आओ तुमको मैं दिखाऊँ
मुट्ठियों में बंद कुछ
लम्हे सुनहरे ,
और पढ़ लो
वक्त के जर्जर सफों पर
धुंध में लिपटे हुए
किस्से अधूरे !
आओ तुमको मैं सुनाऊँ
दर्द में डूबे हुए नगमात
कुछ भूले हुए से,
और कुछ बेनाम रिश्ते
वर्जना की वेदियों पर
सर पटक कर आप ही
निष्प्राण हो
टूटे हुए से !
और मैं प्रेतात्मा सी
भटकती हूँ उम्र के
वीरान से
इस खण्डहर में
कौन जाने कौन सी
उलझन में खोई,
देखती रहती हूँ
उसकी राह
जिसकी नज़र में
पाई नहीं
पहचान कोई !
देख लो एक बार जो
यह भग्न मंदिर
और इसमें प्रतिष्ठित
यह भग्न प्रतिमा
मुक्ति का वरदान पाकर
छूट जाउँगी
सकल इन बंधनों से,
राम तुम बन जाओगे
छूकर मुझे
और मुक्त हो जायेगी
एक शापित अहिल्या
छू लिया तुमने
उसे जो प्यार से
निज मृदुल कर से !
चित्र - गूगल से साभार
साधना वैद
बहुत ही सुन्दर रचना दी 👌👌
ReplyDeleteप्रणाम
सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति
ReplyDeleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 20.6.19 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3372 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
हार्दिक धन्यवाद ऋतु जी ! आभार आपका !
ReplyDeleteआपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार दिलबाग जी ! सादर वन्दे !
ReplyDeleteसादर नमन दीदी.
ReplyDeleteआपकी यह रचना आज पाँच लिंकों का आनन्द की प्रस्तुति में सुसज्जित है तकनीकी कारणों से सूचना में बिलम्ब के लिये खेद है.
यह अत्यंत ही विशिष्ट रचना, मेरे मन को छू गई ...
ReplyDeleteमुक्ति का वरदान पाकर
छूट जाउँगी
सकल इन बंधनों से,
राम तुम बन जाओगे
छूकर मुझे
और मुक्त हो जायेगी
एक शापित अहिल्या ....
अतुलनीय लेखन हेतु साधुवाद व शुभकामनाएं ।
मन को गहरे तक छू गई ये रचना ... बहुत सुंदर
ReplyDeleteबेहद सुंदर मर्मस्पर्शी सृजन...गहन भाव लिये।👌
ReplyDeleteवाह!!साधना जी ,बेहतरीन रचना!
ReplyDeleteसुंदर रचना।
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर दी ,सादर नमस्कार
ReplyDeleteआपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार रवीन्द्र जी ! सस्नेह वन्दे !
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद पुरुषोत्तम जी ! हृदय से आभार आपका !
ReplyDeleteहृदय से धन्यवाद आपका नासवा जी ! दिल से आभार !
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद श्वेता जी ! आभार आपका !
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद शुभा जी ! आभार आपका !
ReplyDeleteहृदय से धन्यवाद पम्मी जी ! आभार आपका !
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर भावपूर्ण कविता।
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
iwillrocknow.com
हार्दिक धन्यवाद तिवारी जी ! आभार आपका !
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