Monday, September 14, 2009

टुकड़ा टुकड़ा आसमान

अपने सपनों को नई ऊँचाई देने के लिये
मैंने बड़े जतन से टुकड़ा टुकडा आसमान जोडा था
तुमने परवान चढ़ने से पहले ही मेरे पंख
क्यों कतर दिये माँ ?
क्या सिर्फ इसलिये कि मैं एक बेटी हूँ ?
अपने भविष्य को खूबसूरत रंगों से चित्रित करने के लिये
मैने क़तरा क़तरा रंगों को संचित कर
एक मोहक तस्वीर बनानी चाही थी
तुमने तस्वीर पूरी होने से पहले ही
उसे पोंछ क्यों डाला माँ ?
क्या सिर्फ इसलिये कि मैं एक बेटी हूँ ?
अपने जीवन को सुख सौरभ से सुवासित करने के लिये
मैंने ज़र्रा ज़र्रा ज़मीन जोड़
सुगन्धित सुमनों के बीज बोये थे
तुमने उन्हें अंकुरित होने से पहले ही
समूल उखाड़ कर फेंक क्यों दिया माँ ?
क्या सिर्फ इसलिये कि मैं एक बेटी हूँ ?
अपने नीरस जीवन की शुष्कता को मिटाने के लिये
मैंने बूँद बूँद अमृत जुटा उसे
अभिसिंचित करने की कोशिश की थी
तुमने उस कलश को ही पद प्रहार से
लुढ़का कर गिरा क्यों दिया माँ ?
क्या सिर्फ इसलिये कि मैं एक बेटी हूँ ?
और अगर हूँ भी तो क्या यह दोष मेरा है ?

साधना वैद

8 comments:

  1. बिल्कुल सही सवाल ......एक हृदयस्पर्शी रचना!

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  2. पढ़ कर सन्न रह गया,बहुत सी बेटियाँ आँखों के आगे घूम गई,बहुत ही सार्थक कविता.

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  3. बढ़िया रचना धन्यवाद.

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  4. गंभीर रचना!!


    हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ.

    कृप्या अपने किसी मित्र या परिवार के सदस्य का एक नया हिन्दी चिट्ठा शुरू करवा कर इस दिवस विशेष पर हिन्दी के प्रचार एवं प्रसार का संकल्प लिजिये.

    जय हिन्दी!

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  5. कब तक बेटी को ये सवाल पूछने होंगे ?

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  6. ये शाश्वत सवाल है जो हर बेटी द्वारा हमेशा पूछेजाते रहेंगेंक्योंकि इन प्रश्नों का कोइ उत्तर नहीं है। मां का यह सब करना लाजिमी है क्योंकि वह पहले एक मां होती है बादमें व्यक्ति।

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  7. In fact the Indian civilisation worshipped women. This is evident from Navratri when we worship women in all forms . THis was Shaiv culture where Bhagwan Shiv had given all honour to his wife, Sati and carried her dead body all over. The male society came with the coming of Arya civilisaton and then male dominance and condemnation of women started. We should go in depth of Shaiv culture which teaches us of all respects to women in the Society. In addition the women should be suitably empowered with financial and social status. If not it should be fought and not cried upon .

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