Thursday, December 31, 2020

नया साल

 



नव वर्ष की सभी बंधु बांधवों को हार्दिक बधाई एवं अनंत अशेष शुभकामनाएं 


नया साल


जश्न तो मनाना है 

नये साल को बुलाना है

जो दुःख दिये बीते साल ने

सिरे से उन्हें भुलाना है !

आने वाला साल

सुखकारी हो सबके लिये

हितकारी हो सबके लिये

फलदायी हो सबके लिये

मंगलकारी हो सबके लिये !

सब हों सफल

सब हों उल्लसित,

सब हों स्वस्थ  

सब हों प्रफुल्लित

मन में हो विश्वास  

आँखों में सपने,

छूटे ना किसीका साथ

साथ में हों अपने !

साकार करें प्रभु

हर मन की आस,

टूटे न किसीका सपना

बिखरे न विश्वास !

सबकी इच्छापूर्ति के लिए

प्रभु को मनाना है !

द्वार पर खड़ा है

२०२१ का नया साल

अभ्यर्थना कर उसकी

उसे अन्दर हमें लाना है!

मेहमान के स्वागत में

आज सब दुःख भूल कर

जश्न तो मनाना है !

 

साधना वैद

 

 


Wednesday, December 23, 2020

बुरे काम का बुरा नतीजा - बाल कथा

 


आओ बच्चों आज मैं आपको एक कहानी सुना रही हूँ जो बहुत पुराने ज़माने की है ! किसी देश में एक छोटा सा गाँव था ! उस गाँव की आबादी बहुत कम थी और जितने भी लोग वहाँ रहते थे सब बहुत प्यार से हिल मिल के रहते थे ! बच्चों उस गाँव में सब हाथ से काम करने वाले बहुत ही हुनरमंद कारीगर रहा करते थे ! पता है उन्हें हाथ से काम क्यों करना पड़ता था ? वो इसलिए कि उन दिनों मशीनों का अविष्कार नहीं हुआ था ! कल कारखाने नहीं थे ! तो उस गाँव के सारे लोग बहुत मेहनत करके सभी काम अपने हाथों से किया करते थे और सब अपने काम में बड़े माहिर भी थे ! उसी गाँव में एक दर्जी भी रहता था ! एक से बढ़ कर एक पोशाक वो बनाता ! इतनी सुन्दर कि सब देखते ही रह जाएँ और वो भी अपने हाथों से क्योंकि उसके पास भी तो कोई मशीन थी ही नहीं !

बच्चों वो दर्जी बहुत ही दयालू भी था ! एक हाथी से उस की बड़ी पक्की दोस्ती थी ! गाँव के पास ही एक नदी बहती थी ! वह हाथी रोज़ उस नदी में नहाने के लिए जाता था ! रास्ते में उसके दोस्त दर्जी की दूकान पड़ा करती थी ! जैसे ही हाथी उसकी दूकान के सामने आता अपनी सूँड उठा कर दर्जी को सलाम करता और दर्जी रोज़ उसकी सूँड को हाथों से सहला कर उसे केले खाने के लिए देता ! हाथी नदी से नहा कर लौटता तो फिर से दर्जी को सलाम करने के लिए उसकी दूकान के सामने थोड़ी देर के लिए रुकता और फिर अपनी राह चला जाता ! आसपास के दुकानदार भी दर्जी और हाथी की इस प्यार भरी दोस्ती के बारे में जानते थे ! उनके लिए यह रोज़ की दिनचर्या का हिस्सा था !

एक बार क्या हुआ बच्चों कि उस देश के राजा ने दर्जी को बुलवा भेजा ! उसके बेटे यानी कि राजकुमार की शादी थी और राजा को उसके लिए बहुत सुन्दर सुन्दर कपड़े सिलवाने थे ! दर्जी का एक बेटा भी था सुजान नौ दस साल का ! बहुत ही शैतान और खुराफाती ! दर्जी उसे काम सिखाने की बहुत कोशिश करता लेकिन उसका काम में ज़रा भी मन नहीं लगता ! हर समय शैतानियाँ करने में ही उसे मज़ा आता था ! राजा के बुलावे पर जब दर्जी महल जाने लगा तो अपने बेटे सुजान को दूकान पर बैठा गया कि जब तक वह लौट कर न आये दूकान का ख़याल रखे और तुरपाई करने के लिए एक कपड़ा भी दर्जी ने उसे इस हिदायत के साथ दे दिया कि लौट कर आने तक वह इसकी तुरपाई ख़तम करके रखे !


रोज़ के वक्त पर हाथी दूकान के सामने आया ! दर्जी तो नहीं था हाथी ने अपनी सूँड उठा कर सुजान को सलाम किया ! सुजान तो वैसे ही चिढ़ा हुआ बैठा था ! उसे तुरपाई का काम जो करना पड़ रहा था ! उसने हाथी को केले तो दिये नहीं उलटे गुस्से में भर कर उसकी सूँड में ज़ोर से सुई चुभो दी ! हाथी दर्द से चिंघाड़ उठा ! उसने गुस्से से भर कर सुजान को देखा और नदी की तरफ नहाने के लिए चला गया ! आस पास के दुकानदार हाथी के व्यवहार से हैरान थे ! सुजान के चहरे पर बड़ी कुटिल मुस्कान थी ! इतने बड़े हाथी को उसने पछाड़ दिया ! जब आस पास के दुकानदारों ने सुजान से पूछा हाथी इस तरह चिल्लाया क्यों ? तब खुराफाती सुजान ने बड़ी शान के साथ अपनी ‘बहादुरी’ की बात उन्हें बता दी ! सारे दुकानदार सुजान से बहुत गुस्सा हुए, उसे बुरा भला भी कहा और समझाया भी लेकिन वह हाथी को परेशान करके बड़ा खुश था ! तभी हाथी नदी से नहा कर वापिस आया और रोज़ की तरह ही दूकान के सामने रुका ! आस पास के लोग बड़े ध्यान से हाथी को देख रहे थे ! हाथी ने अपनी सूँड ऊपर उठाई ! सब चकित थे कि सुजान के दुर्व्यवहार के बाद भी यह सुजान को सलाम क्यों कर रहा है लेकिन हाथी नदी से अपनी सूँड में खूब सारा कीचड़ भर कर लाया था और उसने वह सारा कीचड़ सुजान पर और दूकान में रखे कपड़ों पर फव्वारे की तरह फूँक दिया और अपनी राह चला गया ! सारी दूकान, सुजान और ग्राहकों के कपड़े कीचड़ से तर ब तर हो गए ! डर के मारे सुजान थर-थर काँप रहा था कि जब बापू राजा साहेब के यहाँ से लौट कर आयेंगे तो क्या होगा !


तो बच्चों यह थी कहानी बुरे काम का बुरा नतीजा ! दर्जी रोज़ हाथी को प्यार करता था उसे केले देता था तो हाथी भी उसका आदर करता था उसे सलाम करता था लेकिन सुजान ने उसकी सूँड में सुई चुभो कर गलत काम किया था ना ? इसीलिये हाथी ने उसे सज़ा दी !

 



साधना वैद 


Saturday, December 19, 2020

रहस्य

 



कभी-कभी

बहुत दूर से आती

संगीत की धीमी सी आवाज़

जाने कैसे एक

स्पष्ट, सुरीली, सम्मोहित करती सी

बांसुरी की मनमोहक, मधुर, मदिर

धुन में बदल जाती है !

कभी-कभी

आँखों के सामने

अनायास धुंध में से उभर कर

आकार लेता हुआ

एक नन्हा सा अस्पष्ट बिंदु

जाने कैसे अपने चारों ओर

अबूझे रहस्य का

अभेद्य आवरण लपेटे

एक अत्यंत सुन्दर, नयनाभिराम,

चित्ताकर्षक चित्र के रूप में

परिवर्तित हो जाता है !

कभी-कभी

साँझ के झीने तिमिर में

हवा के हल्के से झोंके से काँपती

दीप की थरथराती, लुप्तप्राय सुकुमार सी लौ

किन्हीं अदृश्य हथेलियों की ओट पा

सहसा ही अकम्पित, प्रखर, मुखर हो

जाने कैसे एक दिव्य, उज्जवल

आलोक को विस्तीर्ण

करने लगती है !

हा देव !

यह कैसी पहेली है !

यह कैसा रहस्य है !

मन में जिज्ञासा होती है ,

एक उथल-पुथल सी मची है ,

घने अन्धकार से अलौकिक

प्रकाश की ओर धकेलता

यह प्रत्यावर्तन कहीं

किसी दैविक

संयोग का संकेत तो नहीं ?



साधना वैद

Friday, December 11, 2020

जग की रीत -- कुछ दुमदार दोहे

 


एक दुम वाले दोहे 


बहती जलधारा कभी, चढ़ती नहीं पहाड़ 

एक चना अदना कहीं, नहीं फोड़ता भाड़ !

व्यर्थ मत पड़ चक्कर में ! 


चूर हुआ शीशा कभी, जुड़ता नहीं जनाब 

मोती गिरता आँख से, खोकर अपनी आब !

कौन इसको चमकाए !  


'राज' करेंगे जो दिया, 'राजनीति' का नाम 

'दासनीति' कहिये इसे, और करायें काम ! 

नाम की महिमा भारी ! 


वाणी में विद्रूप हो, शब्दों में उपहास 

घायल कर दे बात जो, यह कैसा परिहास !

कभी मत करो ठिठोली !


तुकांत दुम वाले दोहे 


उगते सूरज को सभी, झुक-झुक करें सलाम 

जीवन संध्या में हुआ, यश का भी अवसान ! 

सुनो क्या खूब कही है, 

जगत की रीत यही है ! 


अंधा बाँटे रेवड़ी, फिर-फिर खुद को देय

जनता को भूखा रखें, 'नेता' का यह ध्येय !

मतलबी बड़े ‘सयाने’  

घाघ ये बड़े पुराने !


नेता सारे एक से, किसकी खोलें पोल 

अपनी ढकने के लिये, बजा रहे हैं ढोल ! 

चले जग को समझाने,

कोई न इनकी माने !


बाप न मारी मेंढकी, बेटा तीरंदाज़ 

नेताजी के पूत का, नया-नया अंदाज़ ! 

कौन इसको समझाये, 

कहे सो मुँह की खाये ! 


भर जाते हैं ज़ख्म वो, देती जो तलवार 

रहते आजीवन हरे, व्यंगबाण के वार ! 

ज़हर मत मन में घोलो 

कभी तो मीठा बोलो !  


जीवन जीने के लिये, ले लें यह संकल्प 

सच्ची मिहनत का यहाँ, कोई नहीं विकल्प ! 

उठा सूरज काँधे पर, 

चाँद तारे ला भू पर ! 


साधना वैद 


Sunday, December 6, 2020

उबटन


चल री गुलाबो
सुबह सुबह अपने मुख पर
हम भी धूल का उबटन लगा लेते हैं
वो कोठी वाली मेम साब की तरह
हम भी अपना चेहरा
अच्छी तरह से चमका लेते हैं !
वो तो मिलाती हैं
अपने उबटन में
दूध, दही, हल्दी, चन्दन, केसर,
मंहगे वाला तेल, नीबू का रस
और भी जाने क्या क्या ;
हमारे पास भी तो हैं
अपने उबटन में मिलाने के वास्ते
धूल, मिट्टी, रेतिया
पसीना, आँसू, घड़े का पानी
हम भी कुछ कम अमीर हैं क्या ?
देख गुलाबो
मुँह धोने के बाद घर में
बिलकुल अकेली बैठी
चाय पीती मेम साब का चेहरा
कितना थका थका सा
लगता है ना उदासी से !
और शाम को घर लौट कर
धूल पसीने का अपना उबटन
नल के पानी से धोने के बाद
हमारा चेहरा कैसा खिल उठता है
अपने बच्चों से मिल कर खुशी से !
उबटन हल्दी चन्दन का हो
या फिर धूल पसीने का
चेहरा चमकता है
सबर से, संतोष से,
मन के अन्दर की खुशी से
जो महल वालों को भी नसीब नहीं
चाहे पूछ लो किसीसे !

चित्र - गूगल से साभार

साधना वैद

Friday, December 4, 2020

अवमूल्यन

 

Image may contain: one or more people, people standing, twilight, sky, outdoor and nature

नहीं आये न तुम !
अच्छा ही किया !
जो आते तो शायद
निराश ही होते !
कौन जाने मैं पहले की तरह
तुम्हारी आवभगत
तुम्हारा स्वागत सत्कार
तुम्हारी अभ्यर्थना
कर भी पाती या नहीं ?
आखिरकार इंतज़ार भी तो
निरंतर कसौटी पर कसा जाकर
कभी न कभी
दम तोड़ ही देता है !
आशा की डोर भी तो
कभी न कभी
कमज़ोर होकर
टूट ही जाती है और
जतन से सहेजी हुई
माला के सारे मनके
एक ही पल में भू पर
बिखर कर रह जाते हैं !
पथ पर टकटकी लगाए
आँखे भी तो थक कर
कभी न कभी
पथरा ही जाती हैं और
परस्पर पत्थरों के मध्य
भाव सम्प्रेषण की
सारी संभावनाएं फिर
शून्य हो जाती हैं !
और अनन्य प्रेम की
सुकोमल पौध में भी
बारम्बार गुज़रते मौसमों की
बेरहम चोटों से
कभी न कभी
नाराज़गी की दीमक
लग ही जाती है
जो कालान्तर में उसे
समूल नष्ट कर जाती है !
अब इस खंडहर में
इन अनमोल भावनाओं के
सिर्फ चंद अवशेष ही बाकी हैं !
जो शायद किसी को भी
प्रीतिकर नहीं होंगे !
कम से कम
तुम्हें तो हरगिज़ नहीं !
क्योंकि अपना ही ह्रास
अपना ही अवमूल्यन
अपना ही क्षरण
भला कोई कैसे
स्वीकार कर सकता है !
इसलिये
वक्त की फिरी हुई
नज़रों के इस वार से
जो तुम बचना चाहते हो
तो इस वीरान खंडहर में
अब फिर कभी
भूले से भी न आना
वही ठीक रहेगा !


साधना वैद

Sunday, November 29, 2020

उम्र का तकाज़ा




भूलने की बीमारी हो गयी है
उम्र का तकाज़ा है
कुछ भी दिमाग में सहेज कर
नहीं रख पाती अब
यह कैसा भुलावा है !
याद है बस बरसों पहले
ज़ेहन में खुदी एक तिथि
जिस दिन तुम्हें
आख़िरी बार देखा था
और याद है वह दूसरी तिथि
जिस दिन तुमने मुझसे
फिर मिलने का वचन दिया था !
वर्षों गुज़र गये
हर दिन कैलेण्डर में
उन तारीखों को देखती हूँ और
उन्हीं की नित क्षीण होती जाती रोशनी में
अपने जीवन की राह खोजती हूँ !
बस जैसे कुछ और बाकी ही न रहा !
लेकिन क्या हुआ बोलो तो ?
मुझे उन तिथियों के सिवा
अब कुछ याद नहीं !
और तुम ...... ?
तुम्हें शायद
उन तिथियों के अलावा
बाकी सब कुछ याद रहा !


चित्र - गूगल से साभार


साधना वैद

Wednesday, November 25, 2020

ज़रूरी तो नहीं



हर जीत तुम्हारी हो ज़रूरी तो नहीं ,
हर हार हमारी हो ज़रूरी तो नहीं !

सच है तुम्हें सब मानते हैं रौनके महफ़िल ,
हर बात तुम्हारी हो ज़रूरी तो नहीं !

जो रात की तारीकियाँ लिख दीं हमारे नाम ,
हर सुबह पे भारी हों ज़रूरी तो नहीं !

बाँधो न कायदों की बंदिशों में तुम हमें ,
हर साँस तुम्हारी हो ज़रूरी तो नहीं !

तुम ख़्वाब में यूँ तो बसे ही रहते हो ,
नींदें भी तुम्हारी हों ज़रूरी तो नहीं !

जज़्बात ओ खयालात पर तो हावी हो ,
गज़लें भी तुम्हारी हों ज़रूरी तो नहीं !

दिल की ज़मीं पे गूँजते अल्फाजों की ,
तहरीर तुम्हारी हों ज़रूरी तो नहीं !

माना की हर एक खेल में माहिर बहुत हो तुम ,
हर मात हमारी हो ज़रूरी तो नहीं !

चित्र - गूगल से साभार 

साधना वैद

Tuesday, November 24, 2020

ऋतुचक्र

 


प्रकृति के ऋतुचक्र के साथ हम अभिन्न रूप से जुड़े हुए हैं और ऐसा समझ लीजिये कि ऋतुओं की उँगलियों के इशारों पर प्रकृति हमें नचाती रहती है ! ऋतु परिवर्तन का कारण पृथ्वी द्वारा सूर्य के चारों ओर की जाने वाली परिक्रमा और पृथ्वी का अक्षीय झुकाव है । पृथ्वी का डी घूर्णन अक्ष इसके परिक्रमा पथ से बनने वाले समतल पर लगभग 66.5 अंश का कोण बनता है जिसके कारण उत्तरी या दक्षिणी गोलार्धों में से कोई एक गोलार्द्ध सूर्य की ओर झुका होता है । यह झुकाव सूर्य के चारों ओर परिक्रमा के कारण वर्ष के अलग-अलग समय अलग-अलग होता है जिससे दिन-रात की अवधियों में घट-बढ़ का एक वार्षिक चक्र निर्मित होता है। यही ऋतु परिवर्तन का मूल कारण बनता है । ऋतुचक्र के अनुसार मौसम में तो परिवर्तन आते ही हैं हमारे आहार विहार, खान पान, वेशभूषा, आचार विचार और मानसिकता को भी ये निश्चित रूप से प्रभावित करते हैं !

यूँ तो मोटे तौर पर ग्रीष्म ऋतु, वर्षा ऋतु और शीत ऋतु ये तीन मौसम ही जाने जाते हैं और वर्ष में चार चार माह का समय इनके लिए निर्धारित होता है लेकिन इनके आगमन के बाद इनके स्थापित होने में और विदाई के पूर्व अगली ऋतु के आने तक इनकी विदाई की बेला के महीनों को तीन और ऋतुओं में विभाजित किया गया है ! इस प्रकार बारह महीनों में छ: ऋतुओं का विधान है ! ये ऋतुएँ हैं—

वसंत – मार्च अप्रेल

ग्रीष्म – मई जून

वर्षा – जुलाई अगस्त सितम्बर

शरद – अक्टूबर नवम्बर

हेमंत – १५ दिसंबर से १५ जनवरी

शिशिर – १६ जनवरी से फरवरी के अंत तक !

अब देखिये इन दिनों शरद ऋतु का समय चल रहा है जो शनै: शनै: समाप्ति की ओर बढ़ रहा है ! शीत ऋतु के आने का समय है ! हम उसके स्वागत के लिए तैयारियाँ कर रहे हैं ! गुलाबी गुलाबी ठंड पड़ने लगी है ! हल्की रजाइयाँ कम्बल निकल आये हैं ! गर्म कपड़ों के बॉक्स खुल गए हैं और शॉल, स्वेटर्स, कार्डिगन निकल आये हैं ! गर्म-गर्म चाय कॉफ़ी के प्याले सुहाने लगने लगे हैं ! माघ पौष में जब हेमंत ऋतु अपने पूर्ण यौवन पर होती है यह अपने पूरे दम ख़म के साथ हमें सतायेगी ! सड़कों और फुटपाथ पर सोने वालों के लिए यह ऋतु अत्यंत कष्टदायी हो जायेगी ! शीत लहर से कइयों की जान पर बन आती है ! अनेकों पहाड़ी स्थानों पर बर्फ गिरने लगती है और कड़ाके की सर्दी पड़ने लगती है ! सर्दी से बचने के लिए अस्थाई रैन बसेरों का निर्माण किया जाएगा ! कम्बल, गद्दे, लिहाफों का दान किया जाएगा ! खाने पीने में गरम तासीर के पकवान बनाए जायेंगे ! तिल, गुड़, शहद, सौंठ, अदरक का प्रयोग बढ़ जाएगा ! घरों में तापने के लिए अँगीठी या रूम हीटर निकल आयेंगे ! सडकों पर जगह जगह अलाव जला कर शीत से मुकाबला करते लोग दिखाई देने लगेंगे ! सरसों का साग, मक्के बाजरे की रोटी, बाजरे की खिचड़ी और लड्डू, तिल गुड़ की गजक, रेवड़ी, भुनी हुई मूँगफली और चिक्की बहुत स्वादिष्ट लगते हैं ! इस ऋतु के प्रमुख त्यौहार हैं मकर संक्रान्ति, लोहड़ी, बीहू, पोंगल आदि ! मकर संक्रांति को बड़े उत्साह से मनाया जाता है ! इस दिन खिचड़ी दान करने और खाने का बड़ा महात्म्य होता है ! अनेकों स्थानों पर मकर संक्रांति के दिन पतंग उड़ाने की प्रथा भी है ! पूर्वी भारत में इस पर्व को बीहू के नाम से मनाया जाता है और दक्षिण में यह पर्व पोंगल के नाम से विख्यात है ! १३ जनवरी उत्तर भारत में लोहड़ी पर्व के रूप में भी मनाई जाती है ! इस दिन सूर्य की पूजा की जाती है और बड़ी सी आग जला कर सामूहिक रूप से इसकी परिक्रमा कर उत्सव मनाया जाता है !  

हेमंत ऋतु के जाने के बाद शिशुर ऋतु का आगमन होता है ! रातें कुछ बड़ी हो जाती हैं ! दिन में यदि धूप तेज़ हो तो गरम कपड़ों में कसमसाहट सी होने लगती है ! ये मौसम अचार डालने के लिए सबसे अधिक उपयुक्वत होता है ! लाल मिर्चें इसी मौसम में आती हैं और कई घरों में लाल काली गाजर की कांजी, गोभी गाजर, शलजम का मिक्स्ड अचार, बड़ियाँ, मंगोड़ियाँ, आलू के पापड़, चिप्स इत्यादि बनाने के कार्यक्रम शुरू हो जाते हैं ! सहती धूप में बनाने में दिक्कत नहीं होती और दिन में धूप तेज़ हो जाती है तो ये अच्छी तरह से सूख जाते हैं ! 

शीशिर ऋतु के बाद वसंत का आगमन होता है ! धरती रंग बिरंगे फूलों से सज जाती है ! वातावरण रूमानी हो जाता है ! भारी भरकम गरम कपड़ों से छुटकारा मिल जाता है और मन पंछी निर्द्वंद उड़ान भरने लगता है ! यह प्रेम के अंकुरण का महीना होता है ! मदनोत्सव इसी माह में मनाया जाता है ! वेलेंटाइन डे के नाम से लोग अधिक परिचित होंगे शायद ! सारी धरा वासंती रंग में रंग जाती है इस माह में वसंत पंचमी के दिन हमारे यहाँ वसंती रंग की फीरनी बनाई जाती है प्रसाद के लिए ! चैत्र बैसाख वसंत ऋतु के महीने माने जाते हैं ! इस ऋतु के प्रमुख त्यौहार हैं वसंत पंचमी, महा शिवरात्रि, होली, बैसाखी, गुड़ीपड़वा ! रंगों से भरा और जायकेदार पकवानों से पगा प्रेम और सौहार्द्र का महीना ! वसंत से लेकर ग्रीष्म ऋतु के आगमन तक सब बहुत मनमोहक लगता है !

ग्रीष्म ऋतु के आगमन की तैयारी हो चुकी है अब ! गरम कपड़े संदूकों के हवाले हो गए हैं ! हलके फुल्के कपड़े निकल आये हैं ! कूलर, ए, सी, चालू हो गए हैं ! लू में बाहर निकलना अत्यंत दुष्कर हो जाता है ! यह ऋतु बड़ी ही त्रासद हो जाती है ! धूल भरी आँधियाँ और तूफ़ान इस ऋतु को और कष्टप्रद बना देते हैं ! सारे घर में हर जगह धूल ही धूल भर जाती है ! साफ़ सफाई के काम बहुत बढ़ जाते हैं ! आँधी तूफ़ान में अक्सर पुराने सूखे पेड़ गिर जाते हैं और हज़ारों की संख्या में वृक्षों पर रहने वाले परिंदों और छोटे छोटे प्राणियों की जान चली जाती है !  सड़कों बाज़ारों में आवागमन अवरुद्ध हो जाता है और अनिश्चित काल के लिए बिजली ठप हो जाती है ! गर्मी में बिजली के चले जाने से स्थिति और दुखदायी हो जाती है ! घर से बाहर जाने वालों को प्याज की गाँठ साथ में ले जाने की हिदायत दी जाती है ! ठन्डे पेय पदार्थ सुहाते हैं ! आम और खरबूजे का पना घर में अनिवार्य रूप से बनाया जाता है ! ज़रा सा बाहर निकलते ही पसीने की धाराएं बहने लगती हैं ! मन अनमना हो जाता है ! अचानक बिजली गुल हो जाने की आशंका में हाथ के पंखे हर कमरे में रखे रहते हैं ! रूमानी विचारों पर ब्रेक लग जाता है और दिन में कई कई बार नहाने का सिलसिला चालू हो जाता है ! घिसे हुए पुराने कपड़े सुहाते हैं और बिलकुल सादा और सुपाच्य भोजन ही अच्छा लगता है ! ठन्डे पेय पदार्थ जैसे शरबत, लस्सी, रूह अफज़ा, फलों का रस, फालसे का शरबत, सत्तू इत्यादि केवल अच्छे ही नहीं लगते हमारे शरीर के तापमान को संतुलित रखने में भी सहायक होते हैं ! ज्येष्ठ अषाढ़ के ये महीने सबका वज़न घटा जाते हैं ! इन दिनों वट सावित्री व अहोई अष्टमी की पूजा के त्यौहार आते हैं जिन्हें विवाहित स्त्रियाँ बड़ी निष्ठा के साथ मनाती हैं !

सावन भादौं के आते ही मन फिर से रूमानी होने लगता है ! बादलों को देख कर सब हर्षित हो जाते हैं किसान, कवि, कलरव करते बच्चे सब पहली बारिश के लिए आतुर रहते हैं ! कालीदास का मेघदूत दिल दिमाग पर हावी हो जाता है ! और मन तरंगित हो उठता है ! लेकिन यहाँ भी फुटपाथ पर रहने वालों के लिए बड़ी समस्या हो जाती है ! जिन घरों में पानी टपकने की समस्या होती है उनकी व्यवस्था चरमरा जाती है ! और सब तहस नहस सा हो जाता है जिसकी वजह से मन में झल्लाहट और खीझ भर जाती है ! गृहणियों के लिए बड़े कष्टप्रद दिन होते हैं जब घर में अव्यवस्था फ़ैली हो और गरमागरम पकौड़े बनाने की फरमाइश पेश आ जाए ! हल्के हल्के कपड़े भी कई कई दिनों तक नहीं सूखते ! बच्चों को स्कूल जाने में और नौकरीपेशा नर नारियों को अपने कार्यस्थल तक पहुँचने में बड़ी असुविधा का सामना करना पड़ता है ! अति वृष्टि से अनेकों स्थानों पर बाढ़ आ जाती है और नदियाँ अत्यंत विकराल रूप धारण कर लेती हैं तो जन धन की अपार हानि होती है ! लेकिन फिर भी बारिश खिड़की से देखने में बहुत सुहानी लगती है ! इन दिनों भी खान पान में विशेष सावधानी बरतने की संस्तुति की जाती है ! साग पात खाना वर्जित माना जाता है ! दही का प्रयोग वर्जित माना जाता है ! दूध की खीर और मोदक इस माह के विशिष्ट पकवान है जो रक्षा बंधन व गणेश चतुर्थी पर अवश्य ही बनाए जाते हैं ! तीज, नागपंचमी, रक्षाबंधन, जन्माष्टमी, गणेश चतुर्थी आदि इस ऋतु के प्रमुख त्यौहार हैं ! भाद्र पक्ष के समाप्त होने के बाद आश्विन माह आरम्भ होता है  पितृ पक्ष आरम्भ होता है जिसका समापन अमावस्या की तिथि को होता है ! इसे सर्वपितृ अमावस्या भी कहते हैं ! इस पक्ष में अपने पूर्वजों के सम्मान में श्राद्ध तर्पण इत्यादि करने का विधान है !

और लीजिये पूरे वर्ष के मौसमों का जायज़ा लेते हुए हम फिर से आ पहुँचे हैं उसी शरद ऋतु पर जहाँ से हमने यह सफ़र शुरू किया था ! सबसे सुखद और सुहावना वर्ष का यही मौसम होता है ! जिसमें आनंद ही आनंद होता है और ढेर सारे मनभावन त्यौहार होते हैं ! इन दिनों प्रकृति भी मेहरबान होती है ! व्याकुल कर देने वाली गर्मी समाप्त हो चुकी होती है ! बारिश के बाद पेड़ पौधे एकदम धुले पुछे से स्वच्छ और मनोहारी लगने लगते हैं ! धूल बैठ जाती है तो पार्यावरण बिलकुल साफ़ हो जाता है और धूसर आसमान नीला दिखाई देने लगता है ! चारों और खूबसूरत फूल खिल जाते हैं और मन में उमंग और उत्साह अंकुरित होने लगता है ! इस ऋतु का शुभारम्भ ही नवरात्रों से होता है ! नौदेवी के व्रत के साथ मन में शुचिता का भाव जागृत होता है और यह भक्ति एवं आनंद का उत्सव का अवसर होता है तो हर इंसान का मन उल्लसित होता है ! बंगाल में यह पर्व दुर्गा पूजा के नाम से जाना जाता है तो गुजरात राजस्थान आदि में यह नव रात्रों के नाम से प्रसिद्ध है ! नौ दिनों तक हर उम्र के नर नारी खूब गरबा खेलते हैं और जगह जगह पर इनके आयोजन किये जाते हैं ! बच्चों और युवाओं का जोश और उत्साह देखते ही बनता है ! साल भर से लोग इस अवसर की तैयारी में लगे रहते हैं ! इस ऋतु के अन्य विशिष्ट त्यौहार हैं दशहरा, शरद पूर्णिमा, सुहागिन स्त्रियों का सबसे महत्वपूर्ण व्रत करवा चौथ एवं दीपावली ! और दीपावली के बाद आने वाला छठ माता का पर्व ! जो सन २०२० का अभी कल ही समाप्त हुआ है ! इस ऋतु में मौसम बहुत ही सुहाना रहता है ! लेकिन अक्सर बदलते मौसम का ख़याल न करने से यह कुपित होकर दण्डित भी कर देता है और अक्सर इस मौसम में लोगों को सर्दी गर्मी का असर हो जाता है और खाँसी ज़ुकाम की शिकायत हो जाती है ! मच्छरों का प्रकोप बढ़ जाता है ! देव उठान एकादशी से शादियाँ प्रारम्भ हो जाती हैं तो सब उल्लसित होकर कपड़ों और गहनों की खरीदारी में जुट जाते हैं ! इस मौसम के पकवानों का तो कोई अंत ही नहीं है ! अनेक तरह की मिठाइयों और नमकीन की वैराइटी से दुकानें सजी रहती हैं ! शरद पूर्णिमा के दिन ख़ास तौर पर खीर बनाई जाती है और उसे जाली से ढक कर पूर्ण चन्द्र की रोशनी में रात भर रखा जाता है ! विश्वास है कि उसमें चाँदनी की अमृत वृष्टि हो जाती है तो यह खीर अत्यंत गुणकारी हो जाती है ! मौसम अच्छा होता है तो मन माफिक कपड़े पहन सकते हैं सब ! वर्ष का यह मौसम सबसे बढ़िया होता है ! और लो जी यह भी अब समाप्त होने को है ! तो चलिए तैयारी शुरू करते हैं हेमंत ऋतु के स्वागत की !

साधना वैद