Monday, September 27, 2010

* हमारी भी सुनो *

मैं राम,
मैंने तो तुम्हें सदा
दया का मार्ग दिखाया था,
सदा प्रेम और अहिंसा का
पाठ पढ़ाया था !
यह आज तुम मेरी किस
शिक्षा का अनुसरण कर रहे हो ?
ऐसी क्रूरता और निर्ममता की सीख
मैंने तुम्हें कब दी थी बताओ
कि आज तुम अपने ही
भाई बंधुओं को मारने पर
तुले हुए हो !
क्या रामायण और अन्य सभी
वेद पुराणों को पढ़ कर
तुम्हें यही सब करने की
प्रेरणा मिलती है ?
मैं गोविन्द सिंह,
मैंने तो हमेशा तुम्हें
निर्बल और मजबूर की
रक्षा करने का
संकल्प लेने के लिये
प्रेरित किया था
यह आज तुम किस पर
हथियार उठा रहे हो ?
क्या गुरु बानी के
किसी भी सबद में
ऐसी धर्मान्धता का सन्देश
तुम्हें सुनाई देता है
जो आज तुम
सारी इंसानियत और भाईचारे
की भावना को बिसरा कर
एक दूसरे का गला काटने के लिये
तलवारें भांज रहे हो ?
मैं मौहम्मद,
मैंने तो तुम्हें सदा एक
रहमदिल इंसान बनने का
मशवरा दिया था,
हर गरीब और मजलूम की
हिफाज़त करने का हुक्म दिया था
फिर यह तुम किसकी इजाजत से
बर्बरता का नंगा नाच
नाचने पर आमदा हो ?
क्या तुम्हारे अंदर का इंसान
बिलकुल मर चुका है ?
क्या कुरान-ए-पाक की आयतों
को पढ़ कर तुम्हें यही
सीख मिलती है कि तुम अपने ही
भाइयों की हिफाज़त करने की जगह
उनके सर कलम करना चाहते हो ?
मैं यीशू,
मैंने तो अपने मूल्यों
अपने आदर्शों की कीमत पर
कभी कोई समझौता नहीं किया
और हँसते-हँसते सूली पर चढ़ गया
फिर तुम आज किस धर्म की रक्षा की
दुहाई दे रहे हो ?
क्या पवित्र बाइबिल को पढ़ कर
तुमने यही सीखा है ?
ज़रा अपनी ज़मीनी
महत्वाकांक्षाओं से उबरो,
अपनी संकीर्ण मानसिकता
की कैद से बाहर निकलो,
बरगलाने वाले और
गुमराह करने वाले
मतलबी और स्वार्थी
अपने तथाकथित रहनुमाओं
की चढाई हुई धर्मान्धता की
काली पट्टी को
अपनी आँखों से उतारो
और ऊपर देखो
हम चारों भाई
कितने प्यार और विश्वास से
यहाँ हिलमिल कर रहते हैं
और चाहते हैं कि तुम भी धरती पर
प्यार और भाईचारे का ऐसा ही
सन्देश प्रचारित प्रसारित करो !
हमें ही तो खुश करना चाहते हो ना ?
तो यही हमारी शिक्षा है
और यही हमारी आज्ञा है !
तुम हमारे सच्चे अनुयायी हो
तो आज यह संकल्प लो
कि अहिंसा और सत्य के मार्ग पर चलोगे
और कभी किसी निर्बल और
बेगुनाह पर वार नहीं करोगे
यही हमारी सच्ची पूजा,
सच्ची सेवा, सच्ची इबादत
और सच्ची पार्थना होगी
इसके विपरीत सब गुनाह है
सिर्फ और सिर्फ गुनाह !

साधना वैद

20 comments:

  1. जीवन के उद्देश्य को सार्थक करने की.
    वास्तव में एक मर्मस्पर्शी कविता.

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  2. सुंदर और सार्थक रचना
    आभार ....

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  3. सुन्दर और सार्थक सन्देश देती रचना के लिये बधाई। असल मे हम धार्मिक बन जाते हैं लेकिन धर्म के मर्म को जीवन मे नही उतारते। बधाई इस रचना के लिये।

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  4. बहुत ही अच्छी रचना। आज जो हालात हैं उसे देखते हुए यही कहा जाएगा कि क्या हमारे किसी भी संत ने ...महापुरुष ने...पैगम्बर ने...हमारे भगवान ने हमें खून खराबा करना सिखाया था...या आपस में लड़ने की शिक्षा दी थी...तो फिर हम क्यों लड़ रहे हैं...क्यूं उनका नाम कलंकित कर रहे हैं...एक सार्थक रचना...बधाई

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  5. bahut hi sarthak manobhawon se buni huyi kavita......

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  6. बहुत सटीक अभिव्यक्ति ...काश धर्म के नाम पर आपस में लड़ना बंद हो ....

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  7. बहुत अच्छा लिखा, किसी भी धर्म मै किसी भी भगवान ने कही भी खुन खराबा करना नही सिखाया, यह तो हम जेसे मंद बुद्धि लोग कुछ शेतानो के बहकावे मै आ कर उस भगवान, उस अल्लाह के बनाये बंदो को मार देते है, खुन खराबा करते है, ओर नाम उस का बदनाम करते है, धन्यवाद. ओर सहमत है आप के कविता से

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  8. सार्थक रचना. बहुत सुंदर सन्देश देती एक सशक्त रचना. सच लिखा आपने हर धरम ने सन्देश तो प्यार और शांति का दिया और ये इंसान ना जाने ऐसी अशांति फैला कर कौन सी शांति लाना चाहता है धरम के नाम पर.

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  9. सार्थक सन्देश देती रचना....आभार

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  10. यही हमारी सच्ची पूजा,
    सच्ची सेवा, सच्ची इबादत
    और सच्ची पार्थना होगी
    इसके विपरीत सब गुनाह है
    सिर्फ और सिर्फ गुनाह !
    वाह! वाह! बहुत खूब। काश ये धर्मान्ध लोगों की समझ में ये बाते आ जायें।

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  11. विचारोत्तेजक कविता...बधाई.

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  12. इसके विपरीत सब गुनाह है
    सिर्फ और सिर्फ गुनाह !

    जानते सब है लेकिन मानते नहीं आपकी बहुत ही सार्थक रचना हमें सोचना ही होगा नहीं तो पतन निश्चित है

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  13. बहुत सुंदर भाव लिए रचना |
    बधाई

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  14. एक बेहद सशक्त , सार्थक और सुन्दर सन्देश देती रचना……………आभार्।

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  15. आज यह संकल्प लो
    कि अहिंसा और सत्य के मार्ग पर चलोगे
    और कभी किसी निर्बल और
    बेगुनाह पर वार नहीं करोगे
    यही हमारी सच्ची पूजा,
    सच्ची सेवा, सच्ची इबादत
    और सच्ची पार्थना होगी
    इसके विपरीत सब गुनाह है
    सिर्फ और सिर्फ गुनाह
    sunder sandesh.

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  16. बस समझने की जरूरत है....किसी पीर पैगम्बर, ईसा,राम ने लड़ना नहीं सिखाया...पर उनके ही नाम पर लोग, तलवारें भांज रहें हैं...उन्ही की शिक्षा को भुलाकर
    बहुत ही सार्थक कविता

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  17. समाज को सामयिक और सार्थक संदेश देती एक सशक्त और सुंदर रचना।

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  18. अच्छा संदेश देती है आपकी रचना ... पर कोई समझता नही है आज ....

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