The world suffers a lot
Not because of theviolence of bad people
but because of the
silence of good people.
जिसने भी लिखा है कितना सही लिखा है ना ! वास्तव में हमारे दुखों का कारण हमारी चुप्पी है ! हम अपने आसपास घटित होने वाली अवांछनीय गतिविधियों के प्रति जिस तरह से निस्पृह और तटस्थ रहने लगे हैं इसी की वजह से असामाजिक तत्वों के हौसले मजबूत होते हैं और वह सब कुछ जो नहीं होना चाहिये अबाध गति से होता रहता है ! जो बुरे लोग हैं वे तो बुरा करेंगे ही लेकिन जो अच्छे हैं वे खामोश रह कर ऐसा होने देते हैं उसे रोकने के लिये कुछ नहीं करते इसीका खामियाजा बाकी सबको भुगतना पड़ता है !
जब हम सब कुछ जानते समझते हुए भी आँखें मूँदे रहना चाहते हैं तो हमें शिकायत करने का भी कोई अधिकार नहीं है ! कहीं ना कहीं परोक्ष रूप से उन असामाजिक अनैतिक गतिविधियों के घटित होने में हम भी थोड़े बहुत ज़िम्मेदार तो हो ही जाते हैं ! क्योंकि ना तो हम अपना विरोध ही दर्ज करा रहे हैं और ना ही हम उन्हें रोकने के लिये कोई उपाय ही कर रहे हैं ! सोचिये क्या अपने आसपास के परिवेश को अपराधमुक्त रखने के लिये हमारा कोई कर्तव्य, कोई प्रतिबद्धता नहीं होनी चाहिये ?
राह चलते हुए मैंने कई बार छोटे-छोटे बच्चों को जुआ खेलते हुए देखा है, अपने से छोटे बच्चों को बेरहमी से पीटते हुए देखा है ! जब भी ऐसा होते हुए देखती हूँ मैं खुद को रोक नहीं पाती और उन बच्चों के साथ अक्सर उलझ पड़ती हूँ ! जानती हूँ हमारा देश गरीब है ! निर्धन बस्तियों में रहने वाले बच्चों के पास खेलने के लिये स्थान नहीं होता ! माता पिता जीवन की आपाधापी में इतने संघर्षरत रहते हैं कि उनके पास यह देखने का भी वक्त नहीं रहता कि उनके बच्चे दिन भर क्या करते हैं और कैसी गतिविधियों में लीन रहते हैं ! यदि उनके पास वक्त नहीं है तो क्या हमें भी अपनी आँखें बंद कर लेनी चाहिये ? क्या आपराधिक गतिविधियों में लिप्त यही बच्चे बड़े होकर शातिर अपराधी बन कर समाज के लिये और अधिक खतरनाक साबित नहीं होंगे ? और आज जब हम उन्हें रोकते नहीं हैं तो क्या कहीं उनके इस नैतिक पतन के लिये हम भी उत्तरदायी नहीं हैं ?
सरे राह चलते हुए बदमाश लड़के लड़कियों को छेड़ते हैं, किसीका पर्स छीन लेते हैं, किसीका सामान चुराते हैं, किसीके साथ मारपीट करते हैं और हम यह सब देख कर निगाहें चुरा कर चुपचाप निकल जाते हैं ! जब हम यह सब जानबूझ कर होने दे रहे हैं तो महात्माओं की तरह समाज के इस पतन पर मगरमच्छी आँसू बहाने का भी हमें कोई अधिकार नहीं है ! मेरा कहने का तात्पर्य यह कतई नहीं है कि क़ानून अपने हाथ में लेकर हमें सरे राह झगड़े निपटाने के कार्य में लग जाना चाहिये लेकिन इतना कहना अवश्य चाहती हूँ कि आप अगर कुछ भी गलत होता हुआ देखें तो कृपया चुप ना रहें उसे रोकने के लिये अपनी आवाज़ ज़रूर उठायें !
Whistle blowing की आवश्यकता आज हर जगह है ! वह चाहे हमारा घर हो , हमारा मोहल्ला हो, हमारा शहर हो या हमारा देश ! अपनी आँखों के सामने गलत बातों की घटित ना होने दें अपनी आवाज़ उठायें, अपना विरोध दर्ज करायें और अपनी सम्पूर्ण क्षमता और शक्ति से उस गलत को होने से रोकें तभी हम एक स्वस्थ और अपराधमुक्त समाज में रहने का स्वप्न साकार कर सकेंगे !
साधना वैद
जब तक इंसान गलत को गलत और सही को सही कहना नही सीखेगा तब तक उसे इंसान कहलाने का भी हक नही है………बेहद उम्दा आलेख ।
ReplyDeleteबहुत ही सही कहा आपने समाज की कल्पना संभव नहीँ है,एक अच्छी सोच के अभाव में.......स्वयं के मूल्यों को ही बना कर इंसान देश का निर्माण कर सकता है।
ReplyDeleteक्या बात है
ReplyDeleteकुछ भी गलत होते देखने पर अपनी आवाज़ उठानी चाहिए ....कम से कम खुद के प्रति तो यह उत्तरदायित्त्व निबाह ही लें कि हमने रोकने का प्रयास तो किया ...अच्छा लेख
ReplyDeleteगलत को गलत कहने का साहस शायद ही किसी में होता है , हर कोई बनावटी इमेज के चक्कर में होता है .... जबकि किसी की ऐसी इमेज टिकती नहीं, स्वस्थ समाज के लिए अच्छे लोगों का बोलना ज़रूरी है
ReplyDeletemain bhi chup nahi rahungi....jaroor bolungi...aur aaj apke is lekh ko padh kar to ek plan dimag me aa rahi hai ki...
ReplyDeletebade dino se dekh rahi hun ki apki gadya aur padya me lekhni kafi tez ho gayi hai...aur agar me apni jagah apko apne exam ke liye represent kar du to ghate ka sauda nahi hoga...aana bhi bach jayega...aur bina mehnat ke fal bhi meetha mil jayega.....kyu theek hai na?????
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बिल्कुल अनामिकाजी मुझे कतई कोई ऐतराज़ नहीं है ! परिणाम भुगतने के लिये आप तैयार रहिएगा ! कहीं ऐसा ना हो जाये कि दोबारा इम्तहान देने की नौबत आ जाये ! हा हा हा ! आपकी प्रतिक्रया देख कर दिल खुश हो गया !
ReplyDeleteजो ग़लत है उसके विरुद्ध आवाज़ उठाई ही जानी चाहिए।
ReplyDeletebut because of the
ReplyDeletesilence of good people.....
bahut achchi post.
गलत को गलत और सच को सच कहने का ज़ज्बा हमें अपने अंदर पैदा करना होगा, वर्ना हम अपनी ही नज़रों में कभी नहीं उठ सकेंगे. बहुत सार्थक और प्रेरक पोस्ट. आभार
ReplyDeleteबहुत सही लिखा है |बधाई
ReplyDeleteआशा
बेशक सही को सही और गलत को गलत कहने की जरूरत इस समय सबसे अधिक है. खामोश रहने वालों को इतिहास कभी माफ नहीं करेगा.
ReplyDeleteआपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
ReplyDeleteप्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (11-4-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
स्वयं के मूल्यों को ही बना कर इंसान देश का निर्माण कर सकता है।बेहद उम्दा आलेख ।बहुत सार्थक और प्रेरक पोस्ट. आभार
ReplyDeleteबहुत सही बातें लिखी हैं ...!
ReplyDeleteअविवेकपूर्ण व्यवहार से हमें बचना होगा |प्रत्येक मनुष्य में क्रान्ति लाने की क्षमता होती है |सिर्फ सोच लाना ज़रूरी है ......!!
बहुत जागरूकता दे रहा है आपका लेख ...!!
आभार .
विचारोत्तेजक लेख ! जीवन में ढालने योग्य बातें हैं आपके लेख में !
ReplyDeleteआभार !
बहुत सही बात कही साधना जी,
ReplyDeleteजबतक खुद पे ना गुजरे कोई आवाज़ नहीं उठाता ना ही...कुछ गलत रोकने का प्रयास करता है.
बहुत जरूरी है कि एक जिम्मेवार नागरिक का कर्तव्य निभाएं और अपनी आँखों के सामने गलत होते देखे तो उसे रोकने का भरसक प्रयत्न करें.