ठंडा है चूल्हा
सीली हैं
लकड़ियाँ
बुझी है आग
कैसे मिलेंगी
दो जून की
रोटियाँ
खाली बर्तन
चिंतित मन
बीच मंझधार में
डूबती नैया
अभागे नहीं
मेहनतकश हैं
कमा ही लेंगे
इतना पैसा
कि जल जाए
चूल्हा
आ जाए आटा
नसीब होंगी
दो जून की
रोटियाँ
भूखे पेटों को
सुबह होगी
उगेगा सूरज भी
आसमान
में
होगा उजाला
हमारे भी घर
में
जलेगा चूल्हा
पकायेगी माँ
दो जून की
रोटियाँ
हमारे लिए !
चित्र - गूगल से साभार
साधना वैद
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में बुधवार 04 जून 2025 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद आदरणीय दिग्विजय जी ! बहुत-बहुत आभार आपका ! सादर वन्दे !
DeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteधन्यवाद प्रिया जी !
Deleteहिम्मते मरदा तो मददे - ए - खुदा
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद प्रिया जी !
Deleteसुंदर चित्र और शब्द-चित्र !
ReplyDeleteदिल से आभार अनीता जी ! बहुत बहुत धन्यवाद आपका !
Deleteविपन्नता में आशा की गुंजाइश सबसे ज्यादा होती हैं। एक उम्मीद से भरी रचना। बधाई आदरणीय साधना जी🙏
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद रेणु जी ! आभार आपका !
Deleteअत्यंत मर्मस्पर्शी और सुंदर रचना।
ReplyDeleteहृदय से धन्यवाद आपका विजय कुमार जी ! बहुत-बहुत आभार !
Deleteसुंदर
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद ओंकार जी ! आभार आपका !
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