Sunday, December 12, 2010

मुझे आता है

मुझे खुशियों के संदेशों
के भीतर दबी
दर्द की इबारतों को
पढ़ना और उस
दर्द में छिपी
अनकही व्यथा कथा को
गुनना आता है !

मुझे आँसुओं के गहरे
समंदर में उतर
सब्र की सीपियों से
मिथ्या मुस्कुराहट के
नकली मुक्ताओं को
चुनना और
उन्हें चुन कर
अपने लिये माला
पिरोना आता है !

स्कूल कॉलेज की
किताबों की पढ़ाई ने
चाहे कभी
सिखाया हो या नहीं
किन्तु जीवन के
अनुभवों की पढ़ाई ने
मुझे जी जी कर मरना
और मर मर कर जीना
अच्छी तरह
सिखाया है!
और शायद इसीलिये
अब मुझे
ज़िंदा लाशों और
मुर्दा इंसानों में फर्क
करना बखूबी
आ गया है !

साधना वैद

19 comments:

  1. मुझे आँसुओं के गहरे
    समंदर में उतर
    सब्र की सीपियों से
    मिथ्या मुस्कुराहट के
    नकली मुक्ताओं को
    चुनना और
    उन्हें चुन कर
    अपने लिये माला
    पिरोना आता है !


    ज़िंदगी किताबों से नहीं अनुभवों से जी जाती है ..बहुत खूबसूरत रचना

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  2. बहुत भावपूर्ण प्रस्तुति बहुत बहुत बधाई
    आशा

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  3. मुझे खुशियों के संदेशों
    के भीतर दबी
    दर्द की इबारतों को
    पढ़ना और उस
    दर्द में छिपी
    अनकही व्यथा कथा को
    गुनना आता है !
    tabhi to zindagi saath hai

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  4. किन्तु जीवन के
    अनुभवों की पढ़ाई ने
    मुझे जी जी कर मरना
    और मर मर कर जीना
    अच्छी तरह
    सिखाया है

    समय सब कुछ सिखला देता है..बशर्ते अवलोकन और आत्मसात करने का गुण विद्यमान हो
    बहुत ही सुन्दर रचना.

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  5. और शायद इसीलिये
    अब मुझे
    ज़िंदा लाशों और
    मुर्दा इंसानों में फर्क
    करना बखूबी
    आ गया है !
    सच कहा ज़िन्दगी सब सिखा देती है…………बेहद उम्दा प्रस्तुति।

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  6. दरअसल असली शिक्षा तो जीवन की कठिन राएँ ही देती है .... बहुत यथार्थ लिखा है ....

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  7. आदरणीया दीदी
    प्रणाम !
    अनुभवों की कसौटी पर अच्छी तरह परखने के बाद निसृत भावाभिव्यक्ति …
    जीवन के
    अनुभवों की पढ़ाई ने
    मुझे जी जी कर मरना
    और मर मर कर जीना
    अच्छी तरह
    सिखाया है!


    बहुत भावपूर्ण रचना के लिए अभार !

    शुभकामनाओं सहित
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  8. साधना जी, सादर नमन| पहली से आख़िरी पंक्ति तक एक साँस में पढ़ ली गयी, पढ़ने के साथ ही रसगुल्ले की तरह गले से उतर गयी आपकी यह कविता|

    अपने मित्रों के बीच चर्चित मेरा डायलॉग, आज मैं आपको भी समर्पित करता हूँ:-

    तजुर्बे का पर्याय नहीं..........

    पुन: पुन: सादर अभिनंदन| सलाम आपकी कलम की जादूगरी को|

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  9. अब मुझे
    ज़िंदा लाशों और
    मुर्दा इंसानों में फर्क
    करना बखूबी
    आ गया है !

    जीवन के संघर्ष जो सिखाते हैं वह किताबों से कहाँ मिलता है..बहुत भावपूर्ण रचना..आभार

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  10. arey baap rey itni anubhavi nazar...bach ke rahna padega fir to kyuki aap to mukhote ke bheetar ka raaj jaan jayengi...:)

    bahut acchhi tahreere likh deti hain aap ehsason me doob kar.

    sunder rachnah.

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  11. मेरे ब्लॉग पर आने के लिये और मुझे प्रोत्साहित करने के लिये मैं आप सबकी हृदय से आभारी हूँ ! बहुत बहुत धन्यवाद !

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  12. साधना जी . बहुत ही प्यारे एहसाह भरे है कविता में.. दिल को छू लिए.. .... सुंदर प्रस्तुति .

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  13. मुझे आँसुओं के गहरे
    समंदर में उतर
    सब्र की सीपियों से
    मिथ्या मुस्कुराहट के
    नकली मुक्ताओं को
    चुनना और
    उन्हें चुन कर
    अपने लिये माला
    पिरोना आता है !
    साधना जी जिसे ये सब आ गया उसके लिये जीवन जीना बहुत आसान हो जाता है। आपकी ये माला हमारे लिये प्रेरना है। बधाई इस रचना के लिये।

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  14. अब मुझे
    ज़िंदा लाशों और
    मुर्दा इंसानों में फर्क
    करना बखूबी
    आ गया है !

    सुन्दर विरोधाभाषी भाव और जीवन को परखने का अन्दाज

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  15. बहुत भावपूर्ण रचना के लिए अभार !

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  16. आपकी कविता ' मुझे आता है ' बहुत प्रभावित करनेवाली है, विषयवस्तु और शिल्प दोनों ही दृष्टि से ।

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