Sunday, September 29, 2013
Saturday, September 21, 2013
Wednesday, September 11, 2013
हर लम्हा हर पल ......
हालात की पेचीदगियों ने 
वक्त की पेशानी पर 
हर रोज़ जो नयी सिलवटें डालीं हैं 
उन ज़िद्दी सिलवटों को  
मिटाते-मिटाते 
पूरी एक उम्र मैंने
यूँ ही नहीं गुज़ार दी है 
हर लम्हा हर पल 
खुद को भी मिटाया है ! 
ज़िंदगी की स्लेट पर 
तुमने जो मुश्किल सवाल
मेरे हल करने को 
लिख दिये थे 
उन्हें हल करते-करते 
पूरी एक उम्र मैंने
यूँ ही नहीं गुज़ार दी है 
हर लम्हा हर पल 
खुद भी एक अनसुलझी पहेली 
बन कर रह गयी हूँ ! 
यह जानते हुए भी कि 
मुझे तैरना नहीं आता 
जिस आग के दरिया में 
मुझे धकेल कर सब 
घर को लौट गये थे 
उस आग के सैलाब में 
जलते झुलसते 
डूबते उतराते 
तैरना सीखने में 
पूरी एक उम्र मैंने 
यूँ ही नहीं गुज़ार दी है 
हर लम्हा हर पल 
उस आँच में तप कर 
कुंदन की तरह 
निखरना भी मैंने 
सीख लिया है ! 
साधना वैद 
चित्र गूगल से साभार 
Sunday, September 8, 2013
आने वाले कल की ये तस्वीर हैं
नेहरू जी बच्चों को बहुत प्यार करते थे ! इतना अधिक कि उनका जन्मदिन भी बाल दिवस के रूप में मनाया जाता था ! जन्मदिन मनाने की परम्परा आज भी उतनी ही पाबंदी से कायम है ! लेकिन उनकी विरासत सम्हालने वालों ने कितनी पाबंदी के साथ देश के बच्चों का ध्यान रखा है और उनके साथ न्याय किया है उसकी कुछ तस्वीरें आपको दिखाना चाहती हूँ ! नेहरू जी का स्वर्गवास हुए लगभग पचास साल होने को आये हैं लेकिन हमारे नेताओं के तमाम दावों के बाद भी देश की एक बहुत बड़ी आबादी के बच्चों की तकदीर में कोई बदलाव नहीं आया है ! 
ये बच्चे हमारे देश का भविष्य हैं ! हमारे आने वाले कल की ये तस्वीर हैं ! अद्यतन सर्वे के अनुसार भारत की कुल जनसंख्या का २२% हिस्सा भुखमरी के कगार पर है जिन्हें हम अपनी सुविधा के अनुसार गरीबी की रेखा से नीचे ( बी. पी. एल. ) के नाम से संबोधित करते हैं क्योंकि हमारी अंतरात्मा को शायद ‘भुखमरी’ शब्द के उच्चारण से शर्म आती है ! जनसंख्या का २५% वह हिस्सा है जो संपन्न है और जो उन सभी सुविधाओं का उपभोग कर पाता है जो दिश्व के अन्य विकसित देशों के लोगों के पास उपलब्ध हैं ! इसके अलावा भारत की जनता का बचा हुआ ५३% हिस्सा है तो गरीब ही ! चाहे हम उसे हम अपनी समझ के अनुसार कितनी ही श्रेणियों में बाँट लें !
असल में गरीबी और अमीरी तुलनात्मक ही होती है ! उदाहरण के लिये ऑफिस का चपरासी हमारी काम वाली बाई से अमीर है लेकिन अपने अधिकारी से गरीब है ! हमारी काम वाली बाई शायद पटरी पर सोने वाले परिवारों से अमीर है और जिसके पास सोने के लिये पटरी भी नहीं है उससे नीचे की भी कई श्रेणियाँ हैं ! 
नीचे दिए गये चित्र भारत की गरीबी के विभिन्न आयामों को दिखाते हैं जो वैसे तो मन को दुखी कर जाते हैं परन्तु हमको झकझोर कर जगाने में भी पर्याप्त रूप से सक्षम हैं ! आम चुनाव दूर नहीं हैं ! हमें क्या करना है यह अभी ही सोचना होगा ! 
साधना  वैद 
Wednesday, September 4, 2013
चल रही हूँ
बाँध आँचल में सभी साधें अधूरी 
मैं अकेली राह पर यूँ चल रही हूँ ! 
शुष्क वीराने में धर रंगीन चश्मा 
खुशनुमां फूलों से खुद को छल रही हूँ !
क्या करोगे उर पटल के ज़ख्म गिन कर
मैं इन्हीं से सज सँवर कर खिल रही हूँ ! 
मत रखो मरहम कि अब दुखते नहीं ये 
मैं इन्हें चूनर में अपनी सिल रही हूँ ! 
नेह का सौदा किया जब भास्कर से 
ज्वाल के सायों में निस दिन पल रही हूँ !
चिलचिलाती धूप लगती छाँह सी अब   
स्निग्ध शीतल चाँदनी में जल रही हूँ ! 
मत छुओ आँसू बहुत अनमोल हैं ये 
मैं इन्हें दामन में भर कर चल रही हूँ ! 
बाँध दी जो डोर तुमने दो सिरों से 
साध कर खुद को उसी पर चल रही हूँ !
धर दिया काँधे पे तुमने जो जुआ था 
हर कदम उसको उठाये चल रही हूँ !
देख तो लेते किसी दिन पास आकर 
किस तरह साँचों में पल-पल ढल रही हूँ ! 
बाँध आँचल में सभी साधें अधूरी 
मैं अकेली राह पर यूँ चल रही हूँ !
साधना वैद 

साधना वैद 
























