आये थे तेरे शहर में मेहमान की तरह,
लौटे हैं तेरे शहर से अनजान की तरह !
सोचा था हर एक फूल से बातें करेंगे हम,
हर फूल था मुझको तेरे हमनाम की तरह !
हर शख्स के चहरे में तुझे ढूँढते थे हम ,
वो हमनवां छिपा था क्यों बेनाम की तरह !
हर रहगुज़र पे चलते रहे इस उम्मीद पे,
यह तो चलेगी साथ में हमराह की तरह !
हर फूल था खामोश, हर एक शख्स अजनबी,
भटका किये हर राह पर गुमनाम की तरह !
अब सोचते हैं क्यों थी तेरी आरजू हमें,
जब तूने भुलाया था बुरे ख्वाब की तरह !
तू खुश रहे अपने फलक में आफताब बन,
हम भी सुकूँ से हैं ज़मीं पे ख़ाक की तरह !
साधना वैद
आये थे तेरे शहर में मेहमान की तरह,
ReplyDeleteलौटे हैं तेरे शहर से गुमनाम की तरह !
सोचा था हर एक फूल से बातें करेंगे हम,
हर फूल था मुझको तेरे हमनाम की तरह !
bahut hi sundar hai har baat .
हर फूल था खामोश, हर एक शख्स अजनबी,
ReplyDeleteभटका किये हर राह पर नाबाद की तरह !
बहुत खूबसूरती से जज़्बात लिखे हैं ....सच यूँ ही गुमनाम से हो कर रह जाते हैं ...ऐसा कभी कभी लगता है ...
आये थे तेरे शहर में मेहमान की तरह,
ReplyDeleteलौटे हैं तेरे शहर से गुमनाम की तरह !
तू खुश रहे अपने फलक में आफताब बन,
हम भी सुकूँ से हैं ज़मीं पे ख़ाक की तरह !
वहा बहुत ही खुबसुरत गजल , अपने ख्यालो सी लगी, धन्यवाद
"हर फूल था खामोश ,हर यक शक्ष अजनबी ,
ReplyDeleteभटका किये हर राह पर , नाबाद की तरह "
बहुत सुन्दर और गहरे भाव लिए रचना |बधाई
आशा
खुद खाक में मिलकर भी उसके अफताब बने रहने की दुआ और ख़ुशी ...प्रेम यही तो है !
ReplyDeleteआदरणीय साधना वैद जी
ReplyDeleteसादर सस्नेहाभिवादन !
अरे वाह ! आपका यह भी रूप है !?
तू खुश रहे अपने फलक में आफताब बन,
हम भी सुकूँ से हैं ज़मीं पे ख़ाक की तरह
वाह वाऽऽऽह !
बहुत ख़ूबसूरत शे'र !
बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल !
प्रणय दिवस सप्ताह भर पहले था … बसंत ॠतु तो अभी बहुत शेष है ।
मंगलकामना का अवसर क्यों चूकें ?
♥ प्रणय दिवस की मंगलकामनाएं !♥
♥ प्यारो न्यारो ये बसंत है !♥
बसंत ॠतु की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
इसमें तो बसंत की खुशबू है
ReplyDeleteadarniya sahdana ji ,
ReplyDeletenamskar ,
kya bat hai " aaye the tere shahar men ----." bahut sundar shilp ,bhavnaon ko snjyote huye . dhanyavad
आये थे तेरे शहर में मेहमान की तरह,
ReplyDeleteलौटे हैं तेरे शहर से गुमनाम की तरह !
wah re judai
lajawab
अब सोचते हैं क्यों थी तेरी आरजू हमें,
ReplyDeleteजब तूने भुलाया था बुरे ख्वाब की तरह !
तू खुश रहे अपने फलक में आफताब बन,
हम भी सुकूँ से हैं ज़मीं पे ख़ाक की तरह !
सुंदर ,बहुत भावपूर्ण शेर है.
चित्र से और भी सजग सी हो गयी है रचना -
बधाई .
हर फूल था खामोश, हर एक शख्स अजनबी,
ReplyDeleteभटका किये हर राह पर नाबाद की तरह !
तू खुश रहे अपने फलक में आफताब बन,
हम भी सुकूँ से हैं ज़मीं पे ख़ाक की तरह !
वाह बहुत सुन्दर ! ये दो शेर तो दिल को छू गये। शुभकामनायें।
अब सोचते हैं क्यों थी तेरी आरजू हमें,
ReplyDeleteजब तूने भुलाया था बुरे ख्वाब की तरह !
...aur isi soch me dil bhatakta hai raat bhar
आये थे तेरे शहर में मेहमान की तरह,
ReplyDeleteलौटे हैं तेरे शहर से गुमनाम की तरह !अब सोचते हैं क्यों थी तेरी आरजू हमें,
जब तूने भुलाया था बुरे ख्वाब की तरह !
तू खुश रहे अपने फलक में आफताब बन,
हम भी सुकूँ से हैं ज़मीं पे ख़ाक की तरह !
हर शेर खूबसूरत्…………शानदार गज़ल्।
बहुत ही खुबसुरत प्रस्तुति......
ReplyDeleteअब सोचते हैं क्यों थी तेरी आरजू हमें,
ReplyDeleteजब तूने भुलाया था बुरे ख्वाब की तरह !
सच है....ऐसे लोगों की आरजू ही क्यूँ करनी...जिसने भुला दिया...पर प्रेम में लेन-देन नहीं होता...
बहुत ही मर्मस्पर्शी रचना
साधना जी इस खूबसूरत रचना के लिए बधाई स्वीकार करें...
ReplyDeleteनीरज
साधना जी,
ReplyDeleteआपने गजल में सांसारिक जीवन के यथार्थ को बड़े ही खूबसूरती से उतारा है। आभार।
आये थे तेरे शहर में मेहमान की तरह,
ReplyDeleteलौटे हैं तेरे शहर से गुमनाम की तरह !
बहुत खूबसूरत गज़ल..हरेक शेर लाज़वाब..मन को छू जाता है हरेक शेर.आहूत सुन्दर ..
सोचा था हर एक फूल से बातें करेंगे हम,
ReplyDeleteहर फूल था मुझको तेरे हमनाम की तरह !
अर्थपूर्ण,भावपूर्ण ह्रदय के करीब रचना..
अति सुन्दर/...
.................................
Ashutosh
https://ashu2aug.blogspot.com/
https://ashutoshnathtiwari.blogspot.com/
अब सोचते हैं क्यों थी तेरी आरजू हमें,
ReplyDeleteजब तूने भुलाया था बुरे ख्वाब की तरह
बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल .....बेमिसाल रचना
तू खुश रहे अपने फलक में आफताब बन,
ReplyDeleteहम भी सुकूँ से हैं ज़मीं पे ख़ाक की तरह !
bahut khoobsurat...
तू खुश रहे अपने फलक में आफताब बन,
ReplyDeleteहम भी सुकूँ से हैं ज़मीं पे ख़ाक की तरह !
बहुत ही खुबसुरत गजल..शेर तो दिल को छू गये...
आये थे तेरे शहर में मेहमान की तरह,
ReplyDeleteलौटे हैं तेरे शहर से गुमनाम की तरह !
खूबसूरत गज़ल
तू खुश रहे अपने फलक में आफताब बन,
ReplyDeleteहम भी सुकूँ से हैं ज़मीं पे ख़ाक की तरह !
बहुत खूब.
तू खुश रहे अपने फलक में आफताब बन,
ReplyDeleteहम भी सुकूँ से हैं ज़मीं पे ख़ाक की तरह !
बहुत बढ़िया , अति उत्तम
अब सोचते हैं क्यों थी तेरी आरजू हमें,
ReplyDeleteजब तूने भुलाया था बुरे ख्वाब की तरह !
तू खुश रहे अपने फलक में आफताब बन,
हम भी सुकूँ से हैं ज़मीं पे ख़ाक की तरह !
ch.ch.ch.....itni maayoosi bhi acchhi nahi hoti...
aaj vo aaftaab hai to kya...ant me to aa milega saanjh se.