Tuesday, December 15, 2009

आशा

जीवन की दुर्गमता मैंने जानी है ,
अपनों की दुर्जनता भी पहचानी है ,
अधरों के उच्छ्वास बहुत कह जाते हैं ,
निज मन की दुर्बलता मैंने मानी है ।
पर साथ तेरा पा अनुभव जब विपरीत हुए
मौन अधर ने खुलना चाहा तेरे लिये ।

टूट गये विश्वास , आस्था की माला ,
जला गयी संसार द्वेष की इक ज्वाला ,
जीवन के सब रंग हुए बेरंग , बचा
दुख, दर्द, घृणा, अवसाद, व्यथा का रंग काला ,
ऐसे में जब घायल तन को तूने छुआ
बन्द पलक ने खुलना चाहा तेरे लिये ।

जली शाख पर कली एक मुस्काई है ,
दूर तेरे आँचल की खुशबू आयी है ,
कहीं क्षितिज पर सूरज कोई चमका है ,
कहीं अंधेरा चीर रोशनी आयी है ,
भावों का उन्माद बहक कर उमड़ा है
गीत हृदय ने रचना चाहा तेरे लिये ।

साधना वैद

5 comments:

  1. अच्छा गीत है साधना जी ।

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  2. बहुत सुंदर साधना जी ,
    शब्दों का चयन और उपयोग बेहद खूबसूरती से किया गया है ....॥

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  3. यह आशा ही तो है हमें जिन्दारखे रह्ती है ।बहुत ही प्रेरणास्पद कविता।

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  4. A mirror of heart touching ideas. A fine piece of writing.

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  5. टूट गये विश्वास , आस्था की माला ,
    जला गयी संसार द्वेष की इक ज्वाला ,
    जीवन के सब रंग हुए बेरंग , बचा
    दुख, दर्द, घृणा, अवसाद, व्यथा का रंग काला ,
    ऐसे में जब घायल तन को तूने छुआ
    बन्द पलक ने खुलना चाहा तेरे लिये ।

    bahut sundar bhav ko sanjoye huye hai ye rachna....aapki kahani baad men padhungi.....

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