Tuesday, July 31, 2018

सीला सावन


सीला सावन 
तृषित तन मन 
दूर सजन 

मुग्ध वसुधा 
उल्लसित गगन 
सौंधी पवन

गाते विहग 
सुरभित सुमन 
झूमें मगन 

व्याकुल बूँदें 
देती हैं आमंत्रण
आओ सजन 

पुकारें तुम्हें 
बिखर धरा पर 
नष्ट हो जायेंं

बुलायें तुम्हें 
वार दें तन मन 
खुद सो जायें

आया सावन 
सुन कर पुकार 
धरा मुस्काई 

गोटे के फूल 
चूनर में अपनी 
टाँँक ले आई 

हुआ अंधेरा
कड़कती बिजली 
डरपे हिया 

बरसी बूँदें 
गरजते बादल 
तड़पे जिया 

रीता जीवन 
रीता उर अंतर 
आ जाओ पिया

भर के सुख 
सूने मधुबन में 
ना जाओ पिया


साधना वैद 














Thursday, July 26, 2018

किस्मत



इस दुनिया में बात एक ही
मुझको सच्ची लगती है
अपनी सबसे बुरी ग़ैर की
किस्मत अच्छी लगती है !

'किस्मत' की किस्मत को अब तक
कोई बदल न पाया
अपने दुःख का कारण सबने
किस्मत को ही पाया !

देखो उसकी किस्मत कैसे
चमक उठे हैं तारे
फूटी मेरी किस्मत पीछे
पड़े हुए दुःख सारे !

मैं किस्मत का मारा मेरी
कौन करे सुनवाई
फिरता दर दर मारा मैंने
पग पग ठोकर खाई !

इसकी उसकी सबकी किस्मत
क्यों ऊपर चढ़ जाती
मेरी ही किस्मत की रेखा
क्यों अक्सर मिट जाती !

इंद्रजाल किस्मत का कैसा
क्या खेला है सारा
समझ न पाऊँ लीला तेरी
डूबा हुआ सितारा !

वो छू ले जो मिट्टी तो
वो भी सोना बन जाती
मैं ही हूँ किस्मत का हेठी
बात नहीं बन पाती !

लोगों की सुन ऐसी बातें
'किस्मत' सिर धुनती है
अपनी ही किस्मत पर खुल कर
खूब हँसा करती है  !

मत भूलो नादान कि
किस्मत भी तब ही चमकेगी 
मन में हो संकल्प और पुरुषार्थ 
तभी दमकेगी ! 





साधना वैद 

Thursday, July 19, 2018

सूना री हिंडोला




सूना री हिंडोला अम्बुआ की डार पे जी
ए जी कोई मैया ना, अम्बे कोई बाबुल ना
देने को पुकार !
छुट गया बहना
देखो मेरा मायका जी !

भैया मेरे प्यारे धाये स्वर्ग को जी
कोई ना रहा अब मेरे संग को जी
मैया जैसी भाभी मेरी, बहना जैसी भाभी मेरी
गयी हैं सिधार !
छुट गया बहना
देखो मेरा मायका जी !

पिंजरे की मैना तुम ही पुकार लो जी  
बगिया के पंछी सखी को गुहार लो जी
मन को मनाऊँ कैसे, तुम तक आऊँ कैसे
हूँ मैं बेकरार !
छुट गया बहना
देखो मेरा मायका जी !

अम्बुआ के सुगना तुम ही पुकार लो जी
द्वारे की गैया बेटी को दुलार लो जी  
देखो मेरी बह रही, अम्बे झर-झर बह रही
अँसुअन धार !
छुट गया बहना
देखो मेरा मायका जी ! 


साधना वैद  

Thursday, July 12, 2018

भर ले अपनी झोली



जीवन यदि सुरभित एवँ
निष्कंटक बनाना है तो
अंतर के सारे शूलों को
चुन कर मन उपवन के
कोने-कोने की
सफाई करनी होगी !  
हृदय के सारे गरल को
एक पात्र में एकत्रित कर  
नीलकंठ बन अपने ही
गले के नीचे
उतारना होगा !
अंतर में दहकते
ज्वालामुखी के सारे लावे को
सप्रयास बाहर निकाल
शीतल जल की फुहार से
उसके भीषण ताप को
ठंडा करना होगा !
हाथ भले ही जल जायें
हृदय में सुलगते अंगारों पर
राख डाल इस धधकती
अग्नि का भी शमन
करना ही होगा !
मन की नौका को
तट पर लाना है तो
सागर की उत्ताल तरंगों से
कैसा घबराना !
डूब जायें या तर जायें
पतवार उठा कर
नाव को तो खेना ही होगा !
मुझे पता है तूने
कभी हार नहीं मानी है
आज भी अपने कदमों को
डगमगाने मत देना !
जितना तेरा संकल्प दृढ़ होगा
उतना ही तेरा आत्मबल बढ़ेगा
और उतना ही यह संसार
प्रीतिकर हो जायेगा !
एक अलौकिक
दिव्य संगीत की धुन
तुझे सुनाई देने लगेगी जिसे सुन
तू मंत्रमुग्ध हो जायेगा !
फिर तेरे मन में यह
असमंजस और संदेह कैसा !
चल उठ देर न कर !
नव निर्माण के पथ पर
अपने कदम बढ़ा
और संसार के सारे सुख
अपनी झोली में भर ले !


साधना वैद    

  

संकल्प



अब से 
आँखों के आगे पसरे 
मंज़रों को झुठलाना होगा,
कानों को चीरती 
अप्रिय आवाजों को भुलाना होगा,
मन पर पड़ी अवसाद की 
शिलाओं को सरकाना होगा,
दुखों के तराने ज़माने को नहीं भाते 
कंठ में जोश का स्वर भर 
कोई मनभावन ओजस्वी गीत 
आज तम्हें सुनाना होगा ! 
ऐ सूरज 
आज मुझे अपने तन से काट 
थोड़ी सी ज्वाला दे दो 
मुझे अपने हृदय में विद्रोह
की आग दहकानी है,
मुझे बादलों की गर्जन से,
सैलाब के उद्दाम प्रवाह से,
गुलाब के काँटों की चुभन से 
और सागर की उत्ताल तरंगों की 
भयाक्रांत कर देने वाली 
वहशत से बहुत सारी 
प्रेरणा लेनी है ! 
अब मुझे श्रृंगार रस के 
कोमल स्वरों में 
संयोग वियोग की 
कवितायें नहीं कहनी
वरन् सम्पूर्ण बृह्मांड में 
गूँजने वाले 
वीर रस के ओजस्वी स्वरों में 
जन जागरण की 
अलख जगानी है !
और सबसे पहले 
स्वयं को नींद से जगाना है ! 

साधना वैद

Sunday, July 1, 2018

ओ मनमीत


ओ मनमीत
तुम कैसे गा लेते हो
खुशियों के गीत
जब कि मैं जानती हूँ
मन में तुम्हारे अनगिनती
ज़ख्म भरे पड़े हैं
उन दिनों की यादों के
जो कब के गये हैं बीत !
कैसे अपने जख्मों पर
तुम मुस्कुरा लेते हो,
कैसे अपनी पीड़ा को
फूँक मार कर उड़ा लेते हो,
कैसे अपने दुःख को मन में ही दबा
औरों की मुश्किल में उनकी
बैसाखी बन जाते हो ?
सिखाओ ना मुझे भी
अपना फलसफा ज़िंदगी का !
क्योंकि मुझे भी जीना है
बिलकुल तुम्हारी ही तरह,
मुझे भी बनना है बैसाखी
औरों के मुश्किल पलों में
बिलकुल तुम्हारी ही तरह, 
मुझे भी सुकराथ करना है
अपना निरुद्देश्य जीवन
औरों का दुःख बाँट कर
बिलकुल तुम्हारी ही तरह,
मुझे भी बनना है संबल औरों का
उनकी तकलीफें कम करके
बिलकुल तुम्हारी ही तरह !
ओ मनमीत   
बोलो बनोगे ना तुम मेरे गुरू ?
बना लोगे ना तुम मुझे
अपना हमशक्ल 
अपना प्रतिरूप
कि कभी भी किसीको
 तुम्हारी कमी ना अखरे !



साधना वैद