क्षुब्ध हूँ
मैं
जाने क्यों
विक्षुब्ध हूँ, विचलित हूँ,
व्याकुल हूँ, व्यथित हूँ !
आज सुबह की
सूर्य वन्दना के बाद भी
मन में पुलक नहीं, उत्साह नहीं,
उमंग नहीं, उल्लास नहीं !
अल्लसुबह
दूर क्षितिज पर छाई लालिमा में
बालारुण की अरुणाई और
भोर के सुनहरे उजास के स्थान पर
युद्ध में हताहत
असंख्यों निर्दोष मासूम बच्चों
स्त्रियों और शूरवीर योद्धाओं के
रक्त की लालिमा दिखाई दे रही है
जो मन में अवसाद,
तन में सिहरन और
नैनों में कभी न सूखने वाली
नमी भर जाती है
मेरी सुबह को हर सुख,
हर आस से नि:शेष कर
बिलकुल रीता कर जाती है !
चित्र - गूगल से साभार !
साधना वैद
हार्दिक धन्यवाद दिग्विजय जी ! आभार आपका ! सादर वन्दे !
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत रचना
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद भारती जी ! आभार आपका !
Deleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर रविवार 11 मई 2025 को लिंक की जाएगी ....
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
हार्दिक धन्यवाद रवीन्द्र जी ! आभार आपका ! सादर वन्दे !
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद ओंकार जी ! आभार आपका !
Delete