Wednesday, December 9, 2009

न दिल में ज़ख्म न आँखों में ख्वाब की किरचें

न दिल में ज़ख्म न आँखों में ख्वाब की किरचें
फिर किस गुमान पे इतने दीवान लिख डाले
तमाम उम्र जब इस दर्द को जिया मैने
तब कहीं जाके ये छोटी सी ग़ज़ल लिखी है ।

साधना वैद

2 comments:

  1. बहुत अच्छा लिखा है आपने । भाव, विचार और शिल्प का सुंदर समन्वय रचनात्मकता को प्रखर बना रहा है । मैने भी अपने ब्लाग पर एक कविता लिखी है। समय हो तो पढ़ें और कमेंट भी दें-
    http://drashokpriyaranjan.blogspot.com

    वैचारिक संदर्भों पर केंद्रित लेख-घरेलू हिंसा से लहूलुहान महिलाओं का तन और मन-मेरे इस ब्लाग पर पढ़ा जा सकता है-
    http://www.ashokvichar.blogspot.com

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  2. बेहद खूबसूरत पंक्तियाँ ।आभार ।

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