Monday, October 4, 2010

* अंतर्व्यथा *

मेरी सपनीली आँखों के बेहद

सुन्दर उपवन में अचानक

सूने मरुथल पसर गए हैं

जिनमें ढेर सारे ज़हरीले

कटीले कैक्टस उग आये हैं ,

ह्रदय की गहरी घाटी में

उमंगती छलकती अमृतधारा

वेदना के ताप से जल कर

बिल्कुल शुष्क हो गयी है,

और अब वहाँ गहरे गहरे

गड्ढे निर्मित हो गए हैं,

भावना के अनंत आकाश में

उड़ने के लिये आतुर मेरे

अधीर मन पंछी के पंख

टूट कर लहू लुहान हो गए हैं

और वह भूमि पर आ गिरा है,

बहुत प्यार से परोसी गयी

"तुम्हारी" अत्यंत स्वादिष्ट

व्यंजनों की थाली की हर कटोरी में

रेत ही रेत मिल गयी है,

जो मेरे मुख को किसकिसा

कर घायल कर गयी है !

अपने बदन को जिस बेहद

मुलायम, मखमली, रेशमी

आँचल से लपेट मैं आँखें मूँद

उसकी स्निग्ध उष्मा और नरमाई

को महसूस कर रही थी

किसीने अचानक झटके से

उसे मेरे बदन से खींच डाला है

और अनायास ही वह

मखमली आँचल रेगमाल सा

खुरदुरा हो मेंरे सारे जिस्म को

खँरोंच कर रक्तरंजित कर गया है !

जीवन खुशनुमाँ हो न हो

पर इतना भी बेगाना

इससे पहले तो कभी न था

जैसा आज है !

साधना वैद

18 comments:

  1. BAHUT HI KHUBSURAT RACHNA....
    मेरी सपनीली आँखों के बेहद सुन्दर उपवन में अचानक सूने मरुथल पसर गए हैं जिनमें ढेर सारे ज़हरीले कटीले कैक्टस उग आये हैं
    umeed hai jald hi ye manjar khatm ho jaaye...
    मेरे ब्लॉग पर इस बार ....
    क्या बांटना चाहेंगे हमसे आपकी रचनायें...
    अपनी टिप्पणी ज़रूर दें...
    http://i555.blogspot.com/2010/10/blog-post_04.html

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  2. आपकी कविता पढ़ने पर ऐसा लगा कि आप बहुत सूक्ष्मता से एक अलग धरातल पर चीज़ों को देखते हैं।

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  3. jub aap dukhee hote hai to aisa mahsoos karte hai......par ise tikaiye nahee khaded bahar kariye........
    kisee bhee sthitee se jyada shaktishalee hum hai.........samaa badalne kee kshamata hai humme.......

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  4. अच्छी प्रस्तुति |पर कहीं मन के असंतोष को उजागर
    करती कविता |बधाई कविता के लिए |बी पोजिटिव
    भूल गईं क्या |
    आशा

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  5. आदरणीया साधना मौसी जी

    प्रणाम !

    सुन्दर उपवन में सूने मरुथल पसर जाना , बहुत पीड़ादायी है सचमुच ।

    मखमली आंचल रेगमाल सा खुरदुरा हो जाना , एकदम नया अछूता बिंब है … बधाई !
    आपकी कविताओं में व्यक्त अंतर्वेदना उदास कर रही है मुझे …
    निस्संदेह यह रचना एवं रचनाकार की जीत है । इसके लिए आप बधाई की पात्र हैं ।

    मेरे एक गीत का एक बंध आपको सादर समर्पित है -
    किसी निराशा की अनुभूति क्यों ? क्यों पश्चाताप कोई ?
    शिथिल न हो मन , क्षुद्र कारणों से ! मत कर संताप कोई !
    निर्मलता निश्छलता सच्चाई , संबल शक्ति तेरे !
    कुंदन तो कुंदन है , क्या यदि कल्मष ने आ घेरा है ?
    वर्तमान कहता कानों में … भावी हर पल तेरा है !
    मन हार न जाना रे !



    अनंत शुभकामनाओं सहित
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  6. कितनी उदासी , अनमनापन ...सूनापन
    ओह ...गहरे तक उतर झकझोर रहा है ...
    आशाओं की दीप जले और उदासी दूर हो ..
    शुभकामनायें ..!

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  7. ओह!!! बहुत ही यथार्थवादी रचना है....अक्सर होता है,ऐसा....सुख -सपनो में खोये होते हैं और यथार्थ का जोर का झटका...नींद से जगा देता है...
    पर यह उदासी और सूनापन कुछ क्षणों के ही मेहमान होने चाहियें....फिर से उपवन हरा भरा होगा...मन का पंछी फिर दूर तक उड़ेगा..

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  8. अंतर्व्यथा को जो शब्द दिए हैं उन्होंने पाठक के मन को झकझोर कर रख दिया है ...रेगमाल का प्रयोग कर मन को जैसे छील दिया ...

    बहुत भावपूर्ण अभिव्यक्ति

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  9. बीना शर्माOctober 5, 2010 at 9:57 AM

    दीदी आपकी रचनाएँ मन को गहरे तक हिला कर रख देती हैं|ये उदासी जल्दी दूर हो और मन मयूर खुशी से नाच उठे|

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  10. ओह! बेहद मार्मिक और गहन वेदना भरी है।

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  11. जीवन ख़ुशनुमा हो न हो
    पर इतना भी बेगाना
    इससे पहले तो कभी न था
    मन को छू लेने वाले भावों को आपने मार्मिक शब्द दिए हैं।...बधाई

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  12. बहुत वेदना भरी ओर मार्मिक रचना, धन्यवाद

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  13. बहुत ही यथार्थवादी रचना है.

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  14. बहुत सहजता से आपने अन्तर्व्यथा की काव्यात्मक प्रस्तुति की है। संवेदनशीक भाव।

    सादर
    श्यामल सुमन
    www.manoramsuman.blogspot.com

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  15. मेरी सपनीली आँखों के बेहद

    सुन्दर उपवन में अचानक

    सूने मरुथल पसर गए हैं

    जिनमें ढेर सारे ज़हरीले

    कटीले कैक्टस उग आये हैं ,
    साधना जी फूलों के साथ ही तो काँटे उगते हैं। वो भले ही चुभते हों मगर फूल की रक्षा भी करते हैं इसी तरह जीवन के उतार चढाव हमे जीना सिखा देते हैं। किसी के होने से ही हमारा वजूद नही है बल्कि कई बार किसी के जाने से उस पर पडी धूल साफ हो कर हम निखरते हैं। अन्तरव्यथा मार्मिक है। बस फूल जैसे फिर भी खिले ज़िन्दगी। शुभकामनायें

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  16. बहुत सूक्षमता से लिखी गयी एक मार्मिक अभिव्यक्ति.

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