Friday, May 10, 2019

ज़िंदगी चलती रही


हर जगह, हर मोड़, पर इंसान ठहरा ही रहा,
वक्त की रफ़्तार के संग ज़िंदगी चलती रही ! 

खुशनुमां वो गुलमोहर की धूप छाँही जालियाँ
चाँदनी, चम्पा, चमेली की थिरकती डालियाँ
पात झरते ही रहे हर बार सुख की शाख से
मौसमों की बाँह थामे ज़िंदगी चलती रही !

वन्दना की भैरवी थक मौन होकर रुक गयी ,
अर्चना के दीप की बाती दहक कर चुक गयी ,
पाँखुरी गिरती रहीं मनमोहना के हार की
डोर टूटी हाथ में ले ज़िंदगी चलती रही ! 

खोखले स्वर रह गये और माधुरी चुप हो गयी ,
ज़िंदगी के गीत की पहचान जैसे खो गयी ,
वेदना के भार से अंतर कसकता ही रहा
और टूटी तान सी यह ज़िंदगी चलती रही ! 

चाँद सूरज भाल पर मेरे अँधेरे लिख गये ,
स्वप्न सुंदर नींद में ही तोड़ते दम दिख गये ,
 देवता अभिशाप देके फेर कर मुँह सो गये
दर्द की सौगात देकर ज़िंदगी चलती रही ! 

आत्मा निर्बंध को बंधन नियम का मिल गया ,
पंख टूटी हंसिनी को गगन विस्तृत मिल गया ,
हर कदम पर रूह घायल हो तड़प कर रह गयी
और निस्पृह भाव से बस ज़िंदगी चलती रही !


साधना वैद

23 comments:

  1. आज के बुलेटिन में मेरी रचना को सम्मिलित करने के लिए आपका हृदय से धन्यवाद एवं आभार शिवम् जी !

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  2. आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार कुलदीप जी ! सस्नेह वन्दे !

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  3. जी नमस्ते,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (12-05-2019) को

    "मातृ दिवस"(चर्चा अंक- 3333)
    पर भी होगी।

    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    ....
    अनीता सैनी

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  4. आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार अनीता जी ! सप्रेम वन्दे !

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  5. अति उत्तम ,अति सुंदर रचना ,नमन

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  6. बहुत ही लाजवाब सृजन.....हमेशा की तरह।

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  7. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
    १३ मई २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  8. हार्दिक धन्यवाद केडिया जी! आभार आपका !

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  9. हृदय से धन्यवाद आपका ज्योति जी ! स्वागत है !

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  10. आपकी अनमोल प्रतिक्रिया के लिए हृदय से धन्यवाद सुधा जी ! आभार आपका !

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  11. आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार श्वेताजी ! सप्रेम वन्दे !

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  12. बेहतरीन रचना साधना जी

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  13. हार्दिक धन्यवाद अनुराधा जी ! आभार आपका !

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  14. आत्मा निर्बंध को बंधन नियम का मिल गया
    पंख टूटी हंसिनी को गगन विस्तृत मिल गया
    बहुत खूब साधना जी ,सादर नमस्कार

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  15. हार्दिक धन्यवाद कामिनी जी !आभार आपका !

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  16. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
    ९ सितंबर २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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    1. हार्दिक धन्यवाद श्वेता जी ! इस रचना के चयन के लिये आपका तहे दिल से आभार !

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  17. जी बहुत सुंदर सरस रचना।

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    1. हृदय से आभार आपका सुजाता जी ! स्वागत है आपका !

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  18. वाह!!!!
    बहुत ही लाजवाब सृजन हमेशा की तरह....
    आत्मा निर्बंध को बंधन नियम का मिल गया ,
    पंख टूटी हंसिनी को गगन विस्तृत मिल गया ,
    हर कदम पर रूह घायल हो तड़प कर रह गयी
    और निस्पृह भाव से बस ज़िंदगी चलती रही
    अद्भुत ...लाजवाब....

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  19. आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार अनीता जी ! सप्रेम वन्दे !

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  20. सुंदर सृजन साधना दी ,सादर नमन
    ,

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    1. हार्दिक धन्यवाद कामिनी जी ! बहुत बहुत आभार आपका !

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