Saturday, April 30, 2011

तस्वीर

तस्वीर एक बनाई थी मोहब्बत की कभी ,

हर इक नक्श को पलकों से तब सँवारा था !

वफ़ा के रंग भर दिए थे हर एक गुंचे में ,

हर इक पंखुड़ी पे नाम बस तुम्हारा था !

चाँद से नूर चाँदनी से माँग ली थी हँसी ,

ज़मीं पे दूर तलक खुशनुमां नज़ारा था !

सितारे टाँक लिये थे फलक के चूनर में ,

उन्हीं के नूर से रौशन जहाँ हमारा था !

ख़याल ओ ख्वाब लिये उड़ते थे हवाओं में ,

ज़मीं की सख्त फितरतों को कब निहारा था !

न जाने कैसे कहाँ टूट गये ख्वाब सभी ,

खुली जो आँख तो तनहा सफर हमारा था !

किसीने ने नोच लिये तिनके सब नशेमन के ,

ज़मीं पे बिखरा पड़ा आशियाँ हमारा था !

बहुत थी आरज़ू हमको तुम्हारी उल्फत की ,

बड़ी उम्मीद से हमने तुम्हें पुकारा था !

बहुत थे फासले और मुश्किलें भी थीं ज्यादह ,

खुद अपने आने पे भी बस कहाँ तुम्हारा था !

कहाँ थे फासले मीलों में या कि बस मन में ,

जो दुःख बस गया इस दिल में वो हमारा था !


साधना वैद


18 comments:

  1. बहुत थी आरज़ू हमको तुम्हारी उल्फत की ,

    बड़ी उम्मीद से हमने तुम्हें पुकारा था !

    बहुत थे फासले और मुश्किलें भी थीं ज्यादह ,
    खुद अपने आने पे भी बस कहाँ तुम्हारा था !

    आज तो कुछ अलग ही मूड में हैं,आप
    बहुत ही प्यारी लगी,ये रचना.

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  2. कहाँ थे फासले मीलों में या कि बस मन में ,
    जो दुःख बस गया इस दिल में वो हमारा था !

    न जाने ख्वाब क्यों टूट जाते हैं ...बहुत खूबसूरती से पिरोया है भावों को ...मन की वेदना की सुन्दर अभिव्यक्ति

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  3. बहुत थे फासले और मुश्किलें भी थीं ज्यादा
    खुद अपने आने पे भी बस कहाँ तुम्हारा था !
    ........
    प्रेम में कहा वश रह जा है आंटी..ये तो सर्वश्वा समर्पण की रह है..
    रचना भा गयी मन को

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  4. न जाने कैसे कहाँ टूट गये ख्वाब सभी ,

    खुली जो आँख तो तनहा सफर हमारा था !
    एक एक लाईण गजब ढा रही हे बहुत खुब जी धन्यवाद

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  5. "चाँद से नूर चांदनी से मांग ली थी हंसी "
    बहुत अच्छी लगी पोस्ट बधाई
    आशा

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  6. सितारे टाँक लिये थे फलक के चूनर में ,.............
    किसीने ने नोच लिये तिनके सब नशेमन के .......
    कहाँ थे फासले मीलों में या कि बस मन में ...............

    भावनाओं का सुंदर शब्द चित्रण

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  7. बहुत थे फासले और मुश्किलें भी थीं ज्यादह ,

    खुद अपने आने पे भी बस कहाँ तुम्हारा था !

    कहाँ थे फासले मीलों में या कि बस मन में ,
    जो दुःख बस गया इस दिल में वो हमारा था

    बहुत गहन व्यथा ...शांत शांत ...सी हो कर बह रही है ..
    एकाकी से भाव लिए ......
    बहुत सुंदर कविता ...!!

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  8. बहुत थे फासले और मुश्किलें भी थीं ज्यादह ,
    खुद अपने आने पे भी बस कहाँ तुम्हारा था !

    कहाँ थे फासले मीलों में या कि बस मन में ,
    जो दुःख बस गया इस दिल में वो हमारा था !

    बहुत ही भावमय करते शब्‍द ।

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  9. साधना जी इस बेजोड़ रचना के लिए बधाई स्वीकारें
    नीरज

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  10. अलग भावभूमि पर लिखी यह नज़्म मन को छू गई।

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  11. बहुत बेहतरीन लगी पूरी रचना.....

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  12. सुन्दर अहसास लिए अच्छी रचना।

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  13. बहुत थी आरज़ू हमको तुम्हारी उल्फत की
    बड़ी उम्मीद से हमने तुम्हें पुकारा था ...

    वाह ... बहुत खूबसूरत गीत है ... आपका अंदाज़ आज जुदा है ....

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  14. बहुत सुंदर .... सच्ची और अच्छी अभिव्यक्ति.... बेहतरीन

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  15. बहुत सुंदर .... सच्ची और अच्छी अभिव्यक्ति.... बेहतरीन

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  16. बहुत थी आरज़ू हमको तुम्हारी उल्फत की ,

    बड़ी उम्मीद से हमने तुम्हें पुकारा था...

    साधना जी , बहुत उम्दा रचना, भावुक करने वाली।

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  17. आज कल आपकी कवितायेँ मेरे ब्लॉग पर नहीं दिखाई दे रही हैं केवल शीर्षक आता है बस..

    मैं आपकी "कठपुतली" भी नहीं पढ़ सकी,और "मैं तुम्हारी माँ हूँ" भी..

    कृपया परेशानी का निवारण करें....!!

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