाख, हर पंछी ,
यहाँ तक कि उस दिशा से
आने वाले हवा के हर झोंके से
तेरी रहगुज़र का पता पूछा था ,
लेकिन ना जाने क्यों तब
सबके होंठ सिले हुए थे !
अब जब मुझे इस कड़वे,
कसैले धुँए को झेलने की ,
अनजाने, अनचीन्हे लंबे रास्तों
पर नितांत एकाकी चलने की
और खुद से ही अपने दुःख दर्द
बाँटने की आदत हो गयी है
तो अब तुम पीछे से
मुझे मत पुकारो !
साधना वैद
आदरणीय साधना वैद जी
ReplyDeleteनमस्कार !
कोमल भावों से सजी ..
..........दिल को छू लेने वाली प्रस्तुती
वसन्त की आप को हार्दिक शुभकामनायें !
ReplyDeleteफुर्सत मिले तो 'आदत.. मुस्कुराने की' पर आकर नयी पोस्ट ज़रूर पढ़े .........धन्यवाद |
अब जब मुझे इस कड़वे,
ReplyDeleteकसैले धुँए को झेलने की ,
अनजाने, अनचीन्हे लंबे रास्तों
पर नितांत एकाकी चलने की
और खुद से ही अपने दुःख दर्द
बाँटने की आदत हो गयी है
तो अब तुम पीछे से
मुझे मत पुकारो !
... bahut hi bhawnatmak rachna
बहुत भावमय रचना है लेकिन पीछे से पुकारने वाले ही तो जीने नही देते। शुभकामनायें।
ReplyDeleteआने वाले हवा के हर झोंके से
ReplyDeleteतेरी रहगुज़र का पता पूछा था ,
लेकिन ना जाने क्यों तब
सबके होंठ सिले हुए थे !
ऐसा ही होता है...जब दर- दर ढूंढता है मन किसी चीज़ को तो वो नहीं मिलती...और जब थक हार कर हालात से समझौते कर लेता है..तब अनायास ही वो चीज़...पहुँच के अंदर प्रतीत होती है..पर तब तक इसकी ख़ुशी महसूस करने की इच्छा ही ख़त्म हो गयी होती है.
सार्थक अभिव्यक्ति
तो अब तुम पीछे से
ReplyDeleteमुझे मत पुकारो !
बहुत ही सुन्दर भाव.
सलाम.
और खुद से ही अपने दुःख दर्द
ReplyDeleteबाँटने की आदत हो गयी है
तो अब तुम पीछे से
मुझे मत पुकारो !
वाह जी जबाब नही, बहुत सुंदर, धन्यवाद
bahut sundar bhavabhivyakti ke liye hardik shubhkamnaye .
ReplyDeleteअब जब मुझे इस कड़वे,
ReplyDeleteकसैले धुँए को झेलने की ,
अनजाने, अनचीन्हे लंबे रास्तों
पर नितांत एकाकी चलने की
और खुद से ही अपने दुःख दर्द
बाँटने की आदत हो गयी है
तो अब तुम पीछे से
मुझे मत पुकारो !
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लेकिन इस
"तो अब तुम पीछे से
मुझे मत पुकारो !"
पंक्ति में भी मुझे पुकारने की एक उम्मीद और चाह नजर आती है..
.
और खुद से ही अपने दुःख दर्द
ReplyDeleteबाँटने की आदत हो गयी है
तो अब तुम पीछे से
मुझे मत पुकारो !
kya boloon...ekdam nihshabd ho gayee hoon.
कविता के भाव दिल को छू गए |
ReplyDeleteबधाई |
आशा
गीली लकड़ियों की कसैली सीली सीली सी आग ...
ReplyDeleteतो अब पीछे से मत पुकारो ...
इस दर्द में साथ डूबती उतरती हूँ ...
गहन एहसासों की रचना !
अब जब मुझे इस कड़वे,
ReplyDeleteकसैले धुँए को झेलने की ,
अनजाने, अनचीन्हे लंबे रास्तों
पर नितांत एकाकी चलने की
और खुद से ही अपने दुःख दर्द
बाँटने की आदत हो गयी है
तो अब तुम पीछे से
मुझे मत पुकारो !
मन की गहन वेदना को चित्रित करती पंक्तियाँ ....बहुत संवेदनशील रचना