Friday, January 29, 2010

जीवन गीत ( कविता )

मंजिलें हैं दूर यह मालूम है ,
पाँव थक कर चूर, यह मालूम है ,
क्या हुआ साथी जो पीछे रह गए ,
राह अपनी खुद बनाना सीख ले |

है अमावस का घना साया पड़ा
सूर्य को भी रश्क तुझसे है बड़ा
क्या हुआ राहें अंधेरी हैं अगर
दीप अपना खुद जलाना सीख ले |

ज़िंदगी के खेल बेढब हैं बड़े ,
हसरतों पर तंज के पहरे पड़े ,
क्या हुआ जो हार है तकदीर में
हौसला अपना बढ़ाना सीख ले |

तार टूटे बीन के तो क्या हुआ ,
बोल बिखरे गीत के तो क्या हुआ ,
क्या हुआ सुर ताल लय धुन खो गए ,
गीत अपना गुनगुनाना सीख ले |

साधना वैद

10 comments:

  1. बहुत उम्दा सकारात्मक ख्याल!! बधाई!

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  2. शुक्रिया इस प्रेरक कविता के लिए ....
    जय हिंद...

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  3. Sadhnaji, aapki rachana bahut sundar aur bhav bahut acche lage...Aahbar!!
    http://kavyamanjusha.blogspot.com/

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  4. aapkaa geet bhoole hue ko raastaa dikhaataa hai aur niraash logo ke man me aashaa kaa sanchar kar detaa hai

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  5. हमेशा अग्रसर रहने के लिए प्रेरित करती हुई ये .....कविता ......बहुत सुंदर रचना

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  6. कर्मशील बने रहने की प्रेरणा देती सुन्दर रचना के लिये बधाई धन्यवाद्

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  7. bahut sundar pryas hai .
    very good attempt
    Asha

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  8. Bahut sunder rachna..bhawourn rachna ke liye badhdai.

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