(१)
क्रोधित त्वरा
विचलित गगन
विचलित गगन
शांत वसुधा
(२)
तरल नीर
फौलाद सी चट्टानें
श्रृंगार मेरा
(३)
(३)
तेरी बिजली
मेरा सुन्दर रूप
चमका जाती
(४)
खिल जाते हैं
प्रकाश प्रसून भी
मेरे तन पे
(५)
(५)
भय न जानूँ
वसुधा मेरा नाम
धैर्य महान
(६)
(६)
दिखा दे सारे
हथियार अपने
धरा हूँ मैं भी
(७)
क्रूर घटायें
हथकड़ी बिजली
बंदिनी धरा
(८)
(८)
डरा न पाईं
बिजली की बेड़ियाँ
धरा मुस्काई
(९)
(९)
और चमको
ढूँढना है मुझको
खोया ठिकाना
(१०)
जलाता टॉर्च
गगन का प्रहरी
ढूँढ लो राह
(११)
जाल बिछाये
मछुआरा नभ में
तारों के लिये
(१२)
छिपा है चाँद
घनेरी घटाओं में
खोजे दामिनी
(१3)
(१3)
निर्मम घटा
बिजली की चाबुक
सहमी धरा
(१४)
(१४)
डराती घटा
घनघोर गर्जन
हँसती धरा
(१5)
दे चेतावनी
गरजी तो बरस
साहसी धरा
(१६)
दे आश्वासन
एक बूँद सौ दाने
उर्वरा धरा
साधना वैद
बहुत सुंदर हायकू... साहसी धरा
ReplyDeleteबहुत खूब ,सादर दी
ReplyDeleteबहुत सुंदर हायकू... साहसी धरा
ReplyDeleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (29 -06-2019) को "जग के झंझावातों में" (चर्चा अंक- 3381) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार संध्या जी ! स्वागत है आपका !
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद कामिनी जी ! बहुत बहुत आभार !
ReplyDeleteआपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार अनीता जी ! सप्रेम वन्दे !
ReplyDeleteसुन्दर हाइकु
ReplyDeleteजलाता टॉर्च गगन प्रहरी...वाह क्या सुन्दर बिम्ब . आप तो हाइकू प्रवीणा हैं दीदी .
ReplyDeleteहाईकु की इस विधा से मैं अत्यंत प्रभावित हूँ और आपके इस प्रस्तुति ने मेरी रुचि और भी बढ़ा दी है। आपकी लेखनी को नमन है।
ReplyDeleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
१जुलाई २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
हार्दिक धन्यवाद ऋतु जी ! आभार आपका !
ReplyDeleteहृदय से आपका बहुत बहुत आभार गिरिजा जी !
ReplyDeleteउत्साहवर्धन के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद पुरुषोत्तम जी ! आभार आपका !
ReplyDeleteआपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार श्वेता जी ! सप्रेम वन्दे !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर साधना जी !
ReplyDeleteसुधिनामा की पंक्तियाँ,
हरती मन की पीर.
देखन में छोटी लगें,
भाव भरे गंभीर !
वाह!!साधना जी ,बहुत सुंदर हायकू ।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद गोपेश जी ! हृदय से आपका बहुत बहुत आभार !
ReplyDeleteशुभा जी आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार !
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