Friday, February 18, 2011
छज्जू का चौबारा
छज्जू के चौबारे में काव्य पाठ
बहुत दिनों से आप सबके साथ अपने इस सुखद अनुभव को बाँटने के बारे में सोच रही थी लेकिन अन्य भौतिक प्राथमिकताओं के चलते यही काम पिछड़ जाता था ! आज तो आपको 'छज्जू के चौबारे' में लेकर अवश्य जाना है जहाँ कला और साहित्य की निर्मल धारा अविरल प्रवाहित होती है और वहाँ उपस्थित हर एक व्यक्ति उस ज्ञान गंगा में गोते लगा कर पूर्णत: निर्मल एवं पवित्र हो जाता है !
पिछले साल जून माह में मैं अपने बेटे के पास अमेरिका गयी थी ! कैलीफोर्निया स्टेट के सेनोज़े शहर में वह रहता है ! सेनोज़े सैनफ्रांसिस्को से लगभग ४० मील दूर है ! यह एक बहुत ही खूबसूरत और प्यारा स्थान है ! यहाँ पर रहने वाले अधिकतर भारतीय सॉफ्टवेयर के फील्ड में कार्यरत हैं ! मैंने जो विशिष्ट बात वहाँ पर नोट की वह यह थी कि सभी एक दूसरे के साथ बहुत प्यार और सहयोग के साथ रहते हैं और एक दूसरे का बहुत ख्याल रखते हैं ! सेनोज़े,
सनी वेल, सैंटाक्लारा, कूपरटीनो, फ्रीमोंट आदि आस पास के छोटे-छोटे टाउन हैं जिनकी सारी व्यवस्थाएं तो अलग हैं लेकिन फिर भी वे एक ही शहर की लोकेलिटी जैसे लगते हैं !
अमेरिका में आम नागरिकों के कितने और क्या अधिकार हैं और वे उनका कितनी अच्छी तरह से सदुपयोग करते हैं अगर यह देखना है तो एक बार अमेरिका जाना होगा और सूक्ष्मता से इसका अध्ययन करना होगा ! विशेष रूप से वृद्ध लोगों का कितना ध्यान रखा जाता है और उनको कितनी सुविधाएँ उपलब्ध कराई जाती हैं इसके बारे में जान कर सभी चकित रह जायेंगे ! सीनियर सिटीजंस के लिये वहाँ हर टाउन में चंद क्लब बनाए जाते हैं जिनमें उस एरिया के बुज़ुर्ग व्यक्तियों को लगभग ना के बराबर धन लेकर सदस्य बनाया जाता है ! ये सभी सदस्य हर रोज दिन में ११ बजे से २-३ बजे तक एक स्थान पर एकत्रित होते हैं और साथ में बैठ कर एक दूसरे के साथ सुख दुःख बाँटते हैं और अन्य कई तरह की गतिविधियों में संलग्न रहते हैं ! किसी दिन सब मिल कर पिकनिक पर जाते हैं , किसी दिन योग की क्लासेज लगती हैं, किसी दिन पिक्चर का कार्यक्रम होता है तो किसी दिन साहित्यिक गतिविधि की सरगर्मी दिखाई देती है ! कूपर्टीनो के सीनियर सिटीजंस के क्लब में हर बुधवार के दिन 'छज्जू का चौबारा' सजाया जाता है जिसमें सभी सदस्य भाग लेते हैं ! कोई कहानी तो कोई कविता, कोई गीत तो कोई संस्मरण, कोई किसी गंभीर विषय पर भाषण तो कोई जोक्स सुना कर सबका मनोरंजन करता है ! वहाँ जाकर तीन चार घण्टे कैसे बीत जाते हैं पता ही नहीं चलता ! सभी सदस्य बाद में एक साथ लंच लेकर अपने घर को प्रस्थान करते हैं जो उन्हें बहुत ही नॉमीनल रेट्स पर मुहैया कराया जाता है ! जो सदस्य दूर से आते हैं उन्हें लाने व घर तक छोडने के लिये कन्वेयांस की व्यवस्था भी होती है !
इस क्लब में मुझे मेरे बेटे के मित्र आनंद की मम्मी श्रीमती राजलक्ष्मी ने बड़े प्यार के साथ आमंत्रित किया था ! मैं उनके आग्रह पर वहाँ गयी तो थी लेकिन मन में बहुत घबराहट और दुविधा सी थी कि मैं तो किसीसे भी परिचित नहीं हूँ कैसे सबके साथ समय बिताऊँगी ! क्योंकि इस कार्यक्रम में केवल सीनियर्स ही भाग ले सकते हैं इसलिए मेरे बेटे या बहू कविता में से कोई भी वहाँ मेरे साथ रुक नहीं सकता था ! कविता मुझे उस क्लब में छोड़ कर चली गयी थी ! राजलक्ष्मी जी से भी यह मेरी पहली मुलाक़ात ही थी ! मुझे यही चिंता हो रही थी कि मैं उन्हें पहचानूंगी कैसे ! लेकिन वहाँ पहुँच कर पल भर में ही मेरी सारी चिंता काफूर हो गयी थी ! कविता ने शायद उन्हें कॉल करके बता दिया था कि मैं वहाँ पहुँच गयी हूँ और राजलक्ष्मी जी फ़ौरन मुझे रिसीव करने बाहर आ गयी थीं ! उन्होंने सबसे मेरा परिचय करवाया ! फिर तो जिस प्यार और जोश के साथ वहाँ सबने मेरा स्वागत किया वह अनुभव मैं जीवन भर भूल नहीं पाऊँगी ! "छज्जू के चौबारे' में सब एक से बढ़ कर एक अपनी रचनाएं सुना रहे थे ! साथ ही चाय कॉफी के दौर चल रहे थे ! बीच में ही जाकर राजलक्ष्मी ने मेरा नाम अनाउंस करवा दिया ! मुझे स्टेज पर बुला कर कविता सुनाने का अनुरोध किया गया ! मुझे इस तरह कवि गोष्ठियों में काव्य पाठ करने का कोई अनुभव नहीं है लेकिन उस दिन बच निकलने की कोई राह दिखाई नहीं दे रही थी ! अंतत: मैंने अपनी दो कवितायें सुनाईं ! जिन्हें सबने बहुत सराहा और पसंद किया ! लगातार देर तक तालियाँ बजती रहीं ! वह पल मेरे जीवन का सबसे रोमांचकारी पल था ! उस दिन उस क्लब में जाना मेरे लिये बहुत ही सुखद अनुभव था ! मैं यही देख रही थी कि यहाँ विदेशी धरती पर भी ये सारे वृद्ध जन कितने खुश हैं शायद इसलिए कि इन्हें अपनी इच्छानुसार जीने के भरपूर अवसर मिल रहे हैं ! इनका अपना अस्तित्व है, अपनी पहचान है, अपनी मर्जी है और ये अपने मन के मुताबिक़ स्वच्छंदता से अपना जीवन जीने के लिये सक्षम हैं ! हमारे देश में हम अपने बुजुर्गों के लिये ऐसी सस्थाएं क्यों नहीं बना सकते जहाँ उन्हें भी घुटन भरी ज़िंदगी से बाहर निकलकर खुली हवा में साँस लेने का अवसर मिल सके और वे भी अपनी कलात्मक अभिरुचियों को निखार सकें !
साधना वैद
साधना जी आप ने बहुत सुंदर बात कही, मैने भी कई बार यही सोचा, लेकिन यह सब भारत मे सम्भाव नही हे, क्योकि भारत मे स्टेटस आडे आता हे, तो कही जात पात, तो कही धर्म आडे आता हे , जब हम भारत मे होते हे तो हम लोगो का सोचने का ढंग एक दम से अलग हो जाता हे, वहां हम दिखावे की जिन्दगी ज्यादा जीते हे,एक ही आफ़िस मे चार लोग काम करते हो तो चारो मे ही बहुत दुरी होगी , जब कि अमेरिका या युरोप मे यह सब नही मालिक या आफ़िसर सिर्फ़ आफ़िस मे ही बाद मे सब बराबर, ओर जिस दिन यह सोच हमारे भारत मे होगी उसी दिन हम ऎसे कलब भी वहां बना सकते हे,वर्ना तो हम टुकडो मे जीने के आदि हे
ReplyDeleteसाधना जी काश आप कुछ दिन पहले गयी होती या फिर मै देर से आती तो वहाँ दोनो का साथ बहुत अच्छा रहता। आप जैसी अनुभूतियाँ वहाँ मुझे भी हुयी थीं। मुझे लगता है वहाँ आपस मे भारत से अधिक मेल जोल है शायद विदेश मे होने का एहसास होता है। उनकी हर व्यवस्था से और कानून के प्रति सम्मान से मै भी बहुत प्रभावित हुयी हूँ। शुभकामनायें।
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा यह सब जाँ कर ...भाटिया जी ठीक ही कह रहे हैं ..यहाँ लोग खुद ही मन के दरवाज़े बंद कर बैठ जाते हैं ...स्टेटस को बीच में ले आते हैं और यूँही टुकड़ों में जीने को मजबूर हो जाते हैं ....यहाँ क़ानून बना भी दिए जाएँ तो तोडने की जुगत पहले लगाते हैं ...
ReplyDeleteअमेरिका और भारत के लोगों के रहनसहन और सोच में काफी अंतर है |यहाँ यह सब इतना आसान नहीं है |यहाँ वर्ण विभेद ,वर्ग विभेद और अमीर गरीब
ReplyDeleteमें इतना अंतर है कि उस खाई को पाटना आसान नहींहै |अतः यह सब बातें कल्पना में ही अच्छी लगती हैं |अच्छा संस्मरण है |बधाई
आशा
बहुत अच्छा लगा ये सब जानकार...काश हमारे देश में भी ऐसा ही कुछ संभव हो पाता...हमारे देश के बुजुर्ग असहाय जीवन जीते हुए अपने अंतिम दिन मंदिर भ्रमण और पूजा पाठ में लगा देते हैं...हाँ शहरों में पढ़े लिखे समृद्ध लोग अक्सर अपनी बैठकें जमाते हैं...न बल्ख न बुखारे जो मज़ा छज्जू के चौबारे...
ReplyDeleteनीरज
बहुत अच्छा लगा यह सब
ReplyDeleteअच्छा संस्मरण है |बधाई
ReplyDeleteसुंदर संस्मरण।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर संस्मरण....और आपने दो पंक्तियाँ ही क्यूँ सुनाईं....इतना सुन्दर लिखती हैं.....दो-चार कविताएँ सुनानी चाहिए थीं :)
ReplyDeleteबहुत ही अच्छा लगा जानकर....कि वहाँ अपने बच्चों के पास गए बुजुर्ग, अकेलापन महसूस नहीं अक्र्ते...और इतनी अच्छी संस्थाएं हैं, जहाँ उन्हें लोगो से मिलने जुलने का मौका मिलता है.
अभी अपने पोस्ट में मैने यही बात लिखी है कि हर शहर -कस्बे में सामाजिक संस्थाएं होनी चाहियें...जहाँ जाकर महिलाएँ,बुजुर्ग...कुछ सार्थक योगदान कर सकें.
अच्छा संस्मरण है |बधाई
ReplyDeleteसुंदर संस्मरण ,अच्छी लगी
ReplyDeleteबहुत सुंदर संस्मरण..... बस हमारे यहाँ भी ऐसा ही कुछ हो सके तो कितना अच्छा रहेगा .....
ReplyDeleteआपकी सोच अच्छी तो है पर इसमें एक बात ज़रूर आएगी कि ऐसा न हो कि फिर सभी बहु-बेटे अपने माँ-बाप को इन्हीं सब क्लब के सहारे छोड़ दे..
ReplyDeleteवैसे भी भारत की संस्कृति ने कभी भी वृद्धाश्रम का समर्थन नहीं किया है.. पर पश्चिम की देखा-देखी हमने उसे अपनाया और उसका भला होता तो नज़र नहीं आता है..
मैं हर पश्चिमी बात का समर्थन तो नहीं करता पर अगर ऐसे क्लब्स हर साप्ताहांत में खुले तो शायद बुजुर्गों के लिए अच्छा रहेगा जो पूरा हफ्ता अपने बहुत-बेटे, नाती-पोतों के साथ गुजारें और २ दिन अपने हम-उम्र दोस्तों के साथ..
पर एक अलग सोच के लिए धन्यवाद
बहुत सुंदर प्रस्तुति...लाजवाब।
ReplyDelete*गद्य-सर्जना*:-“तुम्हारे वो गीत याद है मुझे”
hope abhi to apne aap ko hero jaisa lag raha hoga vo pal. :):):)
ReplyDeleteyahi to hai na bhulane wali khushi jo zindgi bhar apke chehre ko har haal me muskurahat de jayegi. bas ise apni smritiyon ka paani deti rahiyega.