Wednesday, January 5, 2011
एक मीठी सी मुलाक़ात
दो नितांत अजनबी व्यक्तियों के दिलों के तार गिनी चुनी फोन कॉल्स और चंद दिनों की यदा कदा चैटिंग के बाद स्नेह के सुदृढ़ सूत्र में कैसे बँध जाते हैं और कैसे मात्र एक ही मुलाकात युग युगान्तर के परिचय और अंतरंगता का सा प्रभाव मन पर छोड़ जाती है इसका अनुभव बीते दिनों में मुझे हुआ है जब मेरी मुलाक़ात अनामिका जी से हुई ! कई प्रतिष्ठित रचनाकारों के ब्लॉग्स पर किसी अन्य ब्लॉगर के साथ उनकी भेंट वार्ता के संस्मरण जब मैं पढ़ती थी तो मेरे मन में भी यह हूक उठती थी कि कभी मेरी भी किसी ब्लॉगर से मुलाक़ात हो तो मैं भी उस संस्मरण को अपने ब्लॉग पर लिखूँ ! और गत १९ दिसंबर को मेरी यह इच्छा पूर्ण हो गयी !
इन हर दिल अजीज़ अनामिका जी से आप सब मुझसे भी पहले से बखूबी परिचित हैं ! एक प्रतिष्ठित और नामचीन ब्लॉगर, बेहतरीन रचनाकार और एक बेहद नर्मदिल इंसान ! इनकी बेहद खूबसूरत रचनाएं आपने इनके ब्लॉग ‘अनामिका की सदाएं’ में कई बार पढ़ी होंगी ! इनसे मेरी भेंट दिल्ली में गत १९ दिसंबर को मेरे बेटे सरन के घर पर मालवीय नगर में हुई ! इनकी प्रोफाइल वाली तस्वीर देख कर जो छवि मेरे मन में बनी थी उसके अनुसार लगता था कि ये कुछ रिज़र्व तबीयत की और आत्म केंद्रित सी शख्सियत वाली महिला होंगी ! तस्वीर वाला चेहरा एकदम कसा हुआ बंद सा दिखाई देता है जिसके दरवाज़े खोल अन्दर प्रवेश करना कुछ मुश्किल सा लगता है लेकिन यथार्थ तो इसके बिलकुल ही विपरीत था ! जितनी आत्मीयता और प्यार से हमारी पहली मुलाक़ात हुई ऐसा लगा ही नहीं कि हम इससे पहले कभी नहीं मिले थे !
अक्सर इंटरनेट पर ऑनलाइन होते ही हम लोगों की चैटिंग शुरू हो जाती थी ! फिर एक बार मोबाइल नंबर एक्सचेंज हुए टेलीफोन पर वार्ता आरम्भ हो गयी ! उनकी आवाज़ और बातें इतनी प्यारी लगती थीं कि लगता था किसी अल्हड़ सी बच्ची से बात कर रही हूँ ! तस्वीर वाली अनामिका और फोन वाली अनामिका के इस विरोधाभास को मैं स्वयम मिल कर महसूस करना चाहती थी इसीलिये इस बार जब दिल्ली जाने का प्रोग्राम बना तो हम लोगों ने फोन पर ही यह तय कर लिया था कि संभव हुआ तो अवश्य ही मिलने का प्रयास करेंगे ! और उनका बड़प्पन देखिये कि अपने व्यस्त कार्यक्रम से समय निकाल कर, बच्चे को इम्तहान दिलवा कर वे फरीदाबाद से मुझसे मिलने के लिये मालवीय नगर चली आईं और साथ में लाई बेहद स्वादिष्ट गाजर का हलवा जिसकी मिठास अभी तक मेरी जुबान पर धरी हुई है !
उस दिन भी बड़ी गड़बड़ हो गयी ! यूँ तो जर्मनी, इटली, वियना और अमेरिका की मेट्रो में और भारत में कोलकता की मेट्रो में कई बार सैर कर चुकी हूँ लेकिन दिल्ली की मेट्रो में कभी नहीं बैठी थी ! उस दिन रविवार था ! बेटे की भी छुट्टी थी ! बोला चलो मेट्रो से दिल्ली हाट चलते हैं जल्दी ही लौट आयेंगे फिर टाइम नहीं मिल पायेगा ! अनामिका जी के आने का प्रोग्राम था मैं जाना नहीं चाहती थी लेकिन बच्चों ने जिद की तो जाना पड़ा ! बच्चे बोले जब तक वो आयेंगी हम लोग लौट आयेंगे ! लेकिन जब तक हम घर पहुँचे अनामिकाजी आ चुकी थीं ! मुझे शर्मिंदगी हो रही थी लेकिन वो जिस तरह प्यार और आत्मीयता से मिलीं कि पल भर में ही सारी असहजता ना जाने कहाँ तिरोहित हो गयी और जल्दी ही हम लोग पुराने परिचितों की तरह बातों में लीन हो गये ! अनामिका जी के श्रीमानजी व छोटा बेटा भी उनके साथ फरीदाबाद से आये थे जो अपने किसी कार्य से कहीं और गये हुए थे ! उनका फोन आ गया तो अनामिकाजी लौट कर जाने के लिये उद्यत हो गयीं ! मैंने अनुरोध कर उनको भी घर पर ही बुला लिया ! सबसे मिल कर बहुत ही प्रसन्नता हो रही थी ! चाय नाश्ते के बीच कब समय बीत गया पता ही नहीं चला ! मेरी बहू रश्मि और बेटे अयान ने हम लोगों की चंद तस्वीरें भी अपने कैमरे में कैद कीं !
कुल मिला कर यह छोटी सी भेंट अनगिनती खुशियों के पल हमारी झोली में डाल गयी ! चलते वक्त मैंने उनको एक छोटी सी नोटबुक और पेन स्मृति चिन्ह स्वरुप दिया ! यद्यपि इसको बताने की कोई ज़रूरत कतई नहीं थी लेकिन अपनी भूल का पुनरावलोकन तो गलत नहीं ! इस इच्छा के चलते कि इस डायरी में मेरे दिए पेन से पहला शब्द अनामिका जी ही लिखें मैंने उस पर कुछ नहीं लिखा ! अब लगता है मुझे अपनी ओर से उसमें ज़रूर कुछ लिखना चाहिए था ! जो भी हो ! अब जो हो गया सो हो गया ! आशा करती हूँ उन्होंने इस डायरी का उदघाटन अवश्य कर लिया होगा !
नहीं जानती अनामिका जी के क्या अनुभव रहे इस भेंट के बारे में लेकिन यह मुलाक़ात मेरे लिये कितनी मधुर और सुखद रही इसका थोड़ा सा स्वाद तो आपको भी अवश्य ही मिल ही गया होगा !
एक अच्छे और सच्चे इंसान से मिल कर जो खुशी दिल में होती है वो आपकी पोस्ट में झलक रही है...
ReplyDeleteएक अच्छे इंसान से मिलने की बधाई...
नीरज
aapki yah meeti si mulaakaat ki mithee si jhalak bahut achchhi lagi ...gajar ke halwe jaisi :)
ReplyDeletedelhi men main bhi hun ....thodi kadawi yaaden bhi samet lijiyega mujhse mil kar ...ha ha ha ...
bahut achchhi aur madhur milan ko sanjoye aapki post achchhi lagi .
bahut mithi lgi apki ye mulakat.
ReplyDeleteमुलाक़ात...यह लफ़्ज़ ही सुकून देता है...बहुत अच्छी पोस्ट है...बिलकुल जाड़ों की गुनगुनी धूप की तरह...
ReplyDelete.बहुत अच्छी पोस्ट है.......बहुत ही बढ़िया एह्साह है बहुत ही साफ़ और नेक दिल है अनामिका जी
ReplyDeleteअनामिका जी तो हमारी बड़ी दीदी है..........
ReplyDeleteबहुत अच्छा संस्मरण लिखा है |
ReplyDeleteमेरे ख्याल से जब तीव्र इच्छा हो मिलने की तो अवसर अपने आप मिल जाते हैं ,|तुम लोगों का फोटो बहुत अच्छा आया है |बधाई
आशा
ये तो बहुत ही बढिया मुलाकात रही……………जिस तरह आपने बताया है ऐसा लगा सब सामने ही हो रहा है …………वैसे हम भी दिल्ली के ही हैं…………देखते हैं कब मिलना होता है…………वैसे ऐसी यादें ही ज़िन्दगी की धरोहर बन जाती हैं।
ReplyDeleteवाह ...इस मुलाकात की मिठास सच में बहुत ही मधुर प्रतीत हो रही है ...लग रहा है बिल्कुल आप सामने बैठ कर बता रही हों ..बधाई इस बेहतरीन प्रस्तुति के लिये ।
ReplyDeleteबहुत प्यार भरी मुलाकात रही ये तो....बड़े ही सुन्दर तरीके से लिखा है,आपने मुलाकात विवरण...अनामिका जी की रचनाओं की कायल तो हूँ ही...आज उनके ख़ूबसूरत व्यक्तित्व से भी परिचय करवा दिया आपने...पर आप खुद भी इतनी स्नेहिल और सहज हैं...कि आपसे मिलना निश्चय ही अनामिका जी के लिए भी स्मरणीय बन गया होगा.
ReplyDeleteआप दोनों की तस्वीर बहुत प्यारी लग रही है.
साधना जी देरी से ब्लॉग पर आने के लिए क्षमा चाहती हूँ. आपने जिन अतुल आनंद की गहराइयों से इस मुलाक़ात को अपनी स्नेहिल भावनाओं से श्रृंगारित किया है वो तो अत्यधिक आनंद दायक, प्रभावोत्पादक, और अविस्मर्णीय संस्मरण बन गया है. मैंने जब से आपके इस पुलकित कर देने वाले संस्मरण को पढ़ा है तब से इस से प्रवाहित हो रही आनंद सागर की लहरों में स्नान कर रही हूँ.
ReplyDeleteआपने मेरे बारे में इतने प्रशंसनीय शब्द लिख दिए जिनके मैं लायक नहीं हूँ. लेकिन हाँ उम्मीद करती हूँ की तस्वीर वाली अनामिका और फोन वाली अनामिका के इस विरोधाभास को आपने मिल कर महसूस कर लिया होगा. :) :)
आपने लिखा की नहीं जानती अनामिका जी के क्या अनुभव रहे इस भेंट के बारे में तो मैं इतना ही कहूँगी की अभी तक आपसे मिलन का सुखद एहसास ज्यूँ का त्यूँ जेहन में बसा हुआ है और मैं एक बार रोज उसकी अनुभूति को याद कर तारो-ताज़ा सी हो जाती हूँ. :) . आगे भी यूँ ही मुलाकातें होती रहें यही उम्मीद करती हूँ
जी हाँ सच कहा रश्मि रविजा जी ने की निश्चय ही मेरे लिए भी आपके इस संस्मरण ने मुलाक़ात को और भी स्मरणीय बना दिया
बहुत भाव भरी पोस्ट।
ReplyDeleteब्लॉगर मिलन वाला कोई ताम-झाम नहीं, बस एक आत्मीयता का अहसास कराती रचना।
बहुत अच्छा लगा इस आत्मीय मिलन संस्मरण को पढ़कर। अनुभव कर सकती हूँ उस मिलन के सुखमय क्षणों का। ऐसे मिलन से आपसी प्यार एवं सौहार्द्र बढ़ता है।
ReplyDeleteबहुत अच्छा संस्मरण लिखा है |
ReplyDeleteसाधना जी एक तो खुद पर गुस्सा आ रहा है कि इतनी देर बाद पोस्ट पढी दूसरी आपसे जलन हो रही है कि आप अनामिका जी से अकेले मिली अरे मुझे भी साथ ले जाती तो क्या था? खैर मजाक हुया लेकिन सच कहूँ तुम दोनो सगी बहने लग रही हो। बहुत खुशी हुयी दोनो के मिलन से। बधाई दोनो को।
ReplyDeleteदोस्तों
ReplyDeleteआपनी पोस्ट सोमवार(10-1-2011) के चर्चामंच पर देखिये ..........कल वक्त नहीं मिलेगा इसलिए आज ही बता रही हूँ ...........सोमवार को चर्चामंच पर आकर अपने विचारों से अवगत कराएँगे तो हार्दिक ख़ुशी होगी और हमारा हौसला भी बढेगा.
http://charchamanch.uchcharan.com
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ReplyDeleteसाधाना जी, गाजर का जलवा मेरा भी फेवरेट है। आपकी मीठी मुलाकात ने मेरा मन भी मीठा सा कर दिया।
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पति को वश में करने का उपाय।
विज्ञान प्रगति की हीरक जयंती।
Nice post.
ReplyDeleteBahut hee achha laga padhke! Chahat huee ki,Aap dono hee se mulaqaat ho jaye kabhi!
ReplyDeleteNice
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