अपने बचपन की याद है कि स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर जब देश भर में जश्न मनाया जाता था और आज़ाद भारत के प्रथम प्रधान मंत्री जवाहर लाल नेहरू तथा राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद का भाषण रेडियो पर प्रसारित होता था या पिक्चर हॉल में न्यूज़ रील में दिखाया जाता था तो मन गर्व से भर उठता था ! हृदय में अगाध श्रृद्धा की तरंगें उठने लगती थीं और इस बात का अहसास मन को हमेशा चेताता रहता था कि कितनी मंहगी कीमत चुका कर यह आज़ादी हमें मिली है ! आज जिस आज़ाद हवा में हम साँस ले रहे हैं उसके लिये कितने वीरों ने अपनी जान की बाज़ी लगाई है और कितने उदारमना नेताओं और महापुरुषों ने अपने सभी सुखों को देश हित के लिये न्यौछावर कर वर्षों जेल की सलाखों के पीछे यातना भरे दिन बिताये हैं ! दिल में यह भावना रहती थी कि गाँधी, नेहरू, भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु, सुभाषचंद्र बोस, मदनमोहन मालवीय, वल्लभ भाई पटेल, वीर सावरकर, बाल गंगाधर तिलक, लाला लाजपत राय, दादा भाई नोरोजी, मौलाना अबुल कलाम आज़ाद और अनेकों अनगिनत स्वतंत्रता सेनानियों के प्रशस्त किये मार्ग पर अग्रसर होते हुए देश को विकास और सफलता के शिखर पर पहुँचाना है और सम्पूर्ण विश्व में इसके गौरव को स्थापित करना है !
लेकिन आज़ाद भारत की यह मनमोहक तस्वीर बहुत दिनों तक अपने आकर्षण को बनाये नहीं रख सकी ! अंदर ही अंदर भ्रष्टाचार की दीमक इसको चाट कर खोखला करने की तैयारी में जुट चुकी थी ! कहते हैं कि सत्ता यदि पूर्ण बहुमत के साथ मिले तो अधिकार के साथ भ्रष्टाचार को पनपने के लिये भी भरपूर खाद पानी मिल जाता है ! लोकतंत्र के लिये यह अच्छा शगुन नहीं है ! स्वतन्त्रता के बाद दिसंबर 1947 में महात्मा गाँधी ने भी यह भाँप लिया था कि राजनेता पैसा कमाने के लिये अपने अधिकारों का दुरुपयोग कर रहे हैं और भ्रष्टाचार में लिप्त हो रहे हैं ! उन्होंने आंध्र प्रदेश के अपने एक वरिष्ठ स्वतंत्रता सेनानी मित्र श्री वैन्कटपैया के एक उल्लेखनीय पत्र के बाद, जिसमें उन्होंने गाँधीजी को लिखा था कि कॉंग्रेस पार्टी का नैतिक पतन हो रहा है ! उसके नेता अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर पैसा कमाने में लगे हैं और लोगों में यह धारणा पनपने लगी है कि इससे तो ब्रिटिश रूल ही अच्छा था, गांधीजी ने यह सुझाव दिया था कि कॉंग्रेस पार्टी को भंग कर देना चाहिये पर उनकी यह बात मानी नहीं गयी ! भ्रष्टाचार की आमद की यह पहली दस्तक थी !
भारतीय राजनीति के हिमालय से भ्रष्टाचार की गंगोत्री का उदगम वी के कृष्णामेनन के जीप काण्ड से माना जा सकता है ( 1948 ) ! इसके बाद इस गंगोत्री का आकार कुछ बढ़ा और हरिदास मूंदडा काण्ड प्रकाश में आया जिसकी पोल श्री फिरोज गाँधी ने 1958 में संसद में खोली थी ! के. डी. मालवीय एवं सिराजुद्दीन का ऑइल स्कैम तथा धरम तेजा काण्ड भी नेहरू जी के कार्यकाल में ही हुए थे ! उन दिनों देश भावनात्मक रूप से इन नेताओं पर इतना निर्भर था कि ऐसी कोई भी बात आसानी से उसके विश्वास को डिगा नहीं सकती थी और आज की तरह उस समय मीडिया भी इतना सक्रिय नहीं था ! इसलिए इन घोटालों की चर्चा बहुत अधिक नहीं हुई और बातें वहीं दब गयीं !
समय के साथ भ्रष्टाचार की इस गंगोत्री में कई धाराएं और उपधाराएं मिलती चली गयीं और इसके रूप रंग आकार को और अधिक विस्तार और गहराई प्रदान करती गयीं ! 1971 के नागरवाला काण्ड और मारुती उद्योग की धाँधलियों को बांग्लादेश की विजय के सामने अनदेखा कर दिया गया ! 1981 में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री ए. आर. अंतुले के सीमेंट स्कैम जैसे अनेक घोटाले सामने आने लगे परन्तु 1987 में राजीव गाँधी के कार्यकाल में जब बोफोर्स तोप घोटाला प्रकाश में आया तो जनता का मोहभंग होना शुरू हुआ ! इसके बाद तो घोटालों का लंबा सिलसिला आरम्भ हो गया ! गंगोत्री अब पहाड़ों से उतर कर मैदानों में आ गयी थी और वृहद स्वरुप धारण कर चुकी थी ! यूरिया काण्ड (1990), हर्षद मेहता केतन पारेख काण्ड (1992), हवाला काण्ड (1993), सुखराम का टेलीकॉम घोटाला (1996), बिहार का चारा घोटाला (1996), जे. एम.एम. का रिश्वत काण्ड (1996) सबने राजनीति में भ्रष्टाचार की गहराई और विस्तार को इस तरह से उजागर किया कि आम जनता स्वयं को ठगा हुआ महसूस करने लगी ! तमाम बड़े बड़े नेताओं और उच्च पादासीन अधिकारियों के घरों से, यहाँ तक कि उनके बिस्तर के गद्दों तक से काला धन बरामद होने लगा ! जनता को समझ आने लगी कि उसका मेहनत से कमाया हुआ धन ये चंद भ्रष्ट और पतित नेता हड़प किये जा रहे हैं और जनता को नित नये करों के बोझ से लादते जा रहे हैं ! मंहगाई सुरसा की तरह बढ़ती ही जा रही है ! संसद तथा टीवी चैनलों के टॉक शोज़ में निरंतर चलने वाली अंतहीन, अर्थहीन, और निरुद्देश्य बहसें जनता को कोई दिलासा या दिशा नहीं दे रही हैं !
मीडिया फिर भी सक्रियता के साथ अपनी भूमिका निभाता रहा है ! आरम्भ में नेताओं की ये खबरें प्राय: दबा दी जाती थीं ! अशिक्षा के कारण अखबारों की पहुँच बहुत कम लोगों तक सीमित थी लेकिन टी.वी. के आगमन तथा गाँव देहात तक फ़ैल जाने का एक फ़ायदा यह हुआ कि भष्टाचार की सारी खबरें घर घर पहुँचने लगीं ! नेताओं का कद घटने लगा ! उनके प्रति जनता के मन में मान सम्मान कम होने लगा और आक्रोश की आँच सुलगने लगी !
सत्ता में गहराई तक ऊँची पहुँच, धीमी न्याय प्रक्रिया और प्रशासन की मिलीभगत ने भ्रष्टाचार की जड़े और गहरी कीं और स्वार्थी नेताओं की ढिठाई और हौसले बुलंद होते चले गये ! अधिकार का दुरुपयोग कर कई नेताओं ने अनुचित तरीकों से अपने स्वार्थ साधने की कोशिश की और कतिपय बड़े लोगों को लाभ दिला कर अपना बैक बलैंस खूब मज़बूत किया ! प्रमोद महाजन का टेलीकॉम घोटाला (२००२) इसी श्रेणी में आता है ! भ्रष्टाचार की यह गंगोत्री अब आकार प्रकार में सागर का रूप ग्रहण करने लगी ! पहले किये जाने वाले कुछ लाखों करोड़ों के घोटाले अब हज़ारों करोड़ों तक के आँकड़े को छूने लगे ! (२००६) का अब्दुल करीम तेलगी का स्टैम्प घोटाला, (२००९) का मधु कोड़ा काण्ड, (२०१०) का ए. राजा का टू जी स्पेक्ट्रम काण्ड, (२०१०) का कलमाड़ी का राष्ट्र मण्डल खेल घोटाला, (२०१०) का ही सत्यम घोटाला अब महासागर का रूप ले चुके हैं !
दिमाग में सवाल उठता है क्या इस समस्या का कोई निदान है ? आशा करते हैं कि अन्ना हजारे और बाबा रामदेव जैसे जुझारू कर्मठ एवं देशभक्त व्यक्तियों का प्रयास अवश्य रंग लायेगा और आज़ादी के बाद से लगातार चलने वाला यह सिलसिला अब ज़रूर टूटेगा ! हम सभी भारतीय उनके साथ हैं और उनके इस अभियान को अशेष शुभकामनायें देते हैं !
साधना वैद
भ्रष्टाचार को गंगा का नाम दे कर सब कुछ पवित्र कर दिया ..सारे पाप धुल गए ... फिर से पाप करने के लिए तैयार ...
ReplyDeleteइस के उद्दगम पर अच्छा प्रकाश डाला है ... अब देखना है कि इस महासागर में कब भूकंप आता है और कब सुनामी उठती है और इसमें रचाने बसने वाले लोंग कब और कैसे तहस नहस होते हैं ...
brhstachaar to hamaare desh ko deemak ki tarah khaa raha hai.bahut hi saarthak lekh badhaai aapko.
ReplyDeleteइन घोटालों और घोटाले बाज़ों पर तो आपने पूरा शोध ही कर डाला। सतत जागरूकता और निरन्तर संघर्ष से ही इसपर काबू पाया जा सकता है।
ReplyDeleteभगवान ही जाने कैसे अपने देश से भ्रष्टाचार जायेगा.चूंकि आदमी को आशावान होना चाहिए इसलिए आशा हम भी रखें हैं की एक दिन सब ठीक हो जायेगा.बाकी अल्लाह मालिक.
ReplyDeleteओह!! भ्रष्टाचार की जड़ें इतनी गहरी हैं?? तभी तो इन्हें उखाड़ फेंकने के इक्का-दुक्का प्रयत्न कामयाब नहीं हो रहे हैं. कई सारे पुराने घोटालों के बारे में तो पता ही नहीं था...आपके द्वारा ही जानकारी मिली.
ReplyDeleteसम्पूर्ण जनता को एकजुट होकर इस भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए तत्पर होना होगा.
बहुत ही जानकारीपूर्ण सार्थक आलेख
भ्रष्टाचार ओर घोटालों का देश लगता हे, बस लोगो को शर्म ही नही आती अब तो यह गर्व से चलते हे, ९९% लोग लुटने मे ही लगे हे वो चपडासी हो या नेता, जो भी इन के बिरुध आवाज ऊठाता हे सब उसे ही ऊखाडने लगते हे, क्या होगा हम सब का? बहुत सुंदर लेख लिखा आप ने
ReplyDeleteभ्रष्टाचार से कभी निजात मिलेगी क्या? ऐसे सवाल अक्सर मेरे दिल दिमाग़ में भी कौंधते रहते हैं|
ReplyDeleteकाश की भारत का पूरा जन मानस इस बात को समझे और भ्रष्ट नेताओं का ख़ात्मा करे ....
ReplyDeleteइस भ्रष्टाचार के लिए जितना भी कहा जाय काम है, ये तो अब खून बनकर हमारी रगों में दौड़ रहा है क्योंकि बड़े बड़े पकड़ में आ जाते हैं और जो छोटे हैं. किसी ऑफिस के दरवाजे पर बैठे हैं 'साहब ' नहीं है कह कर आपको तारका देते हैं और जरा सी पैसे की झलक देखी नहीं की साहब वापस आ जाते हैं. वे भी तो उसका ही अंग हैं न. पेंशन लेने जाइए और जब तक कुछ न कुछ दे न दें आपको खड़े ही रहना पड़ता है. जल्दी चाहिए . पेंडिंग चाहिए या एरियर चाहिए सबके लिए दीजिये लेकिन वह दिख कहाँ रहा है? अब इस भ्रष्टाचार के बिना तो साँस भी नहीं लेते हैं लेने वाले. तब तो वह गंगा ही कही जायेगी जिसमें डुबकी न लगाई तो फिर हम सबसे निकृष्ट हैं.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और विषद विश्लेषण..आज के हालात तो इस बारे में निराशा ही प्रस्तुत करते हैं, लेकिन कुछ सुधार की आशा तो की ही जा सकती है..
ReplyDeleteदेखिए कब तक हम इस भ्रष्टाचार रूपी दानव से मुक्त होंगे...
ReplyDeleteसमय के साथ भ्रष्टाचार की इस गंगोत्री में कई धाराएं और उपधाराएं मिलती चली गयीं और इसके रूप रंग आकार को और अधिक विस्तार और गहराई प्रदान करती गयीं !
ReplyDeleteसच में ...ये बढ़ा ही है ..सुरसा की भांति निरंतर ...
अच्छी ओर ध्यान आकृष्ट किया है ...!!
बहुत सुंदर लेख.
बहुत गंभीर विषय चुना है लिखने के लिए जो बहुत
ReplyDeleteगहराई तक अपनी जड़ें फैला चुका है |अकेला चना
भाद नहीं फोड सकता |जब सब इसके उन्मूलन का मन बना लें तब शायद कुछ हो पाए |
आशा
सच्चाई को आपने बड़े सुन्दरता से शब्दों में पिरोया है! ये कहना और सोचना बहुत ही कठिन है कि हमें इस भ्रष्टाचार से कब छुटकारा मिलेगा! प्रशंग्सनीय प्रस्तुती!
ReplyDeleteबेहद सुन्दर आलेख । हम भी इन देशभक्तों के साथ हैं।
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