Thursday, July 15, 2010

मैं एकाकी कहाँ !

मैं एकाकी कहाँ !
जब भी मेरा मन उदास होता है
अपने कमरे की
प्लास्टर उखड़ी दीवारों पर बनी
मेरे संगी साथियों की
अनगिनत काल्पनिक आकृतियाँ
मुझे हाथ पकड़ अपने साथ खीच ले जाती हैं,
मेरे साथ ढेर सारी मीठी-मीठी बातें करती हैं,
और उनके संग बोल बतिया कर
मेरी सारी उदासी तिरोहित हो जाती है !
फिर मैं एकाकी कहाँ !

जब भी मेरा मन उत्फुल्ल हो
सजने सँवरने को लालायित होता है
शीतल हवा के नर्म, मुलायम,
रेशमी दुपट्टे को लपेट ,
उपवन के सुगन्धित फूलों का इत्र लगा
मैं अपनी कल्पना के संसार में
विचरण करने के लिये निकल पड़ती हूँ,
जहाँ कोई अकुलाहट नहीं,
कोई पीड़ा नहीं,
कोई छटपटाहट नहीं
बस केवल आनंद ही आनंद है !
फिर मैं एकाकी कहाँ !

जब भी कभी सावन की घटाएं
मेरे ह्रदय के तारों को झंकृत कर जाती हैं,
टीन की छत पर सम लय में गिरती
घनघोर वृष्टि की थाप पर
मेरा मन मयूर थिरक उठता है,
खिड़की के शीशे पर गिरती
बारिश की बूँदों की संगीतमय ध्वनि
मेरे मन को आल्हादित कर जाती है
और उस अलौकिक संगीत से
मेरे अंतर को
निनादित कर जाती है !
फ़िर मैं एकाकी कहाँ !

जब भी कभी मेरा मन
किसी उत्सव समारोह में सम्मिलित होने को
उतावला हो जाता है
मैं अपने ह्रदय यान पर सवार हो
सुदूर आकाश में पहुँच जाती हूँ
जहाँ सितारों की रोशनी से
सारा उत्सव स्थल जगमगाता सा प्रतीत होता है,
जहाँ घटाओं की मृदंग
और बिजली की धार पर
दिव्य अप्सराओं का नृत्य हो रहा होता है
और समस्त गृह नक्षत्र झूम-झूम कर
करतल ध्वनि से उनका
उत्साहवर्धन करते मिल जाते हैं !
फिर इन सबके सान्निध्य में
मैं एकाकी कहाँ !


साधना वैद

14 comments:

  1. सूर्यकान्त गुप्ता ने कहा…

    सचमुच कोई एकाकी कहां? बस शर्त है मन किसी को अपना साथी बना ले। कल्पना जगत मे खो जाइये। सब कुछ अपने समक्ष घटित होता प्रतीत होता है। बहुत ही शानदार शब्द अलंकरण सहित यह कविता… आभार!
    १५ जुलाई २०१० ९:३० PM
    Mrs. Asha Joglekar ने कहा…

    वाह, ऐसा साथ है तो कौन होगा एकाकी ।
    १५ जुलाई २०१० ९:५६ PM

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  2. शानदार पोस्ट

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  3. सही कहा आपने एकाकीपन में हम अपने आपसे और अपने आसपास की चीजों से रूबरू होते हैं ।

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  4. सही बात है कल्पनायें हमे ऊर्जा प्रदान करती हैं जीनी सिखाती हैं बहुत अच्छी लगी आपकी रचना बधाई।

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  5. जिसने प्रकृति के साथ खुद को एकाकार किया हो वह एकाकी कहाँ ,,,
    शब्दों के साथ सावन की घटा भी साथ चल रही है ...तरस रहे हैं बरसात को ...!

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  6. सच है ... इतनी मधुर यादों ... इतने सुनहरे लम्हों को मन में सॅंजो कर कोई एकाकी कहाँ होता है .... बहुत शानदार रचना है आपकी ....

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  7. सच एकाकीपन तो मन की अवस्था है......जब मन में संगी-साथियों की यादें हों...कल्पना के उन्मुक्त आकाश में उड़ने को व्याकुल हो मन...प्रकृति के सान्निध्य में विचरण करने को तैयार हो..फिर एकाकी कहाँ...

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  8. मन से यदि यह सोच लिया जाए कि कोई अपने आसपास है और विचारों में पूर्ण रूप से छाया हुआ है
    तब अकेले होने का प्रश्न ही नहीं उठता |बहुत सुन्दर
    रचना |बधाई
    आशा

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  9. आप और आपकी कविता तो दिन प्रतिदिन निखर रही है |बधाई स्वीकारे |

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  10. वाह क्या बात है

    मैं अपने ह्रदय यान पर सवार हो
    सुदूर आकाश में पहुँच जाती हूँ

    अरे तो टिकट कटा इतना पैसा खर्च करने की क्या जरुरत थी ?

    बहुत अच्छी पकड़ है आपकी शब्दों पर.
    बहुत सुंदर कविता और सीख देती कविता.

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  11. एकाकी की भावना मन से ही उपजती है....सुन्दर अभिव्यक्ति....

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  12. जहाँ घटाओं की मृदंग
    और बिजली की धार पर
    दिव्य अप्सराओं का नृत्य हो रहा होता है
    और समस्त गृह नक्षत्र झूम-झूम कर
    करतल ध्वनि से उनका
    उत्साहवर्धन करते मिल जाते हैं !
    फिर इन सबके सान्निध्य में
    मैं एकाकी कहाँ !

    कविता दिल छू गयी. बहुत ही सुन्दर रचना

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  13. अहा...कितनी आशा जगाती कविता है आपकी...सच कोई एकाकी रहना चाहे तो ही एकाकी होता है वर्ना कितना कुछ है जो आपका एकाकी पण तोड़ता है...विलक्षण कविता है आपकी...बधाई...

    नीरज

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  14. बहुत अच्छा....मेरा ब्लागः"काव्य कल्पना" at http://satyamshivam95.blogspot.com .........साथ ही मेरी कविता "हिन्दी साहित्य मंच" पर भी.......आप आये और मेरा मार्गदर्शन करे...धन्यवाद

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