कब तक तुम उसे
इसी तरह छलते रहोगे !
कभी प्यार जता के,
कभी अधिकार जता के,
कभी कातर होकर याचना करके,
तो कभी बाहुबल से अपना
शौर्य और पराक्रम दिखा के,
कभी छल बल कौशल से
उसके भोलेपन का फ़ायदा उठाके,
तो कभी सामाजिक मर्यादाओं की
दुहाई देकर उसकी कोमलतम
भावनाओं का सौदा करके !
सनातन काल से तुम
यही तो करते आ रहे हो !
कभी राम बन कर
एक तुच्छ मूढ़ व्यक्ति की
क्षुद्र सोच को संतुष्ट करने के लिये
तुमने घिनौने लांछन लगा
पतिव्रता सीता का
अकारण परित्याग किया
और उसकी अग्निपरीक्षा लेकर
उसके स्त्रीत्व का अपमान किया !
तुम्हारी हृदयहीनता के कारण
सीता क्षुब्ध हो धरती में समा गयी
लेकिन तुम फिर भी
‘मर्यादा पुरुषोत्तम’ ही बने रहे !
भरी सभा में धन संपत्ति की तरह
अपनी पत्नी द्रौपदी को
चौसर की बाजी में हार कर
और दुशासन के हाथों उसका
चीरहरण का लज्जाजनक दृश्य देख
तुम्हें अपने पौरुष पर
बड़ा अभिमान हुआ होगा ना !
पाँँच-पाँच पति मिल कर भी
एक पत्नी के सतीत्व की
रक्षा नहीं कर सके !
क्यों युधिष्ठिर
बड़ा गर्व हुआ होगा न तुम्हें ?
पत्नी की लाज हरी गयी
तो क्या हुआ
तुम तो आज भी
‘धर्मराज’ कहलाते हो !
क्या यही ‘धर्म’ था तुम्हारा ?
और तुम सिद्धार्थ
किस सत्य की खोज में तुम
और तुम सिद्धार्थ
अपने सारे दायित्व
औरों के सर मढ़ कर
वैराग्य लेने का सोच सके ?
क्या वृद्ध माता पिता
स्त्री पुत्र किसी के प्रति
तुम्हारा कोई कर्तव्य न था ?
तुमने तो जाने से पूर्व
यशोधरा को जगाना भी
आवश्यक न समझा !
कौन सा ज्ञान प्राप्त हो गया तुम्हें ?
सृष्टि का कौन सा नियम बदल गया ?
क्या संसार में आज लोग
वृद्ध नहीं होते ?
क्या संसार में आज लोग
रुग्ण नहीं होते ?
या तुम्हारी तपस्या के फलस्वरूप
संसार में सब अजर अमर हो गये ?
अब किसीकी मृत्यु नहीं होती ?
संसार में सभी कुछ उसी तरह से
आज भी चल रहा है
लेकिन तुम अवश्य अपनी सारी
अकर्मण्यताओं के बाद भी
‘भगवान’ बने बैठे हो !
आखिर कब तक तुम
नारी के कंधे पर बन्दूक रख कर
अपने निशाने लगाते रहोगे ?
अब तो बस करो !
कब तलक ‘देवी’ बनाओगे उसे
मानवी भी ना समझ पाये जिसे !
साधना वैद
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" मंगलवार, जुलाई 02, 2019 को साझा की गई है पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (02-07-2019) को "संस्कृत में शपथ लेने वालों की संख्या बढ़ी है " (चर्चा अंक- 3384) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार शास्त्री जी ! सादर वन्दे !
ReplyDeleteबहुत से ऐसे गहरे प्रश्न जिनके उत्तर अभी तक समाज ने नहीं दिए हैं ... बहुत ही गहरी रचना है .।.
ReplyDeleteआपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार नासवा जी ! ऐसे सवाल सदैव मन को कचोटते हैं !
ReplyDeleteMain kabhi ye na samajh saki ki patni, mata pita ke prati uttardayitva na nibhaane vale, kya paa lete hain. sateek rahna. shubh kamnaayein.
ReplyDeleteनमस्कार How do we know जी ! आपकी प्रतिक्रिया के लिए हृदय से आभार ! कितना अच्छा होता मुझे आपका परिचय भी मिल जाता ! यह गोपनीयता क्यों और किसके लिए ? और कुछ नहीं बस यदि एक दूसरे के नाम से भी परिचित हों तो परस्पर संवाद में सहजता बनी रहती है !
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteसच दी ,ऐसे बहुत से सवाल अंतर्मन में उठाते हैं ,क्युँ नारी को त्याग और प्रेम की मूरत का नाम देकर उसे ही छलते रहे। लेकिन अब वो दिन गए दी। अब नारी अपने आत्मसम्मान के रक्षा के लिए आवाज़ उठा रही हैं। हमे देवी नहीं बनना हमे सिर्फ इंसान होने का सम्मान ही चाहिए। आपकी रचना मन को फिर से झकझोर गई ,बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति ,सादर
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