चलती रही , मुश्किल सफ़र पे , ज़िंदगी मेरी
माँगा न कुछ , फिर क्यों भला तू ने , नज़र फेरी
तू भी तो कर, नज़रे इनायत , ओ खुदा मेरे
करती रहूँ , कब तक यूँ ही मैं , बंदगी तेरी !
जनमे राम, हर्षाए पुरवासी , सजी नगरी
बजे बधावे , गावें मंगल गान , धरें गगरी
द्वार-द्वार पे , सजे वंदनवार , सजी रंगोली
जागे न लल्ला , धीमे धीमे धरतीं , मैया पग री !
साधना वैद
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कब तक यूँही करूँ बंदगी तेरी ......वाह
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ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 5 नवंबर 2025 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!