Saturday, November 24, 2012

चौराहों के बच्चे



टेलकम पाउडर की तरह
रास्ते की धूल से
लिपटा बदन ,
और ढेर सारे तेल से पुते
चिपचिपाते
कस कर काढ़े गये बाल  ,
आँखों में कभी ना
थमने वाली लगन
और लोगों की झिड़कियाँ
सहने की आदी
खुरदुरी मोटी खाल ! 
ज्येष्ठ अषाढ़ की
चिलचिलाती धूप हो
या अगहन पूस की
ठिठुरन भरी सर्दी ,
मिलते हैं ये बच्चे
सुबह से रात तक
अपनी ड्यूटी पर तैनात
पहने हुए जिस्म पर
नाम मात्र के
कपड़ों की वर्दी !
हर लाल बत्ती वाले
चौराहे पर थामे हुए
अपने दुर्बल हाथों में
किताबें या पत्रिकायें ,
खिलौने या गजरे ,
छिला नारियल या अखबार ,
या और कई तरह के
उपयोग में आने वाले
वो सामान जिनकी सबको
होती है दरकार !
सामान के साथ-साथ
हथेलियों पर लिये
अपना आत्म सम्मान ,
दिखाई देते हैं भागते दौड़ते
उन कारों के पीछे
जिनमें बैठे होते हैं
भाँति-भाँति के
श्रीमती और श्रीमान !
पेट की भूख मिटाने को
और चार पैसे कमाने को    
मजबूरी में करते हैं यह काम ,
लेकिन चल कहाँ पाता है
उनका सोचा यह
छोटा सा भी इंतजाम !
अपना सामान बेचने को
सबके सामने
गिड़गिड़ाते हैं, चिरौरी करते हैं  
लेकिन चरौरी के बदले में
पाते हैं दाम कम और
उससे कहीं अधिक फटकार ,
ये तो वो नीलकंठ हैं
जो शायद अपने
घर परिवार वालों की
मुस्कराहट को बचाये
रखने के लिये
सहते हैं हर मौसम की मार
और भगवान शिव की तरह
ज़माने भर की
उपेक्षा और अपमान ,
अवहेलना और तिरस्कार
का गरल लेते हैं
अपने कंठ में उतार !

साधना वैद


Monday, November 19, 2012

ये रिश्ते

दूर क्षितिज तक
रेलगाड़ी की
समानांतर पटरियों जैसे
साथ-साथ चलते रिश्ते
मैंने भी खूब निभाये हैं,
जिन पर सवार होकर
जाने कितने मुसाफिर
अपने गंतव्य तक
पहुँच गये लेकिन
पटरियाँ ताउम्र उसी तरह
एक दूसरे को
छुए बिना लोगों को
मंजिल तक
पहुँचाने का ज़रिया
बनी रहीं !
रंग बिरंगे उलझे धागों
में से सिरे ढूँढने की
कोशिश की तरह  
मैंने तमाम उलझे
रिश्तों को भी
पूरे मनोयोग से
सुलझाने की
कोशिश में
अपना सारा जीवन
लगा दिया
वांछित फल
कभी मिला तो
कभी नहीं मिला
लेकिन ज़िंदगी ज़रूर
एक अनवरत कोशिश
बन कर रह गयी !
वर्षों से 
वक्त की गर्द से
धुँधलाये, सँवलाये,
बदरंग रिश्तों को
लगन और मेहनत
सद्भावना और प्यार
के लेप से
घिस माँज कर
मैंने चमकाने की
चेष्टा की है !
रिश्ते तो शायद ज़रूर
कुछ चमक गये हों
लेकिन इस कोशिश में
मेरा चेहरा कुम्हला कर
कब बेरंग हो गया
इसका तो कभी
होश ही नहीं रहा !
बस अब यही कामना है 
थकी हुई नज़र,
टूटा हौसला
और थमती साँसें
मन की झुर्रियों को
इतना न बढ़ा दें
कि उस पर 
किसी रिश्ते का नाम
चिपकने से ही
इनकार कर दे
और रिश्ते सँवारने का
मेरा हर प्रयास
विफल हो जाये !

साधना वैद

Monday, November 12, 2012

शुभागमन दीपावली

आप सभी को दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें !


साधना वैद

Wednesday, November 7, 2012

सच ही तो है

आँखों में बसे सपने
आँखों में ही पनपते हैं,
जवां होते हैं,
और आँखों में ही
साकार होते हैं,
हकीकत में तो ये
नींद खुलते ही
दम तोड़ देते हैं
सच ही तो है !
मन में छिपी बात
बाहर आने से पहले
कितनी शिद्दत से
कितनी उत्कण्ठा से
मन में करवटें
लेती रहती है
लेकिन जब कहने का
अवसर आता है
ना जाने किस भय से
होंठों की लकीरों में ही
कहीं गुम हो जाती है
और अनकही बातें
किसी अंजाम तक
नहीं पहुँच पातीं
सच ही तो है !
प्रीत के रंग में रंगे
कुछ बेहद मधुर गीत
जो सदा कंठ से
प्रस्फुटित होने को
आकुल व्याकुल रहे
अनगाये ही रह गये
और अनसुने गीतों
का प्रभाव भला
किसी के मन पर
कब, क्यों
और कैसे पड़ेगा
सच ही तो है ! 
हर तरफ से हार
मन की हर वेदना
हर व्यथा को
हर आस
हर उम्मीद को
खतों का सहारा ले
जब पहुँचाना चाहा
वो खत दुर्भाग्यवश
अनपढ़े ही रह गये
जो फ़रियाद  
सुनी ही ना गयी
उसका इन्साफ भला  
कोई कैसे करे 
सच ही तो है !
बस अब तो यही
तय होना बाकी है
फैसला करने का हक
किसे मिलना चाहिये
फरियादी को
या फिर उसे जिसने  
हर सपने को तोड़ा
हर आँसू को
अनदेखा किया
हर फ़रियाद को
अनसुना किया
और इसे नियति
का नाम दे अपने
मन के बोझ को
हल्का कर लिया !

साधना वैद