Friday, January 31, 2014

मौन का दर्पण


निस्पंद जलनिधि ,
मौन पर्वत ,
नीरव पवन ,
विवर्ण गगन ,
क्लांत, शिथिल
निस्तेज अस्ताचलगामी
भुवन भास्कर
सभी जैसे साँस रोके  
जोहते हैं राह
उस एक पल की 
जिस पल में
जड़ हो चुकी सृष्टि
किसी जादू से सहसा ही
प्राणवान हो जाये और
अन्यमनस्क रत्नाकर के
उमंगहीन ह्रदय में
आल्हाद की उत्ताल तरंगें
उठने लगें !
स्थिर जल के दर्पण में
अपना कुरूप प्रतिबिम्ब देख
विक्षुब्ध हुए पर्वत
सागर की लोल लहरों के  
तरंगित दर्पण में अपना
आंदोलित प्रतिबिम्ब देख
अपने सौंदर्य पर
अभिमान कर सकें !
पवन के हलके से   
झोंके से स्थिर खड़े
वृक्षों के अन्यमनस्क पल्लव
अपनी करतल ध्वनि से   
विस्तृत व्योम में विचरते
विहग वृन्दों को पुकार उन्हें
शुभकामना सन्देश दे सकें
और निस्तब्ध वातावरण में  
ऐसा मधुर संगीत गूँज उठे
जो छद्म नीरवता के  
इस दु:सह्य आवरण को
निमिष मात्र में
छिन्न-भिन्न कर दे !


 
साधना वैद 

Wednesday, January 29, 2014

शहीदों को नमन



धन्य हो गई
धरा जहाँ तुमने
रक्त बहाया !

याद रखेंगे
तुम्हारा बलिदान
हमारे प्राण !

नैनों में नीर
ह्रदय अभिमान
वीर जवान !

ऋणी रहेंगे
हिफाज़त के लिये
सदा तुम्हारे !

किया अर्पण
तन मन जीवन
देश के हित !

गर्वित किया
रक्त अभिषेक से
भारत माँ को !

सब भुलाया
रिश्ता निभाया सिर्फ  
शमशीर से !

हार न मानी
शत्रु को मैदान में  
धूल चटाई !

वीर जवान
करें भारतवासी
तुम्हें सलाम !

नहीं भूलेगा
तुम्हारी शहादत
कृतज्ञ राष्ट्र !

साधना वैद

 


Monday, January 27, 2014

फूल खिल सकें पत्थर पर भी


एकल ही निर्जन राहों पर चलते रहना है ,
तू संग है इस भ्रम से खुद को छलते रहना है !

बाहों में आकाश, नयन में सागर भर कर
दुग्ध धवल शीतल रातों में जलते रहना है !

बालारुण की किरणों की कच्ची कलमों से
उजली कविता के छंदों को रचते रहना है ! 

कितनी भी हो धुँध घना हो कितना कोहरा
लक्ष्य साध कर बाण हाथ ले चलते रहना है !

पात-पात पर संचित हिम से ओस कणों से
अंतर के ज़ख्मों पर मरहम रखते रहना है !

फूल खिल सकें इस दुनिया में पत्थर पर भी
हृदय वाष्प से हर पत्थर नम करते रहना है ! 


साधना वैद

Saturday, January 25, 2014

कुछ सवाल


गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें


 आम जन की
टूटी अभिलाषायें
जुड़ पायेंगी ?

लोकतंत्र को
सबल सरकार
   मिल पायेगी ? 


भोली प्रजा की
रोजी रोटी की चिंता
मिट पायेगी ?

शोषित नारी 
अधिकारों के लिये
लड़ पायेगी ?

अपने लिए
समाज में जगह
बना पायेगी ?

संस्कारहीन
  पथभ्रष्ट युवा के  
पाँव रुकेंगे ?

भ्रष्ट जनों के
    लोभपूर्ण कृत्यों से    
  मुक्ति मिलेगी ?

दीन को रोटी
  सिर पर छप्पर  
  मिल पायेगा ?

बच्चों को शिक्षा
बुजुर्गों को भरोसा
मिल पायेगा ?

सह पायेगी
कष्ट कुशासन का
भारतमाता ?

है पैंसठवाँ
गणतंत्र दिवस
   क्या बदलेगा ?

कितने प्रश्न
सभी अनसुलझे
 उत्तर दोगे ? 


तीव्र इच्छा एवं मंगलकामना है कि इस गणतंत्र दिवस
पर आम जन की चिंताओं और उद्विग्नता का शमन हो
और बुनियादी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये किये जाने
वाले उसके सतत संघर्ष को विराम मिले ! 

जय भारत !  

साधना वैद

चित्र - गूगल से साभार