जिस्म ने तय कर लिये कई फासले ,
उम्र भी है चढ़ चुकी कई सीढ़ियाँ ,
रूह उस लम्हे में लेकिन क़ैद है ,
जो न बीता था, न बीता है कभी !
जब हवाएं ठिठकती थीं द्वार पर ,
जब फुहारें भिगोती थीं आत्मा ,
जब सितारे चमकते थे नैन में ,
चाँद सूरज हाथ में थे जब सभी !
एक सूखा पात अटका है वहाँ ,
गुलमोहर के पेड़ की उस शाख पर ,
जो धधकता था सिंदूरी रंग में ,
अस्त होती सूर्य किरणों से कभी !
गीत अब भी गूँजता है अनसुना ,
भावना के पुष्प बिखरे हैं वहाँ ,
नेह की लौ जल रही है आज भी ,
जो बुझी थी, ना बुझेगी अब कभी !
थीं कभी तुमसे मिलीं सौगात में ,
मोह की उन श्रंखलाओं से बँधी ,
मैं खड़ी हूँ आज भी उस मोड़ पर ,
पलट कर तो देखते तुम भी कभी !
साधना वैद
जिस्म ने तय कर लिये कई फासले ,
ReplyDeleteउम्र भी है चढ़ चुकी कई सीढ़ियाँ ,
रूह उस लम्हे में लेकिन क़ैद है ,
जो न बीता था, न बीता है कभी !
khadi hun aaj bhi wahin , jo waqt n bita tha n bitega kabhi
"जब फुहारें भिगोती थीं आत्मा-----
ReplyDeleteचाँद सूरज साथ में थे जब सभी "
सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति
आशा
ापकी रचनायें हमेशा प्रभावित करती हैं। शुभकामनायें।
ReplyDeleteथीं कभी तुमसे मिलीं सौगात में ,
ReplyDeleteमोह की उन श्रंखलाओं से बँधी ,
मैं खड़ी हूँ आज भी उस मोड़ पर ,
पलट कर तो देखते तुम भी कभी !
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति और मन को छू जाने वाले भाव..बहुत सुन्दर
थीं कभी तुमसे मिलीं सौगात में ,
ReplyDeleteमोह की उन श्रंखलाओं से बँधी ,
मैं खड़ी हूँ आज भी उस मोड़ पर ,
पलट कर तो देखते तुम भी कभी !
पूरी की पूरी कविता ही सम्मोहित करनेवाली है...अति सुन्दर
अति सुंदर भावो से सजी आप की यह रचना, धन्यवाद
ReplyDeleteकविता में नायिका के समर्पण की पराकाष्ठा को प्रदर्शित करती अमूल्य पंक्तिया..
ReplyDeleteसाधन जी आप के पुरे सम्मान के साथ आप से नहीं अपने आप से ये प्रश्न है की क्या कहीं ये भावनाएं हमारे आगे बढ़ने के रह में एक अवरोध का कार्य नहीं करती???
समर्पण निःस्वार्थ होता है मगर मनुष्य अपनी प्रवृति से ही स्वार्थी होता है.. तो अक्सर ये प्रश्न स्वार्थी मन में आता है वो समर्पण किस काम का जिसकी अनुभूति करने मन उम्र बीत जाए...
अदभुत शब्द चयन और भावात्मक कविता के लिए बधाइयाँ...
आशुतोष .
माशा अल्लाह क्या खूब कविता कही है आपने.
ReplyDeleteपहली लाइन से जो रवाना होती है,अंतिम लाइन पर जाकर रुकती है.
बेमिसाल सम्मोहन .
सलाम.
थीं कभी तुमसे मिलीं सौगात में ,
ReplyDeleteमोह की उन श्रंखलाओं से बँधी ,
मैं खड़ी हूँ आज भी उस मोड़ पर ,
पलट कर तो देखते तुम भी कभी
bahut achcha likhi hain.
गीत अब भी गूँजता है अनसुना ,
ReplyDeleteभावना के पुष्प बिखरे हैं वहाँ ,
नेह की लौ जल रही है आज भी ,
जो बुझी थी, ना बुझेगी अब कभी !
बहुत भावमयी गीत ....
मन की वेदना को कहता हुआ ..
सुन्दर शब्द संयोजन !
थीं कभी तुमसे मिलीं सौगात में ,
ReplyDeleteमोह की उन श्रंखलाओं से बँधी ,
मैं खड़ी हूँ आज भी उस मोड़ पर ,
पलट कर तो देखते तुम भी कभी !
aapki rachna bemisaal hoti hai ,bahut badhiyaa likhti hai aap ,sundar .baar baar padhi ....
बेहतरीन !
ReplyDeleteनेह की लौ जल रही है आज भी ,
ReplyDeleteजो बुझी थी, ना बुझेगी अब कभी !
मोह की उन श्रंखलाओं से बँधी ,
मैं खड़ी हूँ आज भी उस मोड़ पर...
बहुत ही सुंदर, भावना से भरी , प्रभावित करती रचना ! शुभकामनाएँ !
जिस्म ने तय कर लिये कई फासले ,
ReplyDeleteउम्र भी है चढ़ चुकी कई सीढ़ियाँ ,
रूह उस लम्हे में लेकिन क़ैद है ,
जो न बीता था, न बीता है कभी !
बेहतरीन भाव, यादों के जाल में उलझी सुंदर कविता.
बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना...
ReplyDeleteनीरज
जिस्म ने तय कर लिये कई फासले ,
ReplyDeleteउम्र भी है चढ़ चुकी कई सीढ़ियाँ ,
रूह उस लम्हे में लेकिन क़ैद है ,
जो न बीता था, न बीता है कभी !
कुछ लम्हे रूह की दहलीज़ पर ही रुके रहते हैं कभी ना बीतने के लिये……………बेहतरीन भाव समन्वय्।
जिस्म ने तय कर लिये कई फासले ,
ReplyDeleteउम्र भी है चढ़ चुकी कई सीढ़ियाँ ,
रूह उस लम्हे में लेकिन क़ैद है ,
जो न बीता था, न बीता है कभी
बहुत खूबसूरत अहसास को पिरोया है आपने... सचमुच पलकों पर थमे पल... जीवन की पूंजी होते हैं
उम्र के फासले तय करता जिस्म मगर रूह वही अटकी रह जाती है ...इस उम्मीद में की कही पलटकर देख ले कोई ...
ReplyDeleteसदियों की प्रतीक्षा को सुन्दर शब्द मिले...
बेहतरीन भाव !
बहुत खूबसूरत भावों से आपने अपनी रचना को घड़ा है .... आभार
ReplyDeleteहम खड़े हैं आज भी उस मोड़ पर.. कि जहाँ उसने कहा था 'ठहरो अभी आते हैं हम..'
ReplyDeleteचर्चामंच से होते हुए आज आप तक पहुँचने का सौभाग्य हुआ.. मन गदगद हो उठा आपको पढ़कर.. निस्संदेह बहुत कुछ सीखने को मिला है आपको पढ़ने की बाद.. और आगे भी मिलता रहेगा.. यही आशा है..
ये बीते हुए लम्हों की कसक है
ReplyDeleteजिस्म ने तय कर लिये कई फासले ,
ReplyDeleteउम्र भी है चढ़ चुकी कई सीढ़ियाँ ,
रूह उस लम्हे में लेकिन क़ैद है ,
जो न बीता था, न बीता है कभी !
bahut khubsurat rachna dil ko chu gai
एक सूखा पात अटका है वहाँ ,
ReplyDeleteगुलमोहर के पेड़ की उस शाख पर ,
जो धधकता था सिंदूरी रंग में ,
अस्त होती सूर्य किरणों से कभी !
बहुत सुन्दर रचना ...एक एक शब्द मन में उतरता हुआ ...
मन बंधन रहित होता है | रस से सराबोर रचना|
ReplyDeleteनेह की लौ जल रही है आज भी ,
ReplyDeleteजो बुझी थी, ना बुझेगी अब कभी !
थीं कभी तुमसे मिलीं सौगात में ,
मोह की उन श्रंखलाओं से बँधी ,
मैं खड़ी हूँ आज भी उस मोड़ पर ,
man ke rishte aise hi hote hain...puri zindgi...ek lau me jalte hue.....mrigtrishna liye hue.
sunder abhivyakti.
"गीत अब भी गूँजता है अनसुना ,
ReplyDeleteभावना के पुष्प बिखरे हैं वहाँ ,
नेह की लौ जल रही है आज भी ,
जो बुझी थी, ना बुझेगी अब कभी"
"दिल में किसी के प्यार का जलता हुआ दिया..
दुनिया की आँधियों से भला ये बुझेगा क्या..!!"
एक स्नेह्पूरित मन के भाव.....
जो मिटाए नहीं मिटते...